राकेश अचल
मैं आपसे रोज-रोज सियासत के तमाम पहलुओं की बात करता हूँ, इससे अक्सर भ्रम पैदा होने लगते हैं। आप तो क्या मेरे परिजन भी इस भ्रम का शिकार हैं कि मैं जन्मजात भाजपा या मोदी विरोधी और कांग्रेस समर्थक हूँ। मैं इस भ्रम का निवारण भी नहीं करता क्योंकि मुझे पता है कि मैं क्या हूँ और क्या नहीं? दूसरों के सोचने या मानने से इसपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन मैं आपको बता दूँ कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी मेरे हीरो हैं पर केवल ड्रेस के मामले में। वे अंग-वस्त्र पहनने में जितने दुस्साहसी हैं उतना मैं भी नहीं हूँ।
मुझे भी बचपन से फैंसी ड्रेस प्रतियोगिताओं में भाग लेने का भारी शौक था। जब जैसे कपड़े पहनने को मिलते थे, पहन लेता था। यहां तक कि गांव की रामलीला में मैंने वानर रूप धरने के लिए लाल रंग के वस्त्र भी पहने। जब बड़ा हुआ तो घर वालों ने मेरे शौक पर ध्यान नहीं दिया। घर में पटरे के पायजामे और हाफ कमीज के अलावा कुछ नहीं पहना। स्कूल में हाफ पेण्ट और सफेद कमीज पहनना पड़ती थी। किशोर हुआ तो भी बात पेण्ट और बुशर्ट से आगे नहीं बढ़ी। युवा हुआ तो मजदूरी करने लगा सो वहां भी शौक पूरे नहीं कर पाया।
आदरणीय मोदी जी की तरह भांति-भांति के वस्त्र पहनने का अपना पुराना और बचपन का शौक मैंने पत्रकार बनने के बाद पूरा करना शुरू किया। देशाटन के लिए जहाँ गया, वहां की पोशाक पहनी। टोपियां पहनीं, लेकिन किसी को पहनाई नहीं। मुझे हैरानी होती है कि सियासत में ड्रेसकोड पर मोदी जी के पहले किसी ने गंभीरता से ध्यान क्यों नहीं दिया। आजादी से पहले गांधी जी हाथ की बनी खादी की चादर ओढ़कर काम चलते रहे। पंडित जवाहरलाल नेहरू के कपड़े भले ही पेरिस लाउंड्री में धुलते हों लेकिन उनके पास भी चूड़ीदार पायजामों और अचकनों के अलावा कुछ था ही नहीं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ताउम्र सेना की वर्दी धारण किये रहे। शहीदे आजम भगत सिंह के पास भी शायद एक ही टोपी थी।
मैं पुरानी न्यूज रील देखता हूँ तो पाता हूँ कि आजादी के पहले के ही नहीं बल्कि आजादी के बाद के भी तमाम नेता भले ही साफ़ सुथरे कपड़े पहनते हों किन्तु उनके पास कपड़ों को लेकर विविधता नहीं थी। सर्वपल्ली राधाकृष्णन साहब अपना साफा पहने ही नजर आते थे, बाबू राजेंद्रप्रसाद के पास भी बहुत कपडे नहीं थे शायद। इंदिरा गाँधी ने जरूर सियासत के ड्रेसकोड को उन्नत किया। उन्होंने हेयर स्टाइल बदला, देश के हर हिस्से की साड़ियां पहनी। शास्त्री जी तो इस बारे में कोई क्रान्ति कर नहीं पाए। पी.वी. नरसिम्हाराव साहब भी हमारी तरह ही धोती पहनकर काम चलाते थे, हालांकि उनके पास भी एक-दो जोधपुरी सूट थे।
सियासत में ड्रेस कोड वो ही मान्य होता है जो या तो प्रधानमंत्री पहने या राष्ट्रपति। हमारे राष्ट्रपतियों में ज्यादातर को अचकन पसंद रही। पेण्ट-शर्ट वाले इक्का-दुक्का ही राष्ट्रपति बने। प्रधानमंत्रियों में भी आप देखेंगे कि राजीव गांधी के पास भी कुर्ता -पायजामे और जोधपुरी सूटों कि अलावा कुछ ख़ास था नहीं। डॉ. मनमोहन सिंह तो लगता है कि दस साल एक नीली पगड़ी, भक्क कुर्ता पायजामे के अलावा बंद गले का सूट पहनकर ही काम चलाते रहे। उनके बाद अटल जी भी कपड़ों के मामले, में दुस्साहसी नहीं बन पाए। धोती कुर्ते से आगे बढ़े तो जोधपुरी सूट पर अटक गए, ज्यादा से ज्यादा जालीदार टोपी पहन ली, लेकिन असल क्रान्ति का सूत्रपात किया हमारे चाय वाले मोदी जी ने।
