अजय बोकिल
बेशक अमिताभ बच्चन इस देश की अजीम शख्सियत हैं, धरोहर हैं। उनकी हारी-बीमारी और सुख-दुख से सभी का चिंतित होना स्वाभाविक है। लेकिन बिग-बी और परिजनों के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर जिस तरह मीडिया में सिर चढ़कर बोली, उससे लगा कि महानायक के बीमार होने के आगे देश में (ताजा आंकड़ों के मुताबिक) 22 हजार 674 मौतों और साढ़े 8 लाख कोरोना संक्रमितों का होना कुछ भी नहीं है। शायद बीमारी भी सेलेब्रिटी के हिसाब से बड़ी या छोटी हो सकती है। एक दैनिक अखबार ने तो कमाल ही किया। उसके शीर्षक का आईब्रो था- सदी के महानायक को सदी की महामारी…। यानी महानायक को महामारी ही घेर सकती है, कोई मामूली बीमारी नहीं।
‘बिग बी’ यानी अमिताभ बच्चन का बीमार होना कोई अनहोनी नहीं है। बतौर इंसान उन्हें अस्थमा, लिवर, किडनी आदि की भी शिकायते हैं। पहले भी वो कई जानलेवा प्रसंगों और रोगों से लड़कर अभिनय के मैदान में दूने उत्साह से आ डटे हैं। फिल्म ‘कुली’ के फाइटिंग सीन की शूटिंग में पड़े असली घूंसे के बाद भी अमिताभ, मौत को जिंदगी का डायलॉग सुनाकर सकुशल लौटे थे। कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है। लेकिन हिंदी फिल्मों के अजेय हीरो की तरह उन्होंने हर बार फिट होकर वापसी की है।
अमिताभ की खूबी यह है कि उन्होंने समय की धारा के मुताबिक खुद को बदला है। नए प्रयोग और नए किरदारों में स्वयं को ढाला है। अभिताभ का बड़े से बड़ा आलोचक यह तो मानेगा ही कि अपनी उत्तुंग और बहुआयामी प्रतिभा के साथ चर्चा में बने रहने का हुनर एवं दृष्टि भी उनके पास है। यूं भी आज के जमाने में प्रतिभा के साथ इसका जोड़ होना बेहद जरूरी है। बल्कि यूं कहें कि कई बार मार्केटिंग का बढ़ता ग्राफ प्रतिभा को उसकी औकात बताने से नहीं चूकता।
इसमें यह भाव निहित है कि आप कितने योग्य हैं, इसकी थर्मल स्क्रीनिंग से ज्यादा जरूरी है कि आप काबिलियत का मास्क ठीक से लगाए हुए हैं या नहीं। फिर बिग बी तो वाकई बड़े अभिनेता हैं। राजनेता भी रहे हैं। निजी जिदंगी में जिम्मेदार पति और पिता भी हैं। पक्के प्रोफेशनल और समाजसेवी भी हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित और पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित अमिताभ पांच दशकों से कई पीढि़यों के ‘हीरो’ बने हुए हैं। इनमें वो भी शामिल हैं, जिनकी आभा संघर्ष करने में ही खर्च हो गई और वो भी हैं, जो ‘बिग बी’ सा बनने का सपना पाले खुद बुढ़ा गए।
लेकिन अमिताभ जैसे लोग इस तरह बूढ़े नहीं होते। अत्यंत सुरक्षित और नियमित जीवन जीने वाले अमिताभ विज्ञापनों के माध्यम से ‘ठंडा ठंडा, कूल कूल’ होने की सलाह तो देते ही रहते हैं। उनकी बहुकोणीय आभा से ये तस्वीर उभरती है कि ऐसे लाजवाब इंसान को कोरोना जैसा (फिलहाल तो) असाध्य रोग हो ही नहीं सकता। और हुआ भी है तो यह उस बीमारी का दुस्साहस है, जिसे देश हर्गिज सहन नहीं करेगा।
हैरत की बात इतनी है कि तमाम सावधानियों और हिदायतों के बाद भी न केवल अमिताभ बच्चन बल्कि उनके परिजनों और उनके यहां काम करने वाले 54 लोगों को कोरोना हो गया। टेस्ट में ये सभी पॉजिटिव निकले। इसके बाद अभिताभ ने फैंस को सलाह दी है कि वो पूरी सावधानी बरतें। यूं भी अमिताभ खुद एक बड़े ब्रांड हैं और इसका उन्हें पूरा अहसास भी है।
वो जमाने गए, जब किसी ‘ब्रांड’ की आभा उसकी सादगी और खुद को अ-ब्रांड मानने में ही दमकती थी। जो इस जमीनी हकीकत से बेखबर रहे, वो वक्त के कफन में दफन हो गए। अब संचार क्रांति और सोशल मीडिया ने हमें इतना तो सिखा ही दिया है कि आत्म प्रचार ही वक्त पर राज करने का गारंटीड तरीका है, ठीक वैसे ही कि जैसे आक्रमण ही आत्म रक्षा का सबसे कारगर उपाय है।
इस एंगल से भी अमिताभ लाजवाब हैं। उनकी हर अदा, चाल-ढाल, रहन-सहन, तासीर-तेवर, रोगी-निरोगी होना भी चर्चा में अपनी जगह खुद बना लेता है। फिल्म ‘कालिया’ में अमिताभ का अमर डायलाग था ‘हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है।‘ ये बात अलग है कि कोरोना की इस जानलेवा लाइन में साढ़े आठ लाख लोग पहले से लगे हैं।
बहरहाल विचार का मुद्दा यह है कि क्या सदी के महानायक को कोई महामारी नहीं घेर सकती? और अगर वो पॉजिटिव पाए गए हैं तो इस पर इतना हाहाकार क्यों? जैसे उनकी दूसरी बीमारियों का इलाज हुआ, इसका भी होगा। जिस तरह अमिताभ दूसरी बीमारियों को मात देकर घर लौटे हैं, उम्मीद करें कि अब भी लौटेंगे?
