राकेश अचल
बीते 22 मार्च को बेपटरी हुआ भारत अब पटरी पर आएगा भी या नहीं? ये सवाल हर आदमी के मन में पैदा हो रहा है। कोरोना के कारण जिन रेलों को बंद किया था वे धीरे-धीरे फिर चालू हो रही हैं, लेकिन कोरोना भी फिर लौटने को कमर बांधे दिखाई दे रहा है। किसान और जातीय संघर्ष देश को पटरी पर आने देने के मूड में नजर नहीं आ रहा है। बिहार विधानसभा चुनावों के हो-हल्ले में किसान आंदोलन की अनुगूंज किसी को सुनाई नहीं दी, लेकिन पंजाब में किसान आंदोलन आज भी जारी है वो भी रेल पटरियों पर, लिहाजा रेलें वहां न आ रही हैं और न जा रही हैं।
ताजा खबर राजस्थान से आयी है। राजस्थान के गुर्जर एक बार फिर आरक्षण की मांग को लेकर पटरियों पर आ गए हैं। अपनी मांगें मनवाने के लिए रेल पटरियों के इस्तेमाल को मैं ठीक नहीं मानता। किसान हों या छात्र उन्हें अपनी मांगों के प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित करने या सरकार को झुकाने के लिए रेल पटरियों पर बैठने के बजाय कोई दूसरा रास्ता अख्तियार करना चाहिए। रेलें रोकना गांधीवादी तरीका नहीं है।
भारत की मौजूदा सरकार वैसे ही रेल के पीछे पड़ी है। सरकार की कोशिश आम आदमी के इस सबसे सुलभ साधन को भी निजी हाथों में सौंपकर मुनाफ़ा कमाने की है। कोरोना काल में सरकार को रेलें बंद करने का बहाना मिला था, अब जैसे तैसे रेलें चलना शुरू हुई हैं तो किसान और गुर्जर मिलकर उनका चक्का जाम करने पर आमादा हैं। आंदोलनकारियों को समझना चाहिए कि रेलों ने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा। उनकी लड़ाई सरकार से है, रेलों से नहीं। रेल तो जनता की सम्पत्ति हैं, उनकी सुरक्षा जनता को ही करना है। आने वाले दिनों में ये ही रेलें जब देव दुर्लभ हो जायेंगी तब रेलों का महत्व समझ में आएगा।
मैं शुरू से किसानों के आंदोलन के साथ हूँ। लेकिन मैं उनके रेलें रोकने के पक्ष में नहीं हूं। किसानों को अपने आंदोलन को और प्रभावी बनाने के लिए कोई दूसरी रणनीति अपनाना चाहिए थी जिससे सरकार जल्द उनकी बात सुनती। किसानों का आंदोलन व्यापक होने के बजाय एक या दो राज्यों तक सीमित रह गया, क्योंकि इस आंदोलन के निहितार्थों से देश भर के किसानों को अवगत नहीं कराया जा सका। सरकार किसान आंदोलन को लेकर इसलिए भी बेफिक्र है क्योंकि उसे पता है कि किसान ज्यादा दिन आंदोलन नहीं कर सकता, आखिर उसे अंत में खेतों में ही लौटना पड़ेगा। किसानों की इसी कमजोरी का लाभ सरकार उठा रही है।
राजस्थान में भी आरक्षण को लेकर गुर्जरों का आंदोलन नया नहीं है। राजस्थान के गुर्जर लम्बे समय से आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन करते आये हैं। वे हर सरकार में आंदोलन करते हैं। सरकार दबाव में आकर घोषणा भी करती है और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट के पाले में डालकर आगे बढ़ जाती है। गुर्जरों को आरक्षण मिल नहीं पाता और शायद मिल भी नहीं पायेगा। गुर्जरों के नेता किरोड़ीमल बैंसला हों या हिम्मत सिंह गुर्जर इस हकीकत को या तो समझते नहीं हैं या फिर जानबूझकर नासमझ बने हुए हैं ताकि उनकी नेतागीरी चलती रहे और मूंछ भी नीची न हो।
भारत का आंदोलनरत समाज सरकार से कुछ भी हासिल करने की स्थिति में नहीं है। सरकार इस समय सर्वशक्तिमान है। वो जो चाहती है सो करती है। पिछले छह-सात साल में सरकार की कारगुजारियां देखकर इस बात का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। इस समय सारे तोते, मैना और मोर सरकार के इशारे पर नाच रहे हैं। अकेले किसानों के न नाचने से क्या होने वाला है? सरकार एक न एक दिन किसानों को भी अपने इशारे पर नाचने के लिए मजबूर कर देगी, क्योंकि क़ानून तो सरकार लगातार अपने मन के बना ही रही है।
सरकार को नैतिक रूप से झुकाने के लिए अब रेल पटरियों पर बैठने से काम नहीं चलेगा, सरकार केवल वोट की ताकत से झुक सकती है, इसलिए जब भी आपको वोट करने का समय मिले सरकार को झुकाने का प्रयत्न अवश्य कीजिये, अर्थात वोट से चोट करना सीखिये। आपको जिस स्तर पर अपनी मांगें मनवाना है उस स्तर पर वोट करने का अवसर इस्तेमाल कीजिये। अभी ये अवसर बिहार की जनता के सामने है। मध्यप्रदेश की जनता के सामने है, कल को ये ही अवसर दूसरे राज्यों की जनता के सामने होगा।
आंदोलनरत साथियों को समझना होगा कि जिस तरह से खरीद-फरोख्त कर राज्यों की सरकारें गिरा या बना ली जाती हैं उसी तरह केंद्र की सरकार को गिराया या बनाया नहीं जा सकता। केंद्र की सरकार रेल पटरियों पर बैठने से तो जाने वाली नहीं है। सरकार बदलने के लिए किसी को भी अब 2024 तक प्रतीक्षा करना होगी, ऐसे में सरकार से अपनी मांगें मनवाना है तो रेल पटरियों से उठकर सड़कों पर आइये। आवागमन और परिवहन का एक साधन तो आपको छोड़ना ही पडेगा। रेलें रोकना देश को और पीछे धकेलने के मौन अभियान में शामिल होने जैसा है। सरकार की साजिशों और ‘हिडन एजेंडे’ को असफल करना है या लोहा लेना है तो संगठित होइए, जन आंदोलन कीजिये। लाठी-गोली की परवाह मत कीजिये। परवाह करना है तो देश की बची-खुची सम्पत्ति की कीजिये।
देश को बेपटरी होने से रोकने के लिए सबको मिलजुलकर काम करना होगा, क्योंकि देश इस समय संक्रमणकाल से गुजर रहा है। आने वाले दिन और कष्टप्रद हो सकते हैं। कोरोना फिर पलटी मार सकता है। इंग्लैंड में तो कोरोना ने फिर से दस्तक दे ही दी है, वहां दोबारा लॉकडाउन लागू किया जा रहा है। कोरोना की नौबत कहीं भी, कभी भी बज सकती है इसलिए सावधान रहिये। रेल को बेपटरी होने से रोकिये।