कोरोना में राजनीति देश को फिर भारी पड़ेगी  

गिरीश उपाध्‍याय

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रसार पर काफी हद तक नियंत्रण हो जाने को लेकर परस्‍पर विरोधाभासी खबरों के चलते आम आदमी के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया है कि वह क्‍या करे और क्‍या न करे। क्‍या बीमारी को नियंत्रित मानकर अपनी सामान्‍य दिनचर्या की ओर लौटे या फिर तीसरी लहर आने की आशंका वाली खबरों पर ध्‍यान देते हुए खुद को कोरोना की पाबंदियों में ही जकड़े रखे।

दरअसल अभी भी निश्चित रूप से कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। एक तरफ स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बारे में लोगों से सतर्क रहने और राजनीतिक दलों से कोरोना पर राजनीति से ऊपर उठकर सोचने का आग्रह किया है। दूसरी तरफ विपक्षी दलों का रवैया अब भी कोरोना के बजाय राजनीतिक स्‍कोर बराबर करने वाला है। कोविड प्रबंधन को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना संक्रमण से प्रभावित होने वालों के मामले में भारत की स्थिति कई देशों से बेहतर है लेकिन मामले को बिगड़ने से रोकने के लिए हम सबको मिलकर एक टीम के रूप में काम करना होगा।

प्रधानमंत्री के इस आग्रह और कोरोना महामारी के फैलाव के प्रति उनकी चिंता को राजनीतिक खेमेबाजी से अलग करके देखा जाना चाहिए। आरोप प्रत्‍यारोप में उलझने से मामले को संभालने में अड़चनें ही आएंगी। देखा जाए तो यह मामला किसी एक दल विशेष या सरकार विशेष का है भी नहीं क्‍योंकि इससे पूरा देश… और देश ही क्‍यों पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। इसलिए जरूरी हो जाता है कि जो दल जहां सत्‍ता में है वह बाकी दलों को साथ में लेकर कोरोना से निपटने की प्रभावी रणनीति पर अमल करे।

कोरोना से निपटने के मामले में अब भी कई बातें हैं जो चिंता पैदा करने वाली हैं। मसलन सोशल डिस्‍टेंसिंग का ही मामला ले लें… एक तरफ जहां कुछ राज्‍यों ने कोरोना के चलते कांवड़ यात्रा को स्‍थगित किया वहीं केरल जैसे राज्‍य ने बकरीद पर लॉकडाउन में छूट का ऐलान किया। खुद सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के इस फैसले पर नाराजी जताते हुए कहा कि सेहत से खिलावाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।

इससे पहले उत्‍तरप्रदेश में कावड़ यात्रा का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और कोर्ट की ओर से जवाब तलब किए जाने पर राज्‍य सरकार ने कोर्ट को सूचित किया था कि इस साल भी कावड़ यात्रा स्‍थगित रहेगी। कावडि़ये प्रतीकात्‍मक रूप से मंदिरों में गंगाजल अर्पित करेंगे। कोर्ट ने कोरोना के मामले में सख्‍त रवैया अपनाया है। एक ओर जहां उसने केरल सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उसके फैसले के कारण कोरोना का संक्रमण फैला तो वह जिम्‍मेदार लोगों पर कार्रवाई करेगा। उसी तरह उत्‍तरप्रदेश सरकार से भी कहा गया है कि कावड़ यात्रा स्‍थगित होने संबंधी फैसले का उल्‍लंघन होने पर कड़ी कार्रवाई की जाए। लोगों के जीवन का अधिकार सर्वोपरि है।

देखने में आया है कि कोरोना प्रोटोकॉल के पालन, खासतौर से सोशल डिस्‍टेंसिंग के मामले में सरकारें और राजनीतिक दल अपने-अपने राजनीतिक हितों या वोट बैंक की सहूलियत के हिसाब से फैसले कर रहे हैं या पाबंदियों में छूट दे रहे हैं। इस तरह का कदम पूरे देश के लिए खतरनाक हो सकता है। कोरोना की दूसरी लहर ने जो कहर बरपाया है उसके घाव अभी भरे नहीं हैं और यदि तीसरी लहर सचमुच आ रही है तो सतर्कता की आवश्‍यकता और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में जैसाकि प्रधानमंत्री ने कहा- सारे दलों को राजनीति से ऊपर उठकर मानव जीवन बचाने के बारे में सोचने की जरूरत है।

इसी बीच भारतीय चिकित्‍सा अनुसंधान परिषद की ओर से कराए गए चौथे सीरो सर्वे की रिपोर्ट आई है जो कहती है कि भारत में हर तीन व्‍यक्ति में से दो में कोरोना की एंटीबॉडी बन चुकी है। यानी देश की 67 फीसदी से अधिक की आबादी कोविड से प्रभावित हुई है और उनमें कोरोना की एंटीबॉडी मौजूद है। लेकिन यह तथ्‍य जितना राहत देने वाला है, उससे कहीं अधिक चिंता पैदा करने वाला, इसी सीरो सर्वे का यह तथ्‍य है कि देश में अब भी 33 फीसदी यानी लगभग 40 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनमें एंटीबॉडी नहीं बनी है और उन पर कोरोना का शिकार होने का खतरा बना हुआ है।

सीरो सर्वे की रिपोर्ट के इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए एहतियाती उपायों में किसी भी प्रकार की ढील जानलेवा साबित हो सकती है। स्थि‍ति में सुधार को देखते हुए हमारे अपने मध्‍यप्रदेश में ही बच्‍चों के लिए स्‍कूल खोलने की बात चल रही है। ऐसा कोई भी फैसला बहुत सोच समझकर लिया जाना चाहिए। और फैसला यदि हो जाए तो उस पर अमल के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल के पालन में कोई ढिलाई नहीं होनी चाहिए। यह भी सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि क्‍या हमारे स्‍कूल और वहां का प्रबंधन इस जोखिम को उठाने के लिए साधन-संसाधनों से लेकर आवश्‍यक प्रशिक्षण से लैस हैं या नहीं। वरना जरा सी भी चूक बहुत भारी पड़ सकती है।(मध्‍यमत)
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नोट- मध्‍यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्‍यमत की क्रेडिट लाइन अवश्‍य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected] पर प्रेषित कर दें।संपादक

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