हो सकता है मीडिया में अमिताभ की बीमारी की खबर कोरोना, चीन और विकास दुबे एनकाउंटर के बाद खाली हुए टीआरपी स्पेस को भरने की कोशिश हो। इसीलिए उनकी बीमारी के इति वृतांत के साथ दुआओं, प्रार्थनाओं, आराधनाओं और शुभकामनाओं की हर डिटेल हमें बताई जा रही है। अमिताभ तो छोडि़ए एक आम इंसान के बीमार होने पर भी दुनिया दुआ ही करती है। यहां तक कि राजनीतिक बद्दुआएं भी दुआओं की आड़ में ही दी जाती हैं।
महाराष्ट्र के मद्देनजर भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने राज्य की उद्धव ठाकरे सरकार पर कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया कि “महाराष्ट्र में कोविड की स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं है। अमिताभ बच्चन के बाद, अब अनुपम खेर के परिवार के सदस्यों में भी कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।” अमिताभ के कुछ फैंस ने पोस्ट डाली कि ‘घर पर ही रहें और खुद को शहंशाह न समझें, आज ‘शहंशाह’ भी अस्पताल में हैं।
एक सवाल और। बिग बी सदी के महानायक हैं। लेकिन किस सदी के, यह भी अब तय हो जाना चाहिए। क्योंकि बीसवीं सदी खत्म हुए बीस साल बीत चुके हैं और 21 वीं का चौथाई हिस्सा भी जल्द खत्म होने वाला है। क्या अमिताभ दो सदियों के महानायक हैं? या उनका महानायकत्व सदियों की गिनती से परे है? क्या हम ये मान बैठे हैं कि वर्तमान सदी के बाकी तीन चौथाई हिस्से में अब कोई महानायक पैदा नहीं होने वाला है? क्या भारतीय सिनेमा का चरित्र, तकाजे और दर्शकों की आंकाक्षांएं आगे भी वैसी ही रहने वाली हैं, जिन्होंने अमिताभ को महानायक बनाया?
कहते हैं कि अमिताभ का मूल नाम तो इंकलाब था, जो उनके पिता और हिंदी के जाने माने साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन ने उस समय आजादी के आंदोलन से प्रेरित होकर रखा था। बाद में हिंदी के महाकवि सुमित्रानंदन पंत जब हरिवंशराय बच्चन के घर आए और नन्हे बच्चे को देखा तो बोले कि इसका नाम तो अभिताभ होना चाहिए। पंतजी ने यह शायद उस नवजात के चेहरे की आभा देखकर ही कहा होगा। क्योंकि अमिताभ का तात्पर्य उस आभा से है, जो अनंत है। इसीलिए भगवान बुद्ध का एक नाम अमिताभ है।
बुद्ध के चार आर्य सत्यों में से एक यह भी है कि मनुष्य की इच्छा ही दुख और कष्ट का कारण है। मतलब साफ है कि बीमारी हैसियत देखकर नहीं आती। और कोरोना तो इस मामले में पूरी तरह बेरहम है। किसी की प्रतिरोधक क्षमता उसे चकमा दे दे तो और बात है। यहां सवाल सिर्फ इतना है कि यदि सदी के महानायक को सदी की बीमारी हुई है तो क्या रोगी को हमें ‘सदी का बीमार’ कहना होगा?