अजय बोकिल
इस देश में नाम बदलने की राजनीति क्या मोड़ ले सकती है, इसे समझना हो तो जरा महाराष्ट्र चलें। वहां औरंगाबाद शहर का नाम बदलकर संभाजी नगर करने को लेकर सत्तारूढ़ महाआघाडी में ठन गई है। सत्ता में शामिल शिवसेना जहां शहर का नाम बदलने पर आमादा है तो कांग्रेस ने किसी भी शहर का नाम बदलने का खुला विरोध किया है। इस बीच अतिवादी मराठा संगठन ‘संभाजी ब्रिगेड’ ने मांग की है कि यदि औरंगाबाद को संभाजी नगर करने में दिक्कत आ रही है तो राज्य सरकार पुणे शहर का नाम बदलकर ‘जिजापुर’ कर दे। जिजापुर यानी शिवाजी महाराज की आदर्श माता जिजाबाई।
तर्क यह है कि जिजामाता ने ही उजड़ चुके पुणे शहर को फिर से बसाया था। हालांकि खुद पुणेवासी नाम बदलने की इस मांग से इत्तफाक नहीं रखते। सोशल मीडिया में भी इस मांग का तगड़ा विरोध हो रहा है। पुणेवासियों का मानना है कि शहर का नाम बदलने से उनकी पहचान छिन जाएगी। दरअसल इस मांग के पीछे मराठा बनाम ब्राह्मण राजनीति भी काम कर रही है। हैरानी की बात यह है कि ऐतिहासिक प्रतीकों के सम्मान का हवाला देकर जिन शहरों के नाम बदले जा रहे हैं, उन शहरों के निवासियों की राय कोई नहीं पूछ रहा और न ही किसी तरह की रायशुमारी इसको लेकर की जा रही है कि शहरवासी क्या चाहते हैं। कुल मिलाकर भाव यही है कि हमे बदलना है सो, बदल के रहेंगे।
महाराष्ट्र के एक प्रमुख शहर औरंगाबाद (एक औरंगाबाद बिहार में भी है) का नाम बदलने की मांग वैसे तो पुरानी है। बताया जाता है कि इस शहर का पुराना नाम खडकी था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे जीत कर इसका नाम औरंगाबाद कर दिया। चूंकि औरंगाबाद नाम से औरंगजेब जैसे धर्मांध बादशाह की यादें जुड़ी हैं, इसलिए इसका नाम शिवाजी के बेटे छत्रपति संभाजी राजे के नाम करने की मांग की जाती रही है। इतिहास बताता है कि औरंगजेब ने संभाजी को कैद कर उन्हें बहुत यातनाएं देकर मारा।
वैसे औरंगाबाद का नाम बदलने की मांग राजनीति के सर्कस में बरसों से घूमती रही है। कांग्रेस इसके विरोध में इसलिए रही है, क्योंकि वह मानती है कि नामांतरण की इस मांग के पीछे शहर की मुस्लिम पहचान खत्म करने की चाल है। जबकि खुद को अभी भी हिंदूवादी बताने वाली शिवसेना और मराठा राजनीति पर जिंदा राष्ट्रवादी कांग्रेस इस मांग के समर्थन में है। भाजपा भी इसके पक्ष में रही है, लेकिन राज्य में सत्ता में रहते हुए, उसने भी शहर का नाम नहीं बदला।
अब सत्तारूढ़ शिवसेना ने ऐलान कर दिया है कि वह औरंगाबाद का नाम बदल कर रहेगी। इसका ऐलान उसने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में किया। यह मांग उठते ही महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं राजस्व मंत्री बालासाहब थोरात ने कहा कि हम किसी भी शहर का प्रचलित नाम बदलने के पक्ष में नहीं हैं। दूसरे महाआघाडी सरकार न्यूनतम समान कार्यक्रम के आधार पर काम कर रही है और औरंगाबाद का नाम बदलना इसमें शामिल नहीं है। हालांकि इसको लेकर कांग्रेस में भी आंतरिक मतभेद हैं।
यहां तक भी ठीक था। पूरे मामले में चौंकाने वाली बात पुणे शहर का नाम भी बदलने की है। ऐसी मांग संभवत: पहली बार ही हुई है। यह मांग राज्य के अतिवादी मराठा संगठन ‘संभाजी ब्रिगेड’ ने की है। ब्रिगेड के प्रदेश संगठक संतोष शिंदे ने खुलेआम कहा कि औरंगाबाद के नामांतरण में यदि समय लग रहा है तो पुणे का ही नाम बदलकर जिजापुर कर दिया जाए। क्योंकि आधुनिक पुणे शहर को जिजामाता ने बसाया था।
गौरतलब है कि आदिलशाही के जमाने से पुणे शिवाजी के पूर्वजों की जागीर थी। जिजामाता बाल शिवाजी को लेकर उजड़ चुके पुणे पहुंचीं और उन्होंने शिवाजी के हाथों वहां जमीन पर सोने का हल चलवाया था। संतोष शिंदे का कहना है कि पूरा पुणे जिला ही माता जिजाबाई, छत्रपति शिवाजी तथा संभाजी के शौर्य का प्रतीक है, इसलिए इस शहर का नाम बदला जाना चाहिए।
