जरूरी है मीडिया एजुकेशन काउंसिल

नई दिल्ली/ ”मीडिया शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मीडिया एजुकेशन काउंसिल की आवश्यकता है। इसकी मदद से न सिर्फ पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार होगा, बल्कि मीडिया इंडस्ट्री की जरुरतों के अनुसार पत्रकार भी तैयार किये जा सकेंगे।” यह विचार प्रसिद्ध विद्वान एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने आज भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में व्यक्त किए।

‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : भारत में पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षा की भविष्य की दिशा’ विषय पर बोलते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में कहीं भी मीडिया या पत्रकारिता शब्द का जिक्र नहीं है, लेकिन हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति से प्रेरणा लेते हुए जनसंचार और पत्रकारिता शिक्षा के भविष्य के बारे में सोचना होगा।

डॉ. जोशी ने कहा कि अख़्तर अंसारी का एक शेर है, ‘अब कहां हूं कहां नहीं हूं मैं, जिस जगह हूं वहां नहीं हूं मैं, कौन आवाज़ दे रहा है मुझे, कोई कह दो यहां नहीं हूं मैं।’ यानी जो कहीं नहीं है, वो हर जगह है। जैसे शिक्षा नीति में मीडिया शब्द न होकर भी हर जगह है। उन्होंने कहा कि तकनीक ने मीडिया को भी बदल दिया है। आज स्कूलों में 3डी तकनीक से पढ़ाई हो रही है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पॉइंट 11 की चर्चा करते हुए हमें होलिस्टिक एजुकेशन पर ध्यान देना होगा। इस संदर्भ में अगर हम भारतीय संस्कृति की बात करें, तो प्राचीन काल में भारतीय शिक्षा-क्रम का क्षेत्र बहुत व्यापक था। शिक्षा में कलाओं की शिक्षा भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती थीं और इनमें चौंसठ कलाएं महत्वपूर्ण हैं। अगर हम देखें तो ये कलाएं आज हमारे अत्याधुनिक समाज का हिस्सा हैं।

नई शिक्षा नीति है एक क्रांतिकारी कदम
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो. गीता बामजेई ने कहा कि नई शिक्षा नीति भारत की शिक्षा व्यवस्था में एक क्रांतिकारी कदम है। प्रो. बामजेई ने कहा कि अगर हम इस शिक्षा नीति को सही तरह से अपनाते हैं, तो ये नीति हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तरफ ले जाएगी। उन्होंने कहा कि इस शिक्षा नीति से ज्ञान और कौशल के माध्यम से एक नए राष्ट्र का निर्माण होगा।

मीडिया शिक्षा के परिदृश्य पर चर्चा करते हुए प्रो. बामजेई ने कहा अब समय आ गया है कि हमें जनसंचार शिक्षा में बदलाव करना चाहिए। हमें पत्रकारिता के नए पाठ्यक्रमों का निर्माण करना चाहिए, जो आज के समय के हिसाब से हों। उन्होंने कहा कि हमें अपना विजन बनाना होगा कि पत्रकारिता के शिक्षण को हम किस दिशा में लेकर जाना चाहते हैं।

मीडिया शिक्षण में चल रही है स्पर्धा
इस मौके पर नवभारत, इंदौर के पूर्व संपादक प्रो. कमल दीक्षित ने कहा कि मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। अब हमें यह तय करना होगा कि हमारा लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर बेहतर पत्रकारिता शिक्षण का माहौल बनाने का है।

प्रो. दीक्षित ने कहा कि आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि हम ऐसे कोर्स बनाएं, जिनमें कंटेट के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो। प्रो. दीक्षित ने कहा कि हमें यह तय करना होगा कि पत्रकारिता का मकसद क्या है। क्या हमारी पत्रकारिता बाजार के लिए है, कॉरपोरेट के लिए है, सरकार के लिए है या फिर समाज के लिए है। अगर हमें सच्चा लोकतंत्र चाहिए, तो पत्रकारिता को अपने लक्ष्यों के बारे में बहुत गहराई से सोचना होगा।

जो चीज ‘चैलेंज’ करती है, वहीं ‘चेंज’ करती है
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की प्रो. कंचन मलिक ने अपने संबोधन में कहा कि अगर हम नई शिक्षा नीति का गहन अध्ययन करें, तो हम पाएंगे इसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति आत्मनिर्भर बनने पर जोर देती है। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं, कि ‘जो चीज आपको चैलेंज करती है, वही आपको चेंज करती है।’

प्रो. मलिक ने कहा कि जनसंचार शिक्षा का प्रारूप बदलना हमारे लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति से प्रेरणा लेकर हम यह कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया शिक्षा का काम सिर्फ छात्रों को ज्ञान देना नहीं है, बल्कि उन्हें इंडस्ट्री के हिसाब से तैयार भी करना है। मीडिया शिक्षकों को इस विषय पर ध्यान देना होगा।

न्यू मीडिया है अब न्यू नॉर्मल
न्यू मीडिया पर अपनी बात रखते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की प्रोफेसर पी. शशिकला ने कहा कि न्यू मीडिया अब न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा। हमें बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने चाहिए।

क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की जरुरत
इस मौके पर मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एहतेशाम अहमद खान ने कहा कि नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षा के संस्थानों को तकनीक के हिसाब से खुद को तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय जनसंचार संस्थान को इस विषय पर सभी मीडिया संस्थानों का मार्गदर्शन का काम करना चाहिए।

समाज के विकास के लिए संवाद आवश्यक
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्विद्यालय के प्रोफेसर कृपाशंकर चौबे ने कहा कि किसी भी समाज को आगे ले जाने और उसके विकास के लिए संवाद जरूरी है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति गुणवत्ता की बात करती है। इसके साथ ही हमें शिक्षा के बाजारीकरण और महंगी होती शिक्षा पर लगाम लगाना होगा।

संवाद और संचार का भारतीय मॉडल
भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह देश में पहला मौका है, जब हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में जनसंचार शिक्षा के बारे में बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य एक बेहतर दुनिया बनाना है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि मीडिया शिक्षा की यात्रा को वर्ष 2020 में 100 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन हमें अभी भी बहुत काम करना बाकी है। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा के पास विदेशी मॉडल की तुलना में बेहतर संचार मॉडल हैं। इसलिए हमें संवाद और संचार के भारतीय मॉडल के बारे में बातचीत शुरू करनी चाहिए। इसके अलावा भारत की शास्त्रार्थ परंपरा पर भी हमें चर्चा करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि शिक्षा का व्यवसायीकरण चिंता का विषय है। इसके खिलाफ सभी लोगों को एकत्र होना चाहिए। हमें समाज के अंतिम आदमी के लिए शिक्षा के द्वार खोलने चाहिए। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि जनसंचार शिक्षा में हमें क्षेत्रीय भाषाओं पर काम करने की जरुरत है।

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