भोपाल, दिसंबर 2012/ तीन दिन से चल रही अध्यापकों की तालाबंद हड़ताल बगैर किसी निर्णय के बुधवार को समाप्त हो गई। मांगों को लेकर स्कूल शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस से चर्चा भी विफल रही। अब अध्यापकों ने सांकेतिक धरना जारी रखने और 26 से 28 दिसंबर तक राजधानी में परिवार के साथ डेरा डालने का निर्णय लिया है।
हड़ताल का आखिरी दिन भी भोपाल जिले के करीब 600 और प्रदेश के 75 हजार स्कूल बंद रहे और अध्यापक, संविदा शिक्षक और गुरुजियों ने धरना दिया। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में पहली से 12वीं के विद्यार्थियों की पढ़ाई ठप रही। “अध्यापक संविदा संयुक्त मोर्चा मप्र” ने तीन दिन की हड़ताल का आह्वान किया था जो बुधवार को खत्म हो गया। बुधवार को मोर्चे के संयोजक मुरलीधर पाटीदार से मंत्री चिटनीस ने फोन पर चर्चा की। मंत्री ने 15 मिनट में हड़ताल खत्म करने पर मुख्यमंत्री से बात कराने को कहा था। वे हड़ताल के चलते मांगों पर चर्चा करने को तैयार नहीं थीं। अध्यापकों ने 15 मिनट में हड़ताल खत्म करने में असमर्थता जताई और बात खत्म हो गई। अध्यापकों ने तीसरे दिन भी बोर्ड ऑफिस चौराहे पर धरना दिया।
परिवार सहित आएंगे भोपाल
मांगों का जल्द निराकरण नहीं हुआ तो हड़ताली कर्मचारी 26 से 28 दिसंबर तक राजधानी में परिवार सहित डेरा डालेंगे। मोर्चे के संयोजक पाटीदार ने बताया कि तब तक सांकेतिक धरना जारी रहेगा। अध्यापक, संविदा शिक्षक और गुरुजी काली पट्टी बांधकर पढ़ाई कराएंगे, लेकिन गैर शैक्षणिक कार्यों में सहयोग नहीं करेंगे। मोर्चे ने मांगों के हक में हस्ताक्षर अभियान चलाने का निर्णय भी लिया है।
डीईओ से मांगी रिपोर्ट
जिला शिक्षा अधिकारी चंद्रमोहन उपाध्याय ने कहा कि समस्त जिला शिक्षा अधिकारियों से हड़ताल की रिपोर्ट मांगी गई है। उनसे फेक्स या नेट से जानकारी देने को कहा है। मैदानी अधिकारियों से भी हड़ताली कर्मचारियों की जानकारी इकठ्ठा कराई जा रही है। संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
500 से 10 हजार हुआ वेतन
महज 500 रुपए से नौकरी शुरू करने वाले अध्यापक वर्तमान में 10 हजार रुपए तक वेतन ले रहे हैं, फिर भी पढ़ाई के समय पर आंदोलन कर रहे हैं। वर्ष 1995 में संविदा शिक्षक वर्ग एक को एक हजार, वर्ग-दो को 700 और वर्ग-तीन को 500 रुपए महीने पर नौकरी दी गई थी। पिछले 16 साल में उनका वेतन 20 गुना बढ़ा है। इतने में भी संतोष न कर अब वे नियमित शिक्षकों के समान 25 से 35 हजार रुपए वेतन और सुविधाएं मांग रहे हैं। ऐसी मांगों को लेकर हर साल परीक्षा के ठीक पहले आंदोलन किए जाते हैं।