गिरीश उपाध्याय
मुझे नहीं मालूम कि नागपंचमी का कुश्ती और अखाड़े से क्या लेना देना है। लेकिन जब भी नागपंचमी आती है, बचपन में पढ़ी यह कविता जरूर याद आ जाती है। आज भी नागपंचमी है और आज भी ऐसा ही हुआ तो सोचा यह कविता आप सबसे शेयर कर लूं। मुझे पता नहीं कि आपमें से कितनों ने स्कूल में यह कविता पढ़ी होगी। जिन्होंने नहीं पढ़ी वे इसका आनंद लें और जिन्होंने पढ़ी थी वे जरा अपनी स्मृतियों को टटोलें कि इस कविता का कितना हिस्सा उन्हें आज भी याद है। इस कविता का शीर्षक ही नागपंचमी है… 😊😊
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नागपंचमी
सूरज के आते भोर हुआ
लाठी लेझिम का शोर हुआ
यह नागपंचमी झम्मक-झम
यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम
मल्लों की जब टोली निकली।
यह चर्चा फैली गली-गली
दंगल हो रहा अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
सुन समाचार दुनिया धाई,
थी रेलपेल आवाजाई।
यह पहलवान अम्बाले का,
यह पहलवान पटियाले का।
ये दोनों दूर विदेशों में,
लड़ आए हैं परदेशों में।
देखो ये ठठ के ठठ धाए
अटपट चलते उद्भट आए
थी भारी भीड़ अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
वे गौर सलोने रंग लिये,
अरमान विजय का संग लिये।
कुछ हंसते से मुसकाते से,
मूछों पर ताव जमाते से।
जब मांसपेशियां बल खातीं,
तन पर मछलियां उछल आतीं।
थी भारी भीड़ अखाड़े में,
चंदन चाचा के बाड़े में॥
यह कुश्ती एक अजब रंग की,
यह कुश्ती एक गजब ढंग की।
देखो देखो ये मचा शोर,
ये उठा पटक ये लगा जोर।
यह दांव लगाया जब डट कर,
वह साफ बचा तिरछा कट कर।
जब यहां लगी टंगड़ी अंटी,
बज गई वहां घन-घन घंटी।
भगदड़ सी मची अखाड़े में,
चंदन चाचा के बाड़े में॥
वे भरी भुजाएं, भरे वक्ष
वे दांव-पेंच में कुशल-दक्ष
जब मांसपेशियां बल खातीं
तन पर मछलियां उछल जातीं
कुछ हंसते-से मुसकाते-से
मस्ती का मान घटाते-से
मूंछों पर ताव जमाते-से
अलबेले भाव जगाते-से
वे गौर, सलोने रंग लिये
अरमान विजय का संग लिये
दो उतरे मल्ल अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
तालें ठोकीं, हुंकार उठी
अजगर जैसी फुंकार उठी
लिपटे भुज से भुज अचल-अटल
दो बबर शेर जुट गए सबल
बजता ज्यों ढोल-ढमाका था
भिड़ता बांके से बांका था
यों बल से बल था टकराता
था लगता दांव, उखड़ जाता
जब मारा कलाजंघ कस कर
सब दंग कि वह निकला बच कर
बगली उसने मारी डट कर
वह साफ बचा तिरछा कट कर
दंगल हो रहा अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
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* यादों के पिटारे से…
आज पहली बार पड़ी है यह कविता
बहुत ज्यादा आपके विचारों तक नहीं पहुंच सका
कहीं इस कविता का आज की घटनाओं से तो संबंध नहीं है
चंदन चाचा के बाड़े में
कविता बहुत पुरानी है कम से कम 50 साल पुरानी।