अजय बोकिल
उत्तराखंड की नन्ही पर्यावरण एक्टिविस्ट रिद्धिमा ने दुनिया के पहले इंटरनेशनल क्लीन एयर डे फॉर ब्लू स्काई (नीले आकाश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस) के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जो मार्मिक चिट्ठी लिखी है, वो कुछ लोगों को अतिरंजित भले लगे, लेकिन उसमें भविष्य की जो चेतावनी छिपी है, वह वाकई गंभीर है। प्रधानमंत्री इसे किस रूप में लेते हैं, पता नहीं लेकिन देश की हवा साफ रहे, इस बारे में उनसे गंभीर पहल अपेक्षित है। क्योंकि देश में कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन से और कई दिक्कतें भले पैदा हुई हों, लेकिन वायु प्रदूषण अपने निचले स्तर पर पहुंच गया था।
उन दिनों में बरसों बाद शहरी लोगों ने साफ नीला आसमान देखा। खुली और स्वच्छ हवा में सांस लीं। पक्षियों को उन्मुक्त आकाश में उड़ते देखा। देशबंदी और घरबंदी के बावजूद लोगों ने स्वच्छ पर्यावरण का आनंद महसूस किया। लेकिन ये संतोष ज्यादा दिन टिका नहीं रह सका। क्योंकि जैसे ही अनलॉक के साथ आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां शुरू हुईं, हवा और पानी में जहर पहले-सा घुलने लगा। 12 साल की रिद्धिमा ने पीएम को लिखे अपने पत्र में कहा है कि अब हवा इतनी प्रदूषित हो गई है कि उसके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ स्कूल जाना एक बुरा सपना होगा।
उत्तराखंड के हरिद्वार की रहने वाली रिद्धिमा ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वो यह सुनिश्चित करें कि ऑक्सीजन सिलेंडर बच्चों की जिंदगी का एक अहम हिस्सा न बनने पाए, जिसे भविष्य में हमें अपने कंधों पर लेकर चलना पड़े। रिद्धिमा के मुताबिक उसे चिंता है कि अगर उसके जैसे 12 साल के बच्चे को सांस लेने में मुश्किल होती है, तो दिल्ली या अन्य शहरों में रहने वाले बच्चों पर इसका क्या असर पड़ता होगा।
रिद्धिमा ने जो लिखा वो कड़वी सचाई है। वाहनों, कल-कारखानों और अन्य गतिविधियों के कारण देश के अधिकांश शहरों और खासकर मेट्रो सिटी में हवा जहरीली हो चुकी है। हवा का सबसे ज्यादा प्रदूषण हमें सर्दियों के मौसम में देखने को मिलता है। जब खेतों में पराली जलाई जाती है। इसका धुआं और वातावरण में नमी मिलकर इतना प्रदूषण करते हैं कि लोगों को सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। हालांकि सरकारें लोगों को पराली खेतों में न जलाने के लिए कहती रही हैं, लेकिन लोग नहीं मानते।
देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में उन दिनों स्थिति और विकट हो जाती है। लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है। घनी आबादी वाले शहरों में स्थिति तो और गंभीर है। वायु प्रदूषण के कारण लोगों के सामने स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा हो रही हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि हमारे देश के लोग वायु प्रदूषण न फैलने के लिए जरूरी उपायों पर भी ध्यान नहीं देते। रिद्धिमा ने पूरे देश के बच्चों की ओर से पीएम को लिखी चिट्ठी में साफ कहा है कि बतौर प्रधानमंत्री आपने जलवायु परिवर्तन को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया है।
उल्लेखनीय है पिछले साल ही संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली ने अपने 74वें सत्र में ‘इंटरनेशनल क्लीन एयर डे फॉर ब्लू स्काई’ मनाने का फैसला किया था। इसका मकसद व्यक्ति, समुदाय, कॉर्पोरेट और सरकार सभी को साफ और शुद्ध हवा की अहमियत के बारे जागरूक करना है। इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वायर्नमेंट, सस्टनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आई-फॉरेस्ट) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंद्रभूषण के अनुसार कि क्लीन एयर डे की अहमियत भारत के लिए सबसे ज्यादा है। भारत एयर पॉल्यूशन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला देश है।
