जयराम शुक्ल
मध्यप्रदेश के सीधी जिले के संजय टाइगर रिजर्व में बस्तुआ गेट के अंदर कोई 7 किमी दूर है बरगड़ी। उसके घने जंगल में बहती है कोरमार नदी। उसके तट पर जिस चट्टान पर मैं बैठा हूँ, उसके नीचे बाघ और भालुओं की मांदों की पूरी श्रृंखला है। यहीं ठीक मेरे पीठ के पीछे दिखने वाली मांद से विश्व का प्रथम संरक्षित सफेद बाघ मोहन कैद किया गया। मेरी ये तस्वीर सितंबर 2014 की है। यहां मैं ‘ सफेद बाघ की कहानी’ लिखने की गरज से पहुँचा हूँ।
दुनिया को सफेद बाघ का उपहार देने वाला संजय टाइगर रिजर्व एक बार फिर बाघों से आबाद हो रहा है। यह टाइगर रिजर्व बाघों के लिए अभी भी श्रेष्ठ पर्यावास है। कभी यहां बाघों की आबादी विश्वभर में सबसे ज्यादा रही होगी, क्योंकि इसी जंगल के छत्तीसगढ़ वाले हिस्से में 20 सालों के भीतर 1600 बाघों का वध करके सरगुजा राजा ने विश्व रेकार्ड बनाया था।
रीवा राज्य के हिस्से में आने वाले जंगल में महाराजा रघुराज सिंह (1850) से लेकर आखिरी महाराजा मार्तण्ड सिंह तक चार महाराजाओं ने मिलकर 2700 बाघ मारे। ये सारे आँकड़े बांबे जूलाजिकल सोसायटी के रिकार्ड बुक में आज भी हैं।
तब के राजे महाराजे बाघों के शिकार को अपने पराक्रम के साथ जोड़ते थे व पदवी के साथ इसका उल्लेख करते थे। अँग्रेजों के शासनकाल में गुलाम राजाओं-महाराजाओं का एक ही काम था, अच्छी खासी रकम लेकर विदेशों की टूर एवं ट्रेवल्स एजेंसियों को गेम सेंचुरी तक लाना ताकि लाटसाहब लोग शिकार का आनंद ले सकें। दूसरे बाघों की खाल और उनके सिर की माउंटेड ट्राफी बेचना।
रीवा राज्य के अँग्रेज प्रशासक उल्ड्रिच ने भी सामंतों की तरह बाघों के शिकार का सैकड़ा पार किया। उल्ड्रिच ने परसली के समीप झिरिया के जंगल में एक जवान सफेद बाघ का शिकार किया था। इतिहासकार बेकर साहब ने ‘द टाइगर लेयर-बघेलखण्ड’ में विंध्यक्षेत्र में बाघों व जानवरों के शिकार का दिलचस्प ब्योरा दिया है तथा यहां के राजाओं/सामंतों का मुख्यपेशा ही यही बताया।
पंडित नेहरू को रीवा के महाराज ने एक जवान बाघ के सिर की रक्त रंजित ट्राफी और खाल भेंट की तो उसे देखकर इंदिरा जी का दिल दहल गया। उनकी आँखों में आँसू आ गए। राजीव गाँधी को लिखे अपने एक पत्र में इंदिरा जी ने यह मार्मिक ब्योरा दिया है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा जी ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट समेत वन से जुड़े सभी कड़े कानून संसद से पास करवाए। राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर रिजर्व, व अभयारण्य एक के बाद एक अधिसूचित करवाए। आज वन व वन्यजीव जो कुछ भी बचे हैं वह इंदिरा जी के महान संकल्प का परिणाम हैं।
इंदिरा जी का वो मार्मिक पत्र
‘‘हमें तोहफे में एक बड़े बाघ की खाल मिली है। रीवा के महाराजा ने केवल दो महीने पहले इस बाघ का शिकार किया था। खाल, बॉलरूम में पड़ी है। जितनी बार मैं वहां से गुजरती हूं, मुझे गहरी उदासी महसूस होती है। मुझे लगता है कि यहां पड़े होने की जगह यह जंगल में घूम और दहाड़ रहा होता। हमारे बाघ बहुत सुंदर प्राणी हैं…
-इंदिरा गांधी
(राजीव गांधी को 7 सितंबर 1956 को लिखे पत्र के अंश)