छत्‍तीसगढ़ की कही-सुनी

रवि भोई

पुलिस अफसरों को कोर्ट में माफ़ी मांगनी पड़ी
छत्तीसगढ़ के तीन शीर्ष पुलिस अधिकारियों को राज्य के हाईकोर्ट में खड़े होकर माफ़ी मांगनी पड़ी। कहते हैं कि एक जिले के एसपी ने सरकार की गुडबुक में आने के लिए नियम-कायदों को ताक में रखकर एक व्यक्ति की गिरफ्तारी करवा दी और जेल भिजवा दिया। बवाल मचा तो एसपी साहब ने थानेदार को दूसरे थाने में पोस्ट कर दिया। एसपी साहब की लीपापोती को देखकर पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ कुछ वकील बिलासपुर हाईकोर्ट चले गए। कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए शीर्ष पुलिस अधिकारियों को तलब किया, जिसमें संबंधित एसपी साहब भी थे। कहते हैं कि जज साहब ने एसपी साहब को खूब लताड़ा और गिरफ्तारी पर सवाल खड़े किए। जज साहब के गुस्से को देखकर शीर्ष पुलिस अफसरों की बोलती बंद हो गई और फटाफट लिखित में माफीनामा देकर जान बचाई।

बेटे के सहारे एक अफसर
कहते हैं दूध का जला, छाछ को भी फूंक-फूंककर पीता है, ऐसा ही राज्य के एक अफसर कर रहे हैं। कई घपलों-घोटालों में फंसे ये अफसर बड़ी मुश्किल से प्रशासन की मुख्यधारा में लौटे हैं। कभी पत्रकारों का मजमा लगाने वाले ये अधिकारी आजकल मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं, तो किसी से बात करने में भी काफी सतर्कता बरतते हैं। बताते हैं कि अब साहब खुद मोबाइल भी नहीं रखते। कुछ गिने-चुने लोगों को अपने बेटे का नंबर दे रखा है। बेटे के जरिये ही लोगों से बात करते हैं।

फार्म में डॉ. रमन सिंह
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह आजकल भूपेश सरकार के खिलाफ आक्रामक हो गए हैं। कांग्रेस की सरकार को रोजाना किसी न किसी मुद्दे पर घेरने से नहीं चूक रहे हैं। कहते हैं भले विष्णुदेव साय प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष हैं, लेकिन फार्म में तो डॉ. रमन सिंह ही हैं। माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने डॉ. रमन को छत्तीसगढ़ की पूरी जिम्मेदारी दे दी है। वैसे भी साय और कौशिक दोनों को डॉ. रमन के कोटे का ही माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री की सक्रियता से उनके विरोधी फिलहाल तो हथियार डाल दिए दिखते हैं। डॉ. रमन ने बयान भी दिया कि वे पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, लेकिन कार्यक्षेत्र तो छत्तीसगढ़ ही है और कांग्रेस भी डॉ. रमन को भाजपा का चेहरा मानकर वार करती है। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम के खिलाफ प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के नेता साइकिल भेंट करने के लिए रमन सिंह के निवास चले गए। इसका मतलब साफ़ है।

नई सरकार में पुराने चेहरे
सरकार किसी भी पार्टी की रहे, कुछ चेहरे नहीं बदलते। ये ऐसे चेहरे होते हैं, जो सत्ता से जुड़े लोगों को साध लेते हैं। राज्य में आजकल ऐसे ही एक चेहरे की बड़ी चर्चा है और कोरबा-जांजगीर जिले में उसकी बड़ी धाक भी बताई जाती है। ये चेहरा कभी अजीत जोगी के आसपास मंडराता दिखता था और जोगी जी के करीब जा पहुंचा था। भाजपा की सरकार आई तो कई मंत्रियों के पास नजर आने लगा। यहां तक कि कुछ उद्योगपति मंत्रियों से मिलने के लिए उसका सहारा लेते थे। अब वह चेहरा भूपेश बघेल सरकार में भी दिखाई देने लगा है। शुरुआती दिनों में एंट्री नहीं मिली थी, लेकिन कहते हैं अब सरकार के काफी करीब जा पहुंचा है और कुछ गोपनीय कार्यों में उसे आजमाया भी गया। ऐसे लोगों के लिए यह कहावत फिट बैठती है- कोऊ नृप होय हमें का हानी।

सांप मर गया,  लाठी नहीं टूटी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम की बात रखने के लिए कोंडागांव के एसपी बालाजीराव सोमावार को हटा दिया, लेकिन उन्हें जशपुर भेज दिया। इससे दोनों शांत हो गए। रायपुर एसएसपी आरिफ शेख के खिलाफ भी रायपुर जिले के एक विधायक पड़े थे, उन्हें हटाने के लिए विधायक महोदय कई बार मुख्यमंत्री से बोल चुके थे। आरिफ शेख मुख्यमंत्री की गुडबुक में हैं। मुख्यमंत्री ने आरिफ शेख को रायपुर के एसएसपी के पद से हटा दिया, लेकिन उन्हें राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो का प्रमुख बना दिया।  वे एक जिले की जगह राज्य स्तरीय संस्था के प्रमुख बन गए। मुख्यमंत्री ने सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे, कहावत को चरितार्थ कर दिया।

कलेक्टर साहब को लगा झटका
बिलासपुर संभाग के एक जिले के कलेक्टर ने उद्योग संचालकों की मीटिंग बुलाई और उनके सामने कई प्रस्ताव रखे और सुझाव भी मांगे। कलेक्टर साहब के एक प्रस्ताव को उद्योग संचालकों ने सिरे से ख़ारिज कर दिया, जिसकी उम्मीद उन्हें नहीं थी। जिले में नए-नए कलेक्टर बनकर आए साहब सरकारी रुतबे से उद्योग संचालकों से अपनी बात मनवाना चाहते थे, लेकिन उद्योग चलाने वाले भी दमदार निकले।  उन्होंने कलेक्टर साहब को दो टूक कह दिया भले फैक्ट्री नहीं चलाएंगे, पर आपका प्रस्ताव मंजूर नहीं है। कहते हैं इसके बाद कलेक्टर साहब ने अपने प्रस्ताव को मानने के लिए उद्योग संचालकों पर दबाव नहीं डाला।

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