सड़कों पर विचरण करती मौत

राकेश अचल 

राजस्थान में बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ के रहने वाले मजदूरों को मौत ने गुजरात में सूरत से 60 किमी दूर कोसांबा इलाके में ढूंढ लिया। मौत एक ट्रक के रूप में आई और 20 लोगों को कुचल कर आगे बढ़ गयी। इनमें से 13 की मौत हो गई। इस हृदयविदारक हादसे से एक बार यह सवाल फिर से किया जा सकता है कि देश में फुटपाथ और सड़कों पर चलना कब तक सुरक्षित हो पायेगा?

मैंने अभी कुछ ही दिन पहले फुटपाथों और सड़कों पर लगने वाले हाट बाजारों से शहरों की सूरत बिगड़ने का मुद्दा उठाया था। कोसांबा का ये हादसा भी इसी सवाल से जुड़ा है। सवाल ये है कि क्या देश में रहने वाले लोगों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद समुचित आवास नहीं हैं कि लोगों को फुटपाथों पर सोना पड़ता है? गुजरात तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का गृह राज्य है। कम से कम गुजरात में तो ये दुर्दशा नहीं होना चाहिए थी।

भारत सड़क दुर्घटनाओं के लिए दुनिया के सबसे ज्यादा अभिशप्त देशों में से एक है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 2019 में सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों की अधिकतम संख्या का मुख्य कारण वाहनों की तेज गति है। राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 2019 में 4,49,002 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। जिसमें 4,51,361 व्यक्ति घायल हुए और 1,51,113 लोग मारे गए। देश में प्रत्येक दिन 1,230 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं जिसमें 414 मौतें हर दिन होती हैं या प्रत्येक घंटे 51 दुर्घटनाएं और 17 मौतें होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं और मौतों की अधिकतम संख्या ओवर-स्पीडिंग के कारण हुई, जिसमें 67.3 प्रतिशत या 1,01,699 मौतें, 71 प्रतिशत दुर्घटनाएं और 72.4 प्रतिशत चोटें थीं।

समस्या फुटपाथों की सुरक्षा की तो है ही, साथ ही आवासहीनता की भी है। हमारे विश्व गुरु बनने के दावे एक तरफ हैं और आवासहीनता एक तरफ। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में तकरीबन 17.72 लाख लोगों के पास अपना घर नहीं था। आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने 2016 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत देश के शहरी इलाकों में ही एक करोड़ बारह लाख घरों की जरूरत बताते हुए काम शुरू किया था।

यदि बीते आठ-नौ साल में चार से पांच लाख लोगों के और रहने का इंतजाम कर भी दिया गया हो तो भी तकरीबन दस से बारह लाख लोगों के पास अपना घर नहीं है। भयंकर सर्दी, भयंकर गर्मी और बारिश से बचने का जतन करने वाले यह बेघरबार लोग बेमौत मरने के लिए अभिशप्त बने ही रहेंगे। आवासहीनता और हादसे एक-दूसरे से वाबस्ता हैं। समस्या जितनी दिखाई देती है उसे कहीं ज्यादा बड़ी है।

आजादी के सत्तर साल में अब भी देश की एक बड़ी आबादी के पास अपना घर नहीं है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत शहरी आवासों के लिए गठित तकनीकी समूह के मुताबिक इस योजना की शुरुआत में (वर्ष 2012 से 2017) भारत में बुनियादी जरूरतों के साथ 1.88 करोड़ घरों की कमी थी। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में यह कमी 2.47 करोड़ थी। इस नाकामी के लिए कांग्रेस या भाजपा सभी जिम्मेदार हैं, कोई कम तो कोई ज्यादा।

