शुभरात्रि कविता

पेड़ हो या आदमी
कोई फरक पड़ता नहीं
लाख काटे जाइए, जंगल हमेशा शेष हैं।
क्या गजब का देश है, यह क्या गजब का देश है।

प्रश्न जितने बढ़ रहे
घट रहे उतने जवाब
होश में भी एक पूरा देश यह बेहोश है।
क्या गजब का देश है, यह क्या गजब का देश है।

खूँटियों पर ही टँगा
रह जाएगा क्या आदमी?
सोचता, उसका नहीं यह खूँटियों का दोष है।
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है।
-सर्वेश्‍वरदयाल सक्‍सेना 

 

 

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