यूं औरंगाबाद के बरक्स पुणे का मामला काफी अलग है। क्योंकि इस शहर का इतिहास दसवीं सदी तक जाता है। ईस्वी सन 937 में जारी एक ताम्रपत्र के अनुसार राष्ट्रकूट साम्राज्य के समय इस शहर का नाम ‘पुण्य विष्य’ था। अर्थात पवित्र वार्ता। देवगिरी साम्राज्य के शासक यादव वंश ने शहर का नाम बदलकर ‘पुण्यकाविष्य’ यानी पवित्र भूमि कर दिया। संक्षेप मे इसे ‘पुण्णक’ कहा जाता था। शिवाजी के पिता शाहजी राजे भोसले के समय इसे कस्बा पुणे कहा जाने लगा। बाद में वही पुणे हो गया। अंग्रेजों के जमाने में यह पूना हुआ और 1978 में अधिकृत तौर पर इसका नाम पुणे कर दिया गया।
अब फिर इस शहर का नाम बदलने की मांग उठी है। इससे यह सवाल भी उठ रहा है कि राजनीतिक स्वार्थों के लिए किसी शहर का नाम कितनी बार बदला जाएगा या ऐसा करना कितना उचित है? ज्यादातर पुणेवासी अपने शहर का नाम बदले जाने के विरोध में हैं। फेसबुक पर ‘आम्ही पुणेकर’ (हम पुणवासी) अकाउंट पर इस मांग का व्यापक विरोध हो रहा है। गौरतलब है कि नाम परिवर्तन की मांग करने वाली ‘संभाजी ब्रिगेड’ मराठा संगठन ‘मराठा सेवा संघ’ की शाखा है।
मराठा सेवा संघ की स्थापना पुरुषोत्तम खेड़ेकर ने 1990 में की थी। संगठन मराठा समाज के कल्याण के कई कार्यक्रम भी चलाता है। साथ ही यह शिवाजी महाराज व अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में मराठों को आरक्षण देने का प्रबल समर्थक और अपने भारी ब्राह्मण विरोध के लिए भी जाना जाता है। यहां तक कि जिन बाबा साहब पुरंदरे ने अपना संपूर्ण जीवन शिवशाही की सेवा में बिता दिया, उन्हें महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती फडणवीस सरकार द्वारा पुरस्कृत करने का विरोध संभाजी ब्रिगेड ने इसलिए किया था, क्योंकि पुरंदरे जाति से ब्राह्मण हैं।
इसी ब्रिगेड ने 2004 में पुणे के प्रतिष्ठित ‘भांडारकर प्राच्य शोध संस्थान’ में भारी तोड़फोड़ की थी। जिसमें कई प्राचीन पांडुलिपियां नष्ट हो गई थीं, जिनमें आदि शंकराचार्य की हस्तलिखित पांडुलिपियां भी थीं। संस्थान पर ये हमला एक अमेरिकी लेखक की शिवाजी महाराज पर लिखी किताब के विरोध में हुआ था, जिसमें ब्रिगेड के अनुसार शिवाजी की छवि बिगाड़ने की कोशिश की गई थी। शोध संस्थान पर इस हमले की तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कड़ी निंदा की थी।
बहरहाल संभाजी ब्रिगेड ने पुणे शहर के नामांतरण की मांग क्यों उठाई, इसके पीछे क्या राजनीति है, इसे समझना जरूरी है। संभाजी ब्रिगेड यूं तो अराजनीतिक संगठन है, लेकिन इसके प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण गायकवाड पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे। ब्रिगेड की मांगों को शरद पवार की राकांपा का भी परोक्ष समर्थन रहता है, क्योंकि राकांपा मुख्य रूप में मराठा नेताओं की पार्टी है। लेकिन प्रवीण गायकवाड की ताजा मांग ने सत्ता में शामिल शिवसेना को जरूर उलझन में डाल दिया है।
शिवसेना नेत्री एवं विधान परिषद की उप सभापति नीलम गोह्रे ने कहा कि पुणे का नाम बदलने की मांग आई तो उस पर सरकार विचार करेगी, लेकिन इस पर सभी की सहमति जरूरी है। दूसरी तरफ जानकारों का कहना है कि यह औरंगाबाद का नाम बदलने के शिवसेना के हिंदूवादी दांव का प्रति दांव है। क्योंकि पुणे का नाम बदलने पर नया बवाल खड़ा हो सकता है। इससे शिवसेना पर दबाव बढ़ेगा और हो सकता है कि वह औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर करने के दावे से पीछे हटे। क्योंकि कांग्रेस यह नहीं चाहती।
इस बीच एक संगठन हिंदू सेना ने औरंगाबाद का नाम बदलने के लिए दबाव बढ़ाया तो ठाकरे सरकार ने औरंगाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण छत्रपति संभाजी राजे विमानतल करने सम्बन्धी अधिसूचना शीघ्र जारी करने को लेकर केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री को फिर चिट्ठी लिख दी। मोदी सरकार ऐसा करेगी या नहीं, यह देखने की बात है। हालांकि इस राजनीतिक खींचतान के बावजूद महाआघाडी सरकार गिरने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि सबके अपने स्वार्थ हैं। इस पूरे मामले में भाजपा महाआघाडी सरकार के मजे लेने के मूड में है। लेकिन गंभीरता से सोचने की बात यह है कि नाम बदलने की राजनीति, राजनीति को भी किस स्तर पर ले जाएगी?