रवि भोई
वैसे तो पीएचई छोटा सा विभाग है और उसकी पहचान हैंडपंप खुदाई करने वाले विभाग के तौर पर ज्यादा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इन दिनों पीएचई याने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग खूब सुर्ख़ियों में है। गांवों में घर-घर साफ़ ‘पीने का पानी’ पहुँचाने की योजना के ठेके में गड़बड़ी और बंदरबांट को लेकर लोग दबी जुबान से पीएचई विभाग की बाल की खाल निकालते थे, लेकिन कैबिनेट में चर्चा के बाद भूपेश बघेल सरकार ने पीएचई विभाग के जल जीवन मिशन के सात हजार करोड़ के सभी टेंडर को निरस्त कर लोगों की शंका पर मुहर लगा दी। कहते हैं कैबिनेट में पीएचई मंत्री रुद्रकुमार गुरु ने टेंडर रद्द करने का विरोध किया, लेकिन मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों का रुख उनके समर्थन में नहीं दिखा। यह योजना करीब 15 हजार करोड़ की है, जिसमें 50 फीसदी राशि भारत सरकार देगी।
चर्चा है कि छत्तीसगढ़ में जल जीवन मिशन को लेकर भारत सरकार ने राज्य सरकार को पांच पेज की एक चिट्ठी भेजी है। इस पत्र में कई सवाल उठाए गए हैं और गड़बड़ियों की तरफ भी इंगित किया गया है। यह भी बताया जा रहा है कि भारत सरकार जल जीवन मिशन की प्रगति की समीक्षा के लिए जल्द ही एक केंद्रीय टीम छत्तीसगढ़ भेजने वाली है। भारत सरकार की तरफ से कोई मीन-मेख निकाला जाय, उससे पहले ही छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले का पटाक्षेप कर दिया। कुछ महीने पहले केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने रायपुर में इस योजना की समीक्षा करते हुए गांवों में नल लगाने के काम की गति काफी धीमी होने पर पीएचई के तत्कालीन ईएनसी को आड़े हाथों लिया था। तत्कालीन ईएनसी को भारत सरकार ने कारण बताओ नोटिस भी दिया था।
इसके बाद सरकार ने निलंबित चीफ इंजीनियर डॉ. मगनलाल अग्रवाल को बहाल कर प्रभारी ईएनसी बनाया, लेकिन दुर्भाग्य कि योजना पूरी होने की जगह उस पर पलीता लग गया। कहते हैं धमतरी, गरियाबंद समेत कई जिलों में इस योजना का टेंडर फाइनल होने से पहले ही काम करा लिए जाने की खबरें आने लगी थी। सरकार ने टेंडर में गड़बड़ी की जांच के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति बनाई है। अफसरों की कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही सख्त कदम से कई सवाल खड़े होने लगे हैं।
कहा जाने लगा है कि सरकार ने टेंडर तो रद्द कर दिया, पर दोषी कौन है, उसका खुलासा क्यों नहीं कर रही है? जाँच रिपोर्ट आ जाती, गड़बड़ी की जिम्मेदारी तय हो जाती, फिर कार्रवाई होती तो बात कुछ अलग होती और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता। भारत सरकार ने 2020-21 में राज्य में 20 लाख 61 हजार घरेलू कनेक्शन लगाने का लक्ष्य दिया है, लेकिन अक्टूबर तक केवल एक लाख 47 हजार कनेक्शन ही दिए जा सके हैं। टेंडर निरस्त होने से काम और पिछड़ जाने की बात कही जा रही है। काम की सुस्त रफ्तार से भारत सरकार पहले ही नाराज है और टेंडर निरस्त होने से निश्चित ही नई प्रक्रिया में समय लगेगा। याने ‘एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा।‘ इस सबसे छत्तीसगढ़ की छवि पर कालिख लगी है तो गांव वालों के सपनों को ठेस पहुंची है।
पीएचई को ईएनसी की तलाश
पीएचई में टेंडर घोटाले की ख़बरों के बाद सरकार ने पूरी प्रक्रिया तो रद्द कर दी, लेकिन अब तक किसी पर एक्शन नहीं लिया है। सरकार ईएनसी और कुछ दूसरे अफसरों पर कार्रवाई तो करना चाहती है, लेकिन किसे नया ईएनसी बनाया जाय, यह ‘यक्ष प्रश्न’ जैसा हो गया है। नल-जल योजना में काम न होने के कारण भूपेश सरकार ने टी.जी. कोसरिया को ईएनसी के पद से हटाकर एम.एल.अग्रवाल को प्रभारी बनाया था। कोसरिया 2012 से कुछ महीने पहले तक ईएनसी थे और अभी मंत्रालय में पदस्थ हैं।
पीएचई के एक चीफ इंजीनियर जेके शर्मा उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री उमेश पटेल के ओएसडी हैं। जेके शर्मा मंत्री उमेश पटेल के पिता स्व. नंदकुमार पटेल के भी ओएसडी रह चुके हैं। कहते हैं जेके शर्मा विभाग में वापसी के इच्छुक नहीं हैं। पीजी शांडिल्य जगदलपुर में चीफ इंजीनियर हैं। सरकार उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपना नहीं चाहती। जरूर चर्चा है कि ईएनसी बनने के इच्छुक एक अफसर ने एक मंत्री के जरिए लॉबिग शुरू की है। अब देखना है कि सरकार उन्हें कितना भाव देती है?
जोगी पार्टी पर मंडराता खतरा
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी के निधन के बाद उनकी पार्टी छजका (छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी) पर खतरा मंडराता दिख रहा है। एक बहुत पुरानी कहावत है कि जब जहाज डूबने लगता है, तो सबसे पहले चूहे भागते हैं, वैसा ही कुछ जोगी कांग्रेस के साथ होता दिखाई दे रहा है। वर्षों जोगी जी के आसपास मंडराने वाले अब उस पार्टी में दिखाई नहीं देते। कुछ उसमें से कांग्रेस में आ गए। अजीत जोगी के निधन के बाद बचे चार विधायकों वाली इस पार्टी के दो विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद कुमार शर्मा यहाँ बेचैन लग रहे हैं। दोनों कांग्रेस में वापसी की बाट जोह रहे हैं। कांग्रेस में विधायकों के ओवरफ्लो से इनका रास्ता क्लीयर नहीं हो रहा है।
धर्मजीत सिंह की भाजपा, खासकर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से निकटता चर्चा का विषय है। देर-सबेर उनके भाजपा में जाने की खबरें उड़ती रहती है। डॉ. रेणु जोगी को तो बेटे अमित जोगी का साथ देना ही होगा। डॉ. रेणु जोगी से कांग्रेस नेताओं को परहेज नहीं, पर वे अमित से भय खाते हैं। अमित ने मरवाही चुनाव में लोगों को भाजपा के पक्ष में वोटिंग की अपील कर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा ही खोल लिया है। शायद अमित जोगी मरवाही चुनाव लड़ पाते तो ऐसी परिस्थिति न बनती। अमित जोगी को जाति प्रमाण पत्र मामले में कब न्याय मिलेगा, फिर वे कब राजनीति में दमखम दिखा पाएंगे, कहना मुश्किल है। लोग कहने लगे हैं भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री रहते तक तो अमित जोगी के कैरियर में उजाला नजर नहीं आता।
सरकार के पंच प्यारे
सरकार में समय और परिस्थिति के अनुसार प्यादे तो बदलते रहते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। आजकल छत्तीसगढ़ में सरकार में दखल को लेकर पंच प्यारों की बड़ी चर्चा है। कहते हैं सरकार के कई कामों में पंच प्यारों की दखल है। पंच प्यारों की दखलंदाजी से सरकार के भीतर ही एक वर्ग खफा बताया जाता है, लेकिन करें क्या? ताकतवर के सामने तो कमजोर लोगों को घुटने टेकने ही पड़ते हैं। चर्चा है कि ये पंच प्यारे सारी चीजें अपने अनुकूल करने में लगे रहते हैं।
जुगाड़ के उस्ताद
सरकार किसी की भी हो, कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपना जुगाड़ फिट कर ही लेते हैं या फिर सरकार में जुगाड़ वाले लोगों की जरूरत होती है। ऐसे लोग भाजपा राज में दिखते थे और अब कांग्रेस राज में भी दिख रहे हैं। ये लोग सरकारी सामानों की सप्लाई से लेकर दूसरे कामों में भी माहिर होते हैं। आजकल राजधानी में ऐसे दो लोगों की चर्चा है, जो ओहदेदारों के काले-पीले काम में सफेदी लगाने के उस्ताद बताये जाते हैं। इनका राजधानी के आउटर इलाके की एक पॉश कालोनी में दफ्तर है और कहते हैं इन्होंने मारीशस और दुबई में भी आफिस खोल रखा है।
आईपीएस का पीएसओ से लगाव
चर्चा है कि एक जिले के पुलिस अधीक्षक अपने पीएसओ को न केवल अपने बंगले में रखते हैं, बल्कि अपने जैसी ही सुविधा भी उपलब्ध करवाते हैं। बड़े जिले में रहने के बाद छोटे जिले में आए, ये आईपीएस अफसर बंगले में अकेले रहते हैं। कहते हैं साहब अभी तक अविवाहित हैं। स्वभाविक है किसी का साथ चाहिए, लेकिन उनका पीएसओ जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है।
मंत्री के जन्मदिन पर विज्ञापन
आमतौर पर मंत्रियों के जन्मदिन पर बधाई और शुभकामनाओं से अखबार के पन्ने भरे रहते हैं और जगह-जगह बैनर पोस्टर लगे दिखते हैं, लेकिन कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ सरकार के एक मंत्री के जन्मदिन पर अखबार के पन्ने खाली-खाली दिखे, वहीँ राजधानी में कहीं भी बैनर पोस्टर भी नजर नहीं आए। मंत्रीजी के जन्मदिन पर बधाई संदेश वाला विज्ञापन किसी अखबार में नजर नहीं आया, लेकिन एक अखबार में मंत्री जी के जन्मदिन पर एक एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के जिलाध्यक्ष द्वारा बधाई वाला विज्ञापन जरूर नजर आया। अब लोग इसका रहस्य तलाश रहे हैं कि कांग्रेस नेताओं ने विज्ञापन नहीं दिया और एनसीपी नेता ने क्यों विज्ञापन दिया?
(लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)