भास्‍कर छापे पर एक राय नहीं है मीडिया

भोपाल/ देश के जाने माने मीडिया संस्‍थान दैनिक भास्‍कर समूह पर 22 जुलाई को पड़े छापों को लेकर एक ओर जहां मीडिया जगत में तीखी प्रतिक्रिया हुई है और इसे अभिव्‍यक्ति की आजादी पर हमला बताया जा रहा है वहीं सोशल मीडिया पर ऐसी भी पोस्‍ट वायरल हो रही है जिनमें भास्‍कर समूह पर की गई कार्रवाई को उचित बताते हुए इस पर सवाल करने वालों को कठघरे में खड़ा किया गया है।

नईदुनिया और नवभारत जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों से जुड़े रहे मध्‍यप्रदेश के वरिष्‍ठ पत्रकार कमलेश पारे में अपनी फेसबुक पोस्‍ट में लिखा-
‘’हमारे यहां एक पौराणिक पात्र हुए हैं ‘बर्बरीक’ वे किसी भी युद्ध का कारण जाने बिना कमजोर के पक्ष में लड़ने को ही अपना कर्तव्य मानते थे। उनकी याद इसलिए आई कि देश के सबसे तेज बढ़ते समाचार पत्र समूह ‘दैनिक भास्कर’ के परिसरों पर आज आयकर विभाग की कार्रवाई को लेकर देश के कई सारे बुद्धिजीवी व मार्गदर्शक विद्वान, जिनकी उपस्थिति से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अस्तित्व माना जाता है, केंद्र सरकार पर बुरी तरह से हमलावर हैं।
इन्हीं बुद्धिजीवी व मार्गदर्शक पत्रकारों में से एक ने, एक चुनाव के पहले ‘दैनिक भास्कर’ के मालिकों को किसी एक व्यक्ति से किसी एक राजनीतिक पक्ष में खड़े होकर खबरें लिखने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए लेते हुए या लेने की बात करते हुए वीडियो में कैद किया था। तब वह वीडियो सबने बड़े चटखारे लेकर देखा था व उस पर निजी चर्चा भी की थी। तब किसी ने दैनिक भास्कर को आज की तरह पीड़ित नहीं माना था।
ठीक वैसे ही जब कोरोना का बहाना लेकर ‘दैनिक भास्कर’ पत्र समूह ने कई पुराने-पुराने पत्रकारों, जिनके पास आजीविका के कोई विकल्प नहीं बचे थे, को घर बिठा दिया था, तब भी आज नाराज हो रहे लोगों ने कुछ नहीं कहा था।
आज पुराने पौराणिक पात्र ‘बर्बरीक’ की मुद्रा में सब खड़े हो गए हैं, क्योंकि सरकार अपनी भड़ास या कुण्ठा निकालने का सबसे अच्छा ‘पंचिंग बैग’ है। जो भी लोग आज किसी पक्ष में नहीं खड़े हैं वे जान लें कि यदि ‘दैनिक भास्कर’ ने कुछ भी छापा है, तो उसके लिए उसके प्रबंधन ने किसी न किसी से कुछ न कुछ लिया होगा। वे निष्पक्ष पत्रकारिता न कभी करते थे, और न यह करना उनकी आदत में शामिल है।‘’

इसी तरह विंध्‍य क्षेत्र के वरिष्‍ठ पत्रकार जयराम शुक्‍ल ने सोशल मीडिया पर लिखा-
‘’जब पत्रकारों के पेट पर मीडिया सेठों की लात पड़ती है तब प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात महसूस नहीं होता, आज भयादोहन से अर्जित काली कमाई पर छापा पड़ा तो अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में पड़ गई… क्यों?’’
शुक्‍ल ने अपनी यह पोस्‍ट @ianuragthakur @nsitharaman @BBCBreaking @ndtv @ChouhanShivraj @OfficeOfKNath @KVikramrao1 को टैग की है।

इस मामले में एक और वरिष्‍ठ वरिष्‍ठ पत्रकार ब्रजेश कुमार सिंह ने ट्वीट किया-
‘’वाणी या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ किसी भी डिक्शनरी में लूट, भ्रष्टाचार, साज़िश, ब्लैकमेलिंग या फिर अपने स्वार्थ को साधने के लिए एजेंडा चलाने की स्वतंत्रता नहीं है। यही बात भारतीय संविधान लागू होने के महज़ डेढ़ वर्षों के अंदर पहले संविधान संशोधन के ज़रिये भी बता दी गई थी।‘’

रि डिस्‍कवर इंडिया न्‍यूज के प्रदीप मिश्रा ने लिखा-
‘’दैनिक भास्कर ग्रुप अपने व्यक्तिगत लाभ और सरकारी योजनाओ में भ्रष्टाचार न कर पाने की वजह से कर रहा है मोदी सरकार को बदनाम!’’

नवभारत के समूह संपादक वरिष्‍ठ पत्रकार एल.एन.शीतल ने फेसबुक पर यह पोस्‍ट डाली-
मीडिया कोई पवित्र गाय नहीं, जिसे ‘रक्षाकवच’ हासिल है!
”देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस-‘भास्कर समूह’ पर IT और ED की छापेमारी को मीडिया पर हमला बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सरकार ने भास्कर ग्रुप के सत्ताविरोधी तेवरों से चिढ़कर उसे सबक सिखाने और अन्य अख़बारों/चैनलों को डराने के लिए यह कार्रवाई की है। ऐसा कहने वालों को मालूम होना चाहिए कि कोई भी अख़बार या न्यूज़ चैनल ऐसी कोई ‘पवित्र गइया’ बिल्कुल नहीं, जिसे रक्षा-कवच प्राप्त है।
कौन नहीं जानता कि विभिन्न अख़बार और चैनल बैनर की आड़ में तमाम तरह के धन्धे करते हैं और अपने उन धन्धों से जुड़ी अवैध गतिविधियों की अनदेखी करने के लिए सरकारों पर अड़ी-तड़ी डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखते। भास्कर सिरमौर है इनमें। अख़बार के नाम पर सरकारों औने-पौने दामों में ज़मीनें हथियाना और फिर उन ज़मीनों का मनमाना इस्तेमाल करना विशेषाधिकार है इनका। बिल्डरों के साथ मिलकर फ्लैट-डुप्लेक्स बनवाने-बिकवाने और व्यापारियों से मिलकर उनके उत्पादों को बढ़ाने के लिए अपने पाठकों को उकसाने का धत्कर्म करने में सबसे तेज गति वाला है समूह!
मीडिया भी एक इंडस्ट्री है तो फिर किसी अन्य इंडस्ट्री की तरह उस पर भी छापे क्यों नहीं पड़ सकते? लेकिन छापे पड़ते ही कुछ लोग चीखना शुरू कर देते हैं कि बदले की कार्रवाई हो रही है। कोई मीडिया हाउस, जो ’92 में 100 करोड़ का भी नहीं था, वह ’21आते-आते हज़ारों करोड़ का कैसे हो गया, यह किसी से छिपा नहीं है। इसे समझने के लिए ज़्यादा ज्ञान की ज़रूरत नहीं है।”

जाहिर है ‘दैनिक भास्‍कर’ समूह पर पड़े छापों को लेकर मीडिया में ही लोगों की राय अलग अलग है। इस बारे में आयकर विभाग या ईडी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

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