प्रमोद शर्मा
मैं नर्मदा हूं…! आज फिर आपसे मुखातिब हूं। मुझे इस प्रदेश यानी मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी भी कहा जाता है और मध्यप्रदेश को नदियों का मायका भी कहते हैं। मैं इन बेटियों में सबसे वरिष्ठ यानी बड़ी भी हूं। वैसे कोई भी बिटिया अपनी पीड़ा या दुख जितनी आत्मीयता से मायके में कह सकती है अन्य कहीं और नहीं कह सकती, इसलिए भी मैं आज खुलकर अपनी पीड़ा बयान कर रही हूं। मेरी और मेरी अन्य सखियों और बहनों की दुर्दशा का कारण कोई और नहीं अपितु मायका ही है। यह कितने दुर्भाग्य का विषय है कि कोई बेटी अपने मायके, जहां उसे खेलने-कूदने की स्वतंत्रता मिलती है, जहां वह अपनी प्रकृति अनुसार स्वछंदता से जीवन जी सकती है, जहां किसी प्रकार की अनुचित पाबंदी उस पर नहीं होती, वहीं उसके साथ परायों जैसा व्यवहार हो।
मेरे साथ जो कुछ दिन-प्रतिदिन घट रहा है, जैसा व्यवहार मेरे साथ हो रहा है, सरकारें जिस तरह की योजनाएं मुझे आधार बनाकर तैयार कर रही हैं, उससे आखिर मैं कितने दिनों तक नदी रह सकूंगी। मेरा अपनापन, मेरा स्वरूप, मेरी गरिमा, मेरा कल-कल निनाद सब खो जाएगा। मुझे यह डर सताने लगा है कि कहीं मैं पतित पावनी से तालाब और पोखर में तब्दील न हो जाउं? कहते हैं, जब तक बालक रोता नहीं, तब तक तो मां भी उसे स्तनपान नहीं कराती, लेकिन मैंने तो ऐसा नहीं किया। मैंने तो बिना मांगे चारों ओर खुशियां ही खुशियां ही बांटी हैं।
मेरी धारा से जब तुम तृप्त नहीं हुए तो तुमने उसे विस्तारित करने और दूर-दूर तक ले जाने के लिए मेरे सीने पर बांध बना दिए। इससे मेरे प्रवाह में बाधा आई, मेरी अल्हड़ता और प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हुआ फिर भी मैंने प्रसन्नता के साथ इस पीड़ा को हृदय में दबाया। अपनी बांहें फैलाईं और उन बंजर खेतों में भी हरियाली की चादर बिछा दी, जहां कभी अनाज का दाना भी नहीं होता था। तुम्हारी ही करनी से लुप्त होने की कगार पर पहुंची अवंतिका यानी उज्जैन की मेरी छोटी बहन शिप्रा को मेरे जल से पुनर्जीवित करने की योजना बनी। इससे मुझे प्रसन्नता हुई कि चलो मेरी बहन को जीवनदान मिल जाएगा। मैंने उसके समाप्त होते जीवन में एक बार फिर यौवन भरने का प्रयास किया। अब पार्वती की बारी है।
लेकिन इसी तरह की अन्य कई योजनाएं और प्रस्तावित हैं। प्रदेश के दर्जनों छोटे-बड़े शहरों-कस्बों में जलावर्धन योजना के जरिए मेरा जल घर-घर पहुंचाया जा रहा है। राजधानी निवासियों की प्यास भी मेरे ही जल से बुझ रही है। मुझे इसका कोई खेद या दुख नहीं है। मैंने तो तुम्हारे द्वारा मेरे सम्मान में दिए गए प्रदेश की जीवनदायिनी या जीवनरेखा के नाम को पूर्णरूप से सार्थकता प्रदान की, लेकिन ऐसा लगता है कि तुमने तो मेरे सदानीरा और कल-कल प्रवाहिनी नाम को ही नष्ट करने का बीड़ा उठा लिया है।
तुम्हें शायद भरोसा ने हो, लेकिन यह सत्य है कि मेरे बेसिन में मेरी सभी सहायक नदियों की छाती पर 30 बड़े बांध, 135 मंझोले और करीब तीन हजार छोटे बांध तैयार करने की योजना है। इतने बांध बनने के बाद क्या मैं नदी कहला सकूंगी? यकीन मानिए फिर मैं नदी न होकर कई तालाबों और पोखरों में तब्दील हो जाऊंगी।
जरा विचार करो बेटो…! तुमने ही मेरे जल बैंक यानी जंगलों को नष्ट कर दिया। मेरी सखियों यानी सहायक नदियों को नालों में बदल दिया। मेरी जल राशि का उपयोग करने के लिए बांधों की पूरी फौज तैयार कर दी। मेरे ही जल से दूसरी लुप्त हो चुकी नदियों के पुनर्जीवन का खाका तैयार कर लिया। पूरे प्रदेश के दर्जनों शहरों के लोगों को पेयजल पहुंचाने के लिए जलावर्धन योजनाएं बना लीं, किंतु मेरी सेहत के लिए न तो कुछ किया और न ही कभी कुछ सोचा। इतने विशाल क्षेत्र में नहरों और पाइप लाइनों के जरिए जल पहुंचाने के बाद सदियों से की जा रही मेरी परिक्रमा की प्रक्रिया भी बाधित हो रही है।
सरकार ने नर्मदाघाटी विकास प्राधिकरण का गठन किया, लेकिन सच बताना, इसके जरिए किसका विकास या भला किया गया। इससे नर्मदा का न तो विकास हुआ और न ही भला। यदि दिल की बात कहूं तो इससे नर्मदा और नर्मदा घाटी का विनाश ही हुआ है। बताओ, अपने विकास और समृद्धि के लिए ही यह सब किया है न? – (जारी)