उन्होंने आंकड़ों के हवाले से कहा कि आज देश में 90 करोड़ टन कोयला, 40 करोड़ टन बायोमास, 20 करोड़ टन तेल और 5 करोड़ टन गैस की ऊर्जा की खपत होती है। इससे खतरनाक गैसें उत्सर्जित होती हैं। जिससे पूरा पर्यावरण खराब होता है। हालत यह है कि दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 21 शहर शामिल हैं। 2016 में एकत्र डाटा में बताया गया था कि भारत में 14 करोड़ लोग प्रदूषण के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानंदड से 10 फीसदी ज्यादा सांस लेते हैं। भारत में भी कुल वायु प्रदूषण का 51 फीसदी प्रदूषण तो उद्योगों के कारण होता है।
सरकार ने औद्योगिक प्रदूषण पर लगाम की कोशिश की है लेकिन बहुत सफलता नहीं मिली। क्योंकि ज्यादातर उद्योग प्रदूषणरोधी उपायों पर पैसा खर्च करना नहीं चाहते और हम उद्योगों को बंद नहीं कर सकते। शहरों में 27 फीसदी प्रदूषण वाहनों, 17 फीसदी फसलों को जलाने तथा 5 प्रतिशत दिवाली पर पटाखे चलाने से होता है। वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा खतरा इस बात का है कि देश में हर साल होने वाली 20 लाख असमय मौतों की मुख्य वजह वायु प्रदूषण ही है। हालांकि अभी ग्रीन हाउस गैस उत्पादन में दूसरे देशों की तुलना में हम पीछे हैं।
अगर वैश्विक स्तर पर बात की जाए तो वर्ष 2019 में भारत दुनिया के सर्वाधिक वायु प्रदूषित देशों में शामिल था। इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम लांच किया था जिसका उद्देश्य देश के सर्वाधिक वायु प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर 2024 तक 30 फीसदी कम करना है। लेकिन इस कार्यक्रम का व्यावहारिक असर अभी नहीं दिखा है। बीच में देश में वायु प्रदूषण का स्तर जो घटा था, उसका मुख्य कारण लॉकडाउन में कल कारखानों तथा आवागमन के साधनों का बंद होना भी था। जैसे-जैसे पुरानी स्थिति लौट रही है, वायु प्रदूषण भी फिर से बढ़ने लगा है।
ऐसा नहीं कि सरकार ने वायु प्रदूषण रोकने के प्रयास नहीं किए हों, 2015 में भारत सरकार और आईआईटी कानपुर ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक प्रारंभ किया था। इसका मकसद यही था कि वायु प्रदूषण का स्तर 20 से 30 फीसदी घटाना है। यह कार्यक्रम देश के 102 शहरों में चलाया गया था तथा इसके लिए आधार वर्ष 2017 माना गया था। साथ ही अरावली पर्वत श्रृंखला पर गुजरात से लेकर दिल्ली तक 1600 किमी लंबी ग्रेट ग्रीन वॉल भी तैयार करने का कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके अंतर्गत 135 करोड़ पौधे लगाए गए थे।
देश के सभी बच्चों की ओर से आज रिद्धिमा ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि आप कृपया हमारे भविष्य के बारे में सोचें। उसने पीएम से अपील की कि वो अधिकारियों को प्रदूषण रोकने के सभी नियम और कानून सख्ती से लागू करने के लिए कहें, ताकि भारत के नागरिक साफ हवा में सांस ले सकें। रिद्धिमा ने भविष्य में ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर चलने की मजबूरी की जो आशंका जताई है, अगर प्रदूषण की यही स्थिति रही तो वो सचाई में भी बदल सकती है।
क्योंकि चाहे देश हों, प्रांत हों या फिर लोग हों, सब केवल अपने स्वार्थ के बारे सोच रहे हैं। धरती का क्या होगा, खुले आसमान का क्या होगा? साफ सुथरी हवा का क्या होगा, प्रकृति में चहकते प्राणियों का क्या होगा, इन तमाम सवालों पर बहुत गंभीरता से विचार करने और उसके उपायों पर अमल बेहद जरूरी है। और फिर ऑक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर चलना केवल कल्पना भर नहीं है। कभी किसी ने सोचा था कि हमें चेहरे पर मास्क लगाकर घूमना पड़ेगा। फिर भी आज हर जगह वही लगाकर काम करना पड़ रहा है।
मनुष्य को एक दूसरे से दूरी बनाकर काम करना पड़ेगा या हाथ मिलाने के बजाए हमें हमारी परंपरागत हाथ जोड़ने की संस्कृति पर लौटना पड़ेगा और वह भी कोरोना से सुरक्षा के कारण, यह पांच महीने पहले अकल्पनीय था। अगर हवा भी इसी तरह जहरीली होती रही तो मास्क तो क्या हमें अपनी पीठ पर ऑक्सीजन सिलेंडर लाद कर भी चलना पड़ सकता है। तब जीवन कितना दूभर हो जाएगा, इसकी कल्पना भर की जा सकती है। रिद्धिमा की चिट्ठी में यह डरावनी आशंका छिपी है।