समाधि पर ‘फूल’ और कानपुर का ‘विकास’ राजनीति के नये हथियार

सतीश जोशी

ग्वालियर चंबल संभाग में महारानी लक्ष्मीबाई ने फिर राजनीतिक जन्म ले लिया है। इतिहास ने फिर करवट ली है। भाजपा के फायरब्रान्ड नेता जयभानसिह पवैया ने माधवराव सिंधिया की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने वाले नये नवेले मंत्रियों प्रद्युम्नसिंह तोमर और ओ.पी. भदौरिया से पूछा है कि वे वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि पर फूल चढ़ाने क्‍यों नहीं गए।

पवैया ने खूब छकाया है
कहते हैं न लम्हों ने खता की और सदियों ने सजा पाई। चुनाव के अपने कोई नियम नहीं,  पर दांव पेंच कब कौनसा सामने रख हमले हो जाएँ पता नहीं। महल के विरोध की राजनीति करने वालों को ग्वालियर चंबल संभाग में  ज्योतिरादित्य सिंधिया का भगवा शिविर में आना कतई गवारा नहीं हो रहा। माधवराव सिंधिया को पवैया ने ग्वालियर की पिच पर खूब छकाया था, तभी माधवराव राजनीतिक भविष्य संवारने गुना चले गये थे। और अब गुना में ज्योतिरादित्य को  उनके ही शिष्य के.पी. यादव ने लोकसभा से बाहर का रास्ता दिखा दिया। एक अपमान ने ऐसी कहानी लिखी कि ज्योतिरादित्य का राजनीतिक सफर भगवा शिविर पर आकर रुका।

गद्दार….गद्दार
यहाँ भगवा का कट्टर नायक महाराजा को ललकार रहा है। यहां भी कुछ लोग पूर्वजों के इतिहास को लेकर गद्दार कह रहे हैं तो पूरी कांग्रेस उनको गद्दार कहकर उपचुनाव की जमीन पर मात देने की शपथ लेकर उतरी है। याने गद्दार शब्द खूब उछलेगा। यह सोशल मीडिया पर अभी से आक्रामक तेवर पकड़ चुका है। इसने घृणित और मर्यादाहीन भाषा को भी अंगीकार कर लिया है। इसीलिए ज्योतिरादित्य ग्वालियर चंबल में और अधिक तीखे व धारदार हो जाते हैं।

नरोत्तम और विकास?
उपचुनाव की 24 में से 16 सीटें ग्वालियर चंबल संभाग की ही हैं। कानपुर से चला, फरीदाबाद से निकला विकास, विभिन्न मार्गों से होता हुआ डबरा आकर रुका और उज्जैन में फूल वाले की दुकान से लेकर महाकाल की चौखट पर प्रकट हुआ। प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इसे मध्यप्रदेश की जांबाज पुलिस का महान काम बता दिया। शाम होते होते कानून के कागज पर गिरफ्तारी लफ्ज़ गायब हो गया। कानपुर लोकसभा चुनाव के प्रभारी नरोत्तम का नया अवतार विकास दुबे के साथ जुड गया। राजनीति बहुत कुछ करने लगती है। अब इस अंचल में विकास दुबे कानपुर में मारे जाने के बाद भी चुनाव में जिन्दा सवाल बन गया है।

और अंत में…
दिग्विजय सिंह राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं। उन पर कितने ही वार करो, वे अपनी ख्यात हंसी से उन्‍हें टालने में माहिर हैं। सवाल कोई हो, वे उत्तर में अपना एजेंडा फेंक ही देते हैं।  के.पी. यादव को फुसलाने में सफलता न मिली तो भड़काने का अवसर वे ढूंढ ही लेते हैं। ऐसे ही एक पत्रकार के सवाल पर उन्‍होंने कहा- अशोक नगर की कलेक्टर का तबादला हो गया है, जिला कलेक्टर विहीन है। डरो मत शिवराज सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधियावहां किसी की तो नियुक्ति करो। उनका आशय था कि के.पी. यादव से बिना पूछे नया कलेक्टर नहीं आ सकता। यह सुलह है या डर। बहुत बढि़या राजा साहब, राजनीति के तो आप महाराजा ही हो।

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