अजय बोकिल
पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टीवी डिबेट में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को निलंबित करने और पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता रहे नवीन जिंदल को पार्टी से निकालने की जो कार्रवाई की, वो एक हफ्ते पहले ही हो जानी चाहिए थी। क्योंकि किसी को भी किसी भी धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक या बेअदबी करने वाली टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। शिवलिंग को लेकर नहीं तो पैगंबर मोहम्मद को लेकर भी नहीं। अगर नूपुर और जिंदल पर कार्रवाई तत्काल हो गई होती और पार्टी ने उनके बयानों से खुद को अलग कर लिया होता तो न कानपुर के दंगे होते और न ही खाड़ी देशों सहित (जिनके साथ भारत के अच्छे रिश्ते रहे हैं) तमाम इस्लामिक देशों की आलोचना का सामना भी नहीं करना पड़ता।
देर से ही सही, भारत सरकार ने समझदारी दिखाते हुए साफ किया कि इस देश में किसी को किसी भी धर्म की बेअदबी का अधिकार नहीं है। ‘अराजक तत्वों’ के बयान भारत सरकार का स्टैंड नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरूणसिंह ने बयान जारी कर कहा कि भारत के हज़ारों साल के इतिहास में कई धर्म फले-फूले हैं। भारतीय जनता पार्टी हर धर्म का सम्मान करती है। भारतीय संविधान नागरिकों को किसी भी धर्म के पालन की आज़ादी देता है। साथ ही यह सभी धर्मों के आदर और सम्मान का भी अधिकार देता है।”
गौरतलब है कि 26 मई को ‘टाइम्स नाऊ’ चैनल पर नूपुर शर्मा ज्ञानवापी फ़ाइल्स नाम के एक डिबेट शो में भाग ले रही थीं, उसी में उन्होंने ये विवादित टिप्पणी की। हालांकि उस न्यूज़ चैनल ने भी अब नूपुर के इस बयान से खुद को अलग कर लिया है। नूपुर के विवादित बयान के वीडियो को पेशे से पत्रकार और फ़ैक्ट चेकिंग वेबसाइट आल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर किया और नूपुर पर पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगाया।
इसके बाद भाजपा नेता नवीन जिंदल ने भी कुछ आपत्तिजनक ट्वीट किए। जिससे तमाम मुसलमानों में रोष फैलने लगा। हालांकि इसकी प्रतिक्रिया में कानपुर की हिंसा प्रायोजित थी और नूपुर की टिप्पणियों के खिलाफ मुसलमानों की नाराजगी का संदेश देने की अवांछित कोशिश थी। सोशल मीडिया के माध्यम से जल्द ही ये नूपुर प्रकरण पूरी दुनिया में फैल गया और मुस्लिम देशों में इसके खिलाफ आवाज उठने लगी। उधर नूपुर पर भाजपा की कार्रवाई से भड़के पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे कतर जैसे छोटे से देश के आगे भारत का ‘सरेंडर’ बताया।
कट्टर हिंदुत्ववादी और भाजपा राज में अपनी उपेक्षा के शिकार स्वामी मोदी के घोर आलोचक रहे हैं। इसलिए उनकी बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। कुछ स्वामी समर्थकों का यह सवाल है कि नूपुर ने गलत क्या कहा? इस बीच नूपुर ने भी माफीनामा जारी कर कहा कि मैं बार-बार अपने आराध्य महादेव शिवजी के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और रोष में आकर कुछ चीजें कह दीं। अगर मेरे शब्दों से किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंची हो तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं। मेरी मंशा किसी को कष्ट पहुंचाने की कभी नहीं थी।’ नूपुर का यह माफीनामा भी बहुत देर से आया, तब तक खेल बिगड़ने लगा था। उधर भाजपा की अनुशासनात्मक समिति की ओर से जारी एक पत्र में कहा गया कि शर्मा ने विभिन्न मुद्दों पर पार्टी की राय के विपरीत जाकर विचार प्रस्तुत किए हैं, जो कि इसके संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है।
मोदी सरकार और भाजपा तब जागे, जब नूपुर प्रकरण की आंच सीधे मोदी सरकार पर आने लगी और अरब देशों से नूपुर के बयान पर विरोध के स्वर उठने लगे। उल्लेखनीय है कि भारत और कतर के बीच दोहरे कराधान को रोकने के लिए द्विपक्षीय समझौता जल्द होने वाला है। कतर की कुल आबादी करीब 7 लाख है, जिनमें से लगभग 2 लाख भारतीय हैं। घटना के वक्त उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी कतर की यात्रा पर थे। बताया जा रहा है कि विरोध के तौर पर ऐन टाइम पर कतर के डेप्युटी अमीर अब्दुल्ला बिन अहमद अल थानी ने उपराष्ट्रपति नायडू के साथ लंच रद्द कर दिया। यह भी भारत का अपमान ही था।
नूपुर के बयान के बाद कतर में ‘बॉयकॉट इंडिया’ अभियान शुरू हो गया है। कई अरब देश भारत को कच्चा तेल देते हैं। हमारा 26 फीसदी व्यापार खाड़ी देशों के साथ है। कतर, यूएई के शेख और ईरान सरकार ने नूपुर के बयान को लेकर भारतीय राजदूत को तलब किया। उसके बाद वहां भारतीय दूतावास को कहना पड़ा कि नूपुर ने जो कुछ कहा वो सरकार और भाजपा की सोच नहीं है, ये तो ‘फ्रिंज एलीमेंट्स’ हैं। खाड़ी के एक और देश ओमान में प्रमुख मुफ्ती शेख अहमद बिन हमद अल-खलील ने ट्वीट किया कि शर्मा की टिप्पणी ‘हर मुसलमान के खिलाफ युद्ध’ घोषित करने के समान थी।