घरों की गुणवत्ता के नजरिए से देखा जाए तो हालात और भी खराब है। देश में अब भी साढ़े छह करोड़ से ज्यादा लोग स्लम्स में रह रहे हैं और जनगणना में आंकड़े लेते समय ऐसे लोगों को भी बेघरों की श्रेणी से बाहर कर दिया जाता है जिनके घर प्लास्टिक की पन्नियों, अथवा ऐसी ही सामग्री से बने हुए हैं। बेघरों की श्रेणी से ऐसे घर भी गायब हैं जो छोटी कॉलोनियों में एक कमरे में बसर करते हैं और वहां स्वच्छता की बात भी दूर की कौड़ी होती है। क्योंकि वहां हाथ और शरीर धोने के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता और बने हुए शौचालयों की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। जो ये भी नहीं कर पाते वे फुटपाथों पर सोने के लिए विवश होते हैं और ऐसे ही लोग बेकाबू वाहनों से कुचले जाते हैं फिर चाहे वाहन चालक कोई ट्रक वाला हो या सिनेमा का कलाकार।

फुटपाथों पर सोना मजबूरी होती है, लेकिन हादसों की वजह सिर्फ यही नहीं है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि कुल दुर्घटनाओं में 15 प्रतिशत हिस्सा बिना वैध लाइसेंस के गाड़ी चलाने या बिना सीखे ड्राईवर के कारण था। 2019 में गड्ढों की वजह से सड़क दुर्घटना में 2,140 मौतों के साथ मृत्यु में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 10 साल से अधिक के वाहनों में दुर्घटना से संबंधित मौतों का 41 प्रतिशत हिस्सा था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मारे गए व्यक्तियों की संख्या क्रमशः 32.9 प्रतिशत और 67.1 प्रतिशत थी। यानि आप कहाँ-कहाँ व्यवस्थाओं के लिए भटकते फिरेंगे। भांग तो पूरे कुंए में घुली हुई है ।

देश का दुर्भाग्य है कि यहां फुटपाथों पर सोने वाले ही नहीं उन पर पैदल चलने वाले भी सुरक्षित नहीं होते। सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए पैदल यात्रियों की संख्या 2018 में 22,656 से बढ़कर 2019 में 25,858 हो गई, यानी लगभग 14. 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दुपहिया वाहन और पैदल चलने वालों को मिलाकर यह सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों का 54 प्रतिशत हिस्सा होता है और वैश्विक स्तर पर यह सबसे सबसे कमजोर श्रेणी में शामिल है।

कोसांबा का हादसा भी सम्भवत: ओव्हरलोडिंग की वजह से हुआ। लगभग 10 फीसदी मौतें और कुल दुर्घटनाओं का 8 फीसदी हिस्सा वाहनों में ओवरलोड के कारण था। लगभग 69,621 (15.5 प्रतिशत) मामले ‘हिट एंड रन’ के रूप में दर्ज किए गए, जिससे 29,354 मौतें (19.4 प्रतिशत) और 61,751 चोटें (13.7 प्रतिशत) शामिल हैं। 2018 की तुलना में, हिट एंड रन मामलों में 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और हिट और रन के कारण होने वाली मौतों में 0.5 प्रतिशत की।

आवास बनाने की योजनाएं हर सरकार में चलती रहीं, सबसे महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू की। उन्होंने न केवल की बल्कि उसका जबर्दस्त प्रचार हुआ और ऐसा माना भी गया कि जब मोदी सरकार दूसरी बार आई तो उसमें एक फैक्टर प्रधानमंत्री आवास का भी रहा। मोदी सरकार ने कहा कि वह 2022 तक वह सब के लिए आवास का बंदोबस्त कर देगी, लेकिन अभी मंजिल दूर है। नवम्बर 2019 तक के सरकारी आंकड़े के मुताबिक भारत के शहरी क्षेत्रों में जिन 93 लाख आवासों को स्वीकृत किया गया है, उनमें से तकरीबन 28 लाख मकानों को ही पूर्ण करके सौंपा गया है, जबकि 55 लाख मकान अब भी निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं यानी उनका काम अभी अधूरा है। हमें उम्मीद करना चाहिए कि आने वाले दिनों में लोगों को फुटपाथों पर सोने और बेमौत मरने के अभिशाप से मुक्ति दिलाने में तमाम सरकारी कोशिशें कारगर साबित होंगी।

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