सियासत में ड्रेसकोड के जन्मदाता मोदी जी ही हैं। मैंने जितनी वैरायटी के वस्त्र उन्हें पहने देखा है, किसी और प्रधानमंत्री को नहीं देखा। वे जहाँ जाते हैं वहां की वेशभूषा का वरण करते हैं। वे कपडे ही नहीं अपनी दाढ़ी को भी वैसा ही आकार दे देते हैं। बंगाल चुनाव के समय वे गुरु रविंद्रनाथ टेगौर जैसे बन गए थे। मोदी जी का दुस्साहस इस मामले में पेशेवर मॉडलों से भी अधिक है। मेरा अपना अनुभव है कि बहुरूप धरने कि लिए आदमी का साहसी होना जरूरी है। किसी को आपके वस्त्र अच्छे लग सकते हैं तो कोई आपको बिजूका भी समझ और कह सकता है, किन्तु आपको हर प्रतिक्रिया का सामना करने कि लिए मानसिक और आत्मिक तौर पर तैयार रहना पड़ता है।
आप मानें या न मानें किन्तु मैं मानता हूँ कि मोदी जी की वजह से देश के फैशन कारोबार का बहुत भला हुआ है, क्योंकि मोदी जी जब-जब नई पोशाक धारण करते हैं उसक चलन बढ़ जाता है। देश में आधी बाहों के कुर्ते का चलन या तो अभिनेता राजेश खन्ना के समय में लोकप्रिय हुआ था या फिर मोदी जी के आने के बाद। आज बाजार में मोदी कुर्ते बीस हजार रुपये तक के उपलब्ध हैं। आम आदमी भी तीन-चार सौ रुपये में मोदी कट कुर्ता पहन सकता है।
कांग्रेस में मोदी जी की टक्कर, के एक ही नेता हुए हैं जिन्हें शिवराज पाटिल कहते हैं। वे भी मोदी जी की ही तरह दिन में कम से कम तीन बार तो वस्त्र बदलते ही थे, इसके लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की डांट भी खाना पड़ी थी लेकिन वे अंत तक नहीं बदले। मोदी जी ने शिवराज पाटिल का कीर्तिमान तोड़ा और दिन में पांच बार वस्त्र बदलकर दिखाए। काशी में उन्होंने ये कीर्तिमान बनाया। हमारे शहर ग्वालियर में भी एक नेता हुए हैं जयभान सिंह पवैया, क्या गजब का ड्रेस सेन्स है उनके पास, मजाल है कि क्रीज टूट जाये। वे भी दिन में तीन बार ही कपड़े बदल पाते हैं।
परिधानबाजी दरअसल एक ललित कला है। इसमें सब निपुण नहीं हो सकते। एक जमाने में लोग हमारे परिधानों की नकल करते थे, आज मोदी जी के परिधानों की नकल होती है, लेकिन कुछ नेता इतने लेजी होते हैं कि पूरा जीवन एक ही तरह के कपड़ों में काट देते हैं। मसलन देश के कम्युनिस्ट नेताओं के पास कपड़ों की बड़ी तंगी रहती है। ओडिशा क मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को आपने कभी नवीन वस्त्रों में देखा ही नहीं होगा। ममताजी हों या अखिलेश बाबू, प्रकाश सिंह बादल हों या नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल हों या अशोक गहलोत कपडे पहना जानते ही नहीं हैं। राहुल गांधी के पास तो जैसे एक जोड़ी कुर्ता-पायजामे के दूसरे कपड़े हैं ही नहीं। बहन मायावती ने जरूर थोड़ा साहस दिखाया था, लेकिन अब वे भी शांत हो चुकी हैं।
कपड़ों के मामले में विदेशों के नेता भी साहसी नहीं होते। चीन के हों चाहे अमेरिका के, रूस के हों या आस्ट्रेलिया के, सबके पास एक जैसे कपड़े होते हैं। विविधता के मामले में सचमुच के विश्व गुरु हमारे देश के नेता ही हैं। इसलिए मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ। विचारधारा के मामले में मेरी पटरी भले ही माननीय मोदी जी से न बैठती हो किन्तु परिधान चयन में उनकी अभिरुचि की मैं वंदना करता हूँ।(मध्यमत)
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