राकेश अचल
गरीब हूं लेकिन इसका ऐलान नहीं कर सकता। अरबी का ‘गरीब’ हिन्दुस्तान में आकर जबसे नारा बना है तब से खुद को गरीब बताने में लज्जा आने लगी है। गरीबी के इतने मतलब हैं की सबका अर्थ भी आपको नहीं बता सकता। ऊपर वाला किसी को गरीब बनाकर नहीं भेजता लेकिन नीचे वाले चाहे जिसे गरीब बना सकते हैं। गरीबों का अपना वर्ग है, अपनी दुनिया है, अपना क़ानून है, अपना भगवान है। वे इस तरह हर मामले में आत्मनिर्भर हैं।
मुसीबत ये है कि दुनिया के मित्रों को गरीबों की गरीबी से जलन होती है। वे गरीबों से उनकी गरीबी को छोड़कर सब कुछ छीन लेना चाहते हैं। सब कुछ यानि सब कुछ। दुनिया में यदि गरीब न हों, गरीबी न हो और यदि ये दोनों न हों तो फिर सियासत किस मुद्दे पर हो? इसलिए दुनिया में अमीरों ने मिलकर हर सूरत में गरीबी को ज़िंदा बनाये रखने का कौल उठा रखा है।
गरीबी समाजशास्त्र की भाषा में अभिशाप है लेकिन राजनीति की भाषा में वरदान। जिस देश की सियासत में गरीबी नहीं है वहां सब नीरस है। गरीबी न होती तो आप क्या समाजवाद की कल्पना कर सकते थे? गरीबी थी इसलिए ये वाद जन्मा कि सब बराबर हों, लेकिन सब बराबर आज तक नहीं हो पाए.समाजवाद खुद मर-खप गया लेकिन गरीबी ज़िंदा है।
धरती पर गरीबी कोई आज से नहीं है, इसलिए आज के राजनीतिक दल इसके लिए जिम्मेदार बिलकुल नहीं हैं। हाँ आजादी के बाद हर देश ने गरीबी को बचाकर रखा इसलिए राजनितिक दलों को श्रेय अवश्य दिया जा सकता है। गरीबी और गरीब न हों तो प्र्धानमंत्रियों तथा राष्ट्रपतियों को अपने नाम से गरीबों के लिए योजनाएं बनाने का अवसर कैसे मिलता? भारत में नहीं बल्कि दुनिया के हर देश में गरीब भी हैं और उनके लिए सरकारी योजनाएं भी। फर्क सिर्फ इतना है कि कहीं गरीब कम हैं तो कहीं कुछ ज्यादा।
अगर मैं अपनी बात करूँ तो मैं विश्वगुरु भारत का नागरिक हूँ। मुझे अपनी गरीबी पर और अपने भारतीय होने पर गर्व है, जिन्हें नहीं है वे आज की तारीख में देशद्रोही हैं। गरीबी का राष्ट्रप्रेम से गहरा नाता है। गरीब ही असली राष्ट्रभक्त होता है। दुनिया पर जब भी कोई संकट आया, उसका बोझ सबसे पहले और सबसे ज्यादा गरीबों ने ही उठाया।
आप कहाँ इतिहास खंगालेंगे! आज के दौर में ही देख लीजिये, दुनिया में कोरोना से मरने वालों में सबसे ज्यादा गरीब हैं। गरीब न होते तो इस महामारी से अमीर मरते। चूंकि गरीबों को मरने का अभ्यास होता है, इसलिए सबसे पहले वे ही मरते हैं। बिना जाँच के मरते हैं, बिना दवा के मरते हैं, कुल मिलाकर वे मरते हैं, लेकिन अंतत: सियासत गरीबों को बचा लेती है।
गरीब गाथा को पढ़ते वक्त आप बोर बिलकुल न हों, क्योंकि इसमें रहस्य, रोमांच, भावुकता सब कुछ है। मैं इतना बूढ़ा तो हो चुका हूँ कि आपको कम से कम अपने देश में आजादी के बाद गरीबी और गरीबों के साथ होने वाले बर्ताव के बारे में बता ही सकता हूँ। जब देश का बँटवारा हुआ तब तो गरीब मरे ही थे लेकिन वे आज भी बिना बंटवारे के मर रहे हैं।
एक जमाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी की मति फिर गयी और उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दे दिया। उन्होंने कोशिश भी की लेकिन गरीबी ने उन्हें नाकाम कर दिया। लम्बे समय तक शासन करने के बाद इंदिरा गांधी हट गयीं लेकिन दुष्ट गरीबी नहीं हटी। लोग इंदिरा गांधी को दुष्ट कहते हैं और मैं गरीबी को दुष्ट मानता हूँ। अपनी-अपनी मान्यता है।
दुनिया के गरीबों को खुश होना चाहिए की कोरोना ने उनका कुनबा बढ़ा दिया है। कोविड-19 संकट के चलते दुनिया में गरीबों की संख्या बढ़कर एक अरब से अधिक हो सकती है और अत्यंत गरीब लोगों की संख्या में जुड़े 39.5 करोड़ लोगों में से आधे से अधिक लोग दक्षिण एशिया के होंगे। एक ताजा रपट के अनुसार दक्षिण एशिया का इलाका गरीबी की मार झेलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र होगा।
मुझे हवा-हवाई देने की या फेंकने की आदत नहीं है, इसलिए बताता चलूँ कि ये जानकारी किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल युनिवर्सिटी के शोधार्थियों के एक अध्ययन में सामने आयी है। यह अध्ययन संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकासात्मक अर्थशास्त्र शोध संस्थान के एक नए जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दुनिया में जब-जब गरीबी बढ़ती है, नए-नए नेता अवतार के रूप में प्रकट होते हैं। दूर क्यों जाते हो अपने भारत में श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद एक अवतार श्री नरेंद्र मोदी जी का हुआ है। कोई उन्हें अवतार माने या न माने लेकिन उनकी अपनी पार्टी के लोग तो कम से कम उन्हें अवतार मानते ही हैं। मोदी जी जब से अवतरित हुए हैं तभी से गरीबों के लिए कुछ न कुछ करते ही रहते हैं।
उन्होंने कालाधन बाहर लाने के लिए देश में नोटबंदी की, बड़े नोट बंद हो गए लेकिन उससे भी बड़े नोट आ गए। इसके चलते देश से बड़े-बड़े नोटाधिपति विदेश भाग गये और काला धन नहीं आया। मोदी जी ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा दी ताकि गरीब वहां आसानी से आ-जा सकें। उन्होंने तीन तलाक खत्म कराया, राम मंदिर विवाद निपटाