गिरीश उपाध्याय
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हार नहीं मानता दरख्त
लड़ता है आंधियों से
पकड़कर रखता है
डालियां मजबूती से
उड़ा न ले जाएं हवाएं कहीं…
आंधियां लेती हैं
सख्त, बहुत सख्त इम्तहान
नोच लेती हैं कुछ डालियां
दरख्त के तन से
लड़ता रहता है
लहूलुहान दरख्त तब भी
जानता है वह
आंधियां नहीं रहतीं हमेशा
पर उसे तो रहना है
कोई तो हो
जो लड़ सके आंधियों से
परास्त कर सके उनका अहंकार
धराशायी होकर भी दरख्त
बिखरा जाता है
मिट्टी में संघर्ष के बीज
पनप सकें जो
समय के थपेड़ों के साथ
खड़े हों आंधियों के खिलाफ
करें मुकाबला उसका…
ऐसे ही चलता है जीवन
मरती आंधियां ही हैं
दरख्त नहीं मरते कभी