नूपुर के बयान का विरोध करने वालों में अब इंडोनेशिया और जॉर्डन भी शामिल हो गए हैं। सऊदी अरब ने भी बयान जारी कर कड़ी आपत्ति जताई। कतर, ईरान और कुवैत स्थित भारतीय दूतावास के प्रवक्ता ने कहा, ‘राजदूत ने बताया कि नूपुर और नवीन जिंदल के ट्वीट किसी भी तरह से भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते।’ यहां तक कि हमारे पड़ोसी मालदीव में भी विरोधी पार्टियों ने नूपुर के बयान की निंदा का प्रस्ताव देश की संसद में पारित कराने की असफल कोशिश की। हालांकि वहां की सरकार ने इस मामले में समझदारी भरी चुप्पी साध ली है। क्योंकि वो भारत से अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहती।
इस बीच 57 इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने भी नूपुर के बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। हालांकि मोदी सरकार ने उसे यह कहकर खारिज कर दिया कि यह हमारा आंतरिक मसला है। उधर भाजपा द्वारा अपने प्रवक्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई पर कतर और सउदी अरब ने संतोष व्यक्त किया है।
नूपुर के बयान पर राजनीति भी खूब हो रही है। उनकी टिप्पणी के दूसरे दिन ही नूपुर शर्मा के खिलाफ मुंबई के पायधुनी थाने में भादवि की धारा 295ए, 153ए और 505 (2) (विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के आशय से झूठे बयान आदि फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। एक और मामला ठाणे जिले के कोंढवा थाने में भी दर्ज किया गया। नूपुर पर पार्टी की कार्रवाई के बाद उनकी गिरफ्तारी की मांग भी शुरू हो गई है। नूपुर को जान से मारने की धमकियां भी मिल रही हैं।
हालांकि नूपुर को पार्टी ने ‘आगे की जांच’ पूरी होने तक के लिए निलंबित किया है। हो सकता है मामला ‘ठंडा’ होने पर उनकी वापसी हो जाए। क्योंकि संघ से जुड़ा एक वर्ग नूपुर के खिलाफ कार्रवाई को ‘अनावश्यक’ मान रहा है। यह तर्क भी दिया जा रहा है कि पवित्र शिवलिंग को लेकर कुछ गैर हिंदुओं ने जैसी टिप्पणियां की हैं, अगर हिंदू भी उन पर वैसे ही रिएक्ट होने लगे, जैसे कि मुसलमान हो रहे हैं तो फिर क्या होगा? लेकिन ऐसी प्रतिक्रिया देने वाले यह भूल गए कि देश में उन्हीं की विचारधारा की सरकार है, जिसके संवैधानिक दायित्व और अंतरराष्ट्रीय कमिटमेंट भी हैं।
वैसे नूपुर के खिलाफ कार्रवाई को कुछ लोग संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान की रोशनी में भी देख रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? इसका भावार्थ यही था कि गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई फायदा नहीं। मुसलमानों की पूजा पद्धति भले अलग हो, लेकिन वो हमारे भाई हैं। समझा जाता है कि संघ प्रमुख के इस बयान के बाद ही नूपुर पर कार्रवाई का दबाव बढ़ने लगा। कुछ घंटे बाद ही नूपुर और नवीन जिंदल पर कार्रवाई हो गई। यही काम नूपुर के बयान के दो दिन बाद हुआ होता तो बेवजह के विवादों से बचा सकता था। कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस पर प्रतिक्रिया दी कि ‘नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली।”
वैसे आजकल जिस तरह के डिबेट टीवी चैनलों पर होते हैं और उनमें पैनलिस्ट को जानबूझ कर इतना उकसाया जाता है कि वो कुछ ऐसा बोल दें कि जिस पर जमकर बवाल हो और टीवी चैनल की टीआरपी बढ़े। नूपुर के बयान से चैनल की टीआरपी कितनी बढ़ी पता नहीं, लेकिन देश की साख की टीआरपी पर बेवजह बट्टा जरूर लगा। नूपुर शर्मा ने डिबेट में जो कहा उसका मतलब और परिणाम वो नहीं समझती होंगी, यह सोचना भोलापन ही होगा। नूपुर पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भाजपा के टिकट पर लड़ी थीं और हारी थीं।
नूपुर तेज तर्रार प्रवक्ता हैं और काफी पढ़ी-लिखी हैं। वो छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं। ऐसे में उन्हें बहुत संभल कर अपनी बात रखनी चाहिए थी। अपनी आस्था के बचाव में दूसरे की आस्था पर चोट पहुंचाना बुद्धिमानी नहीं है, न ही ऐसा करना जरूरी है, खासकर तब कि जब पूरी दुनिया ही अनुदारता के दौर से गुजर रही है। भारत सउदी अरब की तरह कट्टर धार्मिक और फ्रांस की तरह कट्टर धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता। हमे अपनी सीमाएं और भाजपा को सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की नजाकत को समझना होगा। आज भारत दुनिया में स्वतंत्र विदेश नीति अपनाकर तलवार की धार पर चलने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में कोई भी असावधानी भरा या मूर्खतापूर्ण बयान भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत को डगमगा सकता है। (मध्यमत)
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