इंदौर में कोरोना के नए हमले के पीछे नेतागिरी और लापरवाही

इंदौर में कोरोना बेकाबू होता जा रहा है। अगस्त महीने में 10 बार कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या एक दिन में 200 के पार गई। अंतिम दिन तो आंकड़ा 272 रहा। इसका कारण लोगों की लापरवाही के अलावा सांवेर उपचुनाव को भी माना जा सकता है। नेतागिरी के कारण राजनीतिक गतिविधियां बढ़ी और इंदौर में संक्रमण बढ़ा। प्रशासन की मज़बूरी है कि वो नेताओं पर अंकुश नहीं लगा पा रहा। खुले आम भंडारे और जनसम्पर्क चल रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री की इंदौर यात्रा ने भी शहर में मरीज बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

हेमंत पाल

इंदौर में चार महीने तक कोरोना का इलाका सीमित था। लोग डरे हुए भी थे। घर से नहीं निकल रहे थे और नियमों को मान रहे थे। पर, पिछले एक-डेढ़ महीने से सारे नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जाने लगीं। रविवार को लॉक डाउन होने पर भी सड़कों पर भीड़ रहने लगी, प्रशासन भी सख्ती करने से पीछे हट गया। नेताओं की लापरवाही ने भी लोगों को उकसाया और वे भी उच्श्रृंखल होने लगे।

अभी तक शहर के मध्य और पश्चिमी क्षेत्र में ही अधिकांश मरीज मिले थे। लेकिन, धीरे-धीरे कोरोना ने नए इलाकों में भी अपने पैर पसारना शुरू कर दिये। यहाँ तक कि अब कोरोना के इलाज के लिए तय अस्पतालों के डॉक्टर्स और स्टॉफ भी संक्रमित होने लगे हैं। नगर निगम के कर्मचारी और पुलिस जवान और थाना प्रभारी तक इसकी चपेट में आने लगे हैं। आसपास के ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना का फैलाव होने लगा।

अगस्त महीने में 10 बार 200 से ज्यादा संक्रमित मरीज मिले हैं। अंतिम दिनों में ही 6 बार मरीजों का आंकड़ा 200 पार निकला। आखिरी दिन 272 मरीज मिले। शहर में अब तक 210428 संदिग्ध मरीजों के सैंपल की जांच की जा चुकी है। इनमें से करीब 13000 मरीज पॉजेटिव मिले। करीब 9 हज़ार ठीक हुए और मरने वालों का आंकड़ा 400 करीब है।

कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ने पर प्रशासन ने सार्वजनिक जगहों पर मास्क न लगाने वालों पर जुर्माने की राशि सौ रुपए से बढाकर 200 रुपए कर दी। सार्वजनिक जगहों, दफ्तरों, कारखानों और संस्थानों में मास्क न पहनने वालों पर 200 रुपए प्रति व्यक्ति स्पॉट फाइन किया जाएगा। ठीक से मास्क न लगाने वालों और पास खड़े होकर बात करने वाले लोगों पर भी 200 रुपए का स्पॉट फाइन होगा।

शहर में नगर निगम, नगरीय निकाय के अधिकारियों और ग्रामीण क्षेत्र में एसडीएम या उनके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी को स्पॉट फाइन करने का अधिकार दिया गया है। लेकिन, देखा गया है कि शहर में नेताओं के अलावा नगर निगम और सरकारी कर्मचारी सबसे ज्यादा बिना मास्क घूमते हैं।

सांवेर में चुनावी हलचल के कारण कोरोना संक्रमण सबसे ज्यादा बढ़ा। इस कारण ग्रामीण भी बीमारी के चपेट में आए। उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार और राज्य सरकार में मंत्री तुलसी सिलावट खुद परिवार समेत कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। यहाँ से कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार प्रेमचंद गुड्डू को भी इस बीमारी ने नहीं छोड़ा। देखा जाए तो दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से सांवेर में संक्रमण बढ़ाने में अपना योगदान दिया।

कांग्रेस के नारे ‘हर हर महादेव घर-घर महादेव’ और भाजपा के नारे ‘हर-हर मोदी घर-घर तुलसी’ जैसे राजनीतिक नाटकों ने सांवेर में घर-घर कोरोना बाँट दिया। प्रशासन पूरे शहर के लोगों को डंडा फटकार कर नियम मानने के लिए मजबूर कर रहा है, पर सांवेर को लेकर वो मुंह मोड़कर बैठा है। इसे सीधे-सीधे प्रशासन की कमजोरी ही माना जाना चाहिए।

सांवेर उपचुनाव में धनबल, बाहुबल के अलावा सबसे ज्यादा उपयोग लापरवाही का भी होगा। सारे नियमों को ताक पर रखकर नेता मंडली प्रशासन की गाइडलाइन का उल्लंघन करती नजर रही है। सांवेर की जनता और कार्यकर्ताओं को चुनाव के नाम पर दोनों पार्टियों ने भगवान भरोसे छोड़ रखा है। चुनाव प्रचार अभियान को घर-घर पहुंचाने की कोशिश में कार्यकर्ताओं की सुरक्षा कहीं नजर नहीं आ रही। इसका नतीजा कहीं सांवेर के लोगों पर कहर बनकर न टूटे। क्योंकि, सांवेर की जनता के मन में भी संक्रमण को लेकर डर का माहौल बन गया है।

ऐसे में अब आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस ने अभी मोर्चा नहीं संभाला है, पर भाजपा के नेताओं ने तुलसी सिलावट के लिए प्रचार काफी पहले शुरू कर दिया था। ऐसे में उन्हें भी संक्रमण का डर सताने लगा है। कांग्रेस नेता प्रेमचंद गुड्डू भी कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। सांवेर उपचुनाव को लेकर वे भी सक्रिय हुए थे, पर अब संयमित हो गए।

कोरोना संक्रमण की मार ने किसी को नहीं छोड़ा, लेकिन सबसे ज्यादा मध्यमवर्गीय आदमी की कमर ही टूटी। गरीब को जो चाहिए, वह सरकार ने दे दिया और उच्च वर्ग जैसा पहले जीवन जी रहा था, वैसा ही आज भी जी रहा है। फर्क पड़ा, तो मध्यमवर्गीय लोगों को। किसी का व्यवसाय डूब गया, तो किसी की नौकरी चली गई। इन सबके बावजूद जो इस संक्रमण काल से बिल्कुल भी नहीं डरा या कह लें कि जिसे बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा, वह वर्ग है नेताओं का।

फिर, चाहे पक्ष हो या विपक्ष। वे लोग जो कोरोना से बचने का संदेश देते थे, खुद एक के बाद एक कोरोना वायरस की चपेट में आते गए और आते जा रहे हैं। कारण इनकी लापरवाही और प्रशासन की अनदेखी के अलावा और कुछ नहीं है। सांवेर उपचुनाव में कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार प्रेमचंद गुड्डू हों, चाहे विधायक कुणाल चौधरी। प्रदेश के मुखिया शिवराजसिंह चौहान, राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या सांवेर के भाजपा प्रत्याशी और मंत्री तुलसीराम सिलावट। कोई भी कोरोना से बच नहीं सका।

लेकिन, यदि आम आदमी कोरोना संक्रमित हो जाए, तो कोई नेता उसे बचाने नहीं आएगा। उसे तो अपने घर-परिवार से अलग होकर इलाज के दौरान अपने आपको अकेला और असहाय महसूस करना होगा। इंदौर में कोरोना के रोज बढ़ते आंकड़े तनाव पैदा कर रहे हैं। लोगों में भय है कि कहीं वे इसकी चपेट में न आ जाएं। कहीं ऐसा न हो कि शहर को फिर लॉक डाउन का सामना करना पड़े। क्योंकि, नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें जो करना है वे सब करते हैं। उन्हें सिर्फ उपचुनाव जीतने की चिंता है।

जब ज्यादातर लोग घरों में कैद हैं, नेता राजनीतिक आयोजन से बाज नहीं आ रहे। वे राजनीतिक रैलियां कर रहे हैं भीड़ इकट्ठा कर रहे और हजारों कार्यकर्ताओं की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। महामारी की सारी गाइड लाइन जनता पर थोपी जा रही है। आखिर नेताओं पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही। मरीजों के आंकड़े बढ़ने पर जनता को दोषी ठहराया जाता है, मास्क न लगाने वालों पर जुर्माना दुगना कर दिया जाता है।

कहा जाता है कि जनता घर से निकलकर लापरवाही कर रही है। जबकि, नेताओं को सरकार बनाने की और बचाने की पड़ी है। जब कोरोना चरम पर है, तो नेताओं को उपचुनाव की चिंता ज्यादा है। क्योंकि इससे इन नेताओं का भविष्य तय होना है। संक्रमण कितना भी बढे नेताओं को तो बस उपचुनाव जीतने की पड़ी है।

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