राकेश अचल


हो चले छोटे सिकुड़ कर दिन,कहाँ हो लौट आओ


सुन रहे हो तुम मुझे मोमिन,कहाँ हो लौट आओ


*


रात लम्बी हो चली फिर सर्दियों की जानते हो


डस रही है याद की नागिन,कहाँ हो लौट आओ


*


मै अकेला हूँ किसे आवाज दूँ घनघोर वन में


भूख से व्याकुल खड़ी बाघिन,कहाँ हो लौट आओ


*


बरछियाँ लेकर हवा चलती दिखाई दे रही है


खो गयी है मखमली जर्किन,कहाँ हो लौट आओ


*


हल्फिया मेरे बयानों को हँसी में मत उड़ाना


रह नहीं सकता तुम्हारे बिन, कहाँ हो लौट आओ


*


बह रहा है खून, कोई चूसने वाला नहीं है


चुभ गयी है उँगलियों में पिन,कहाँ हो लौट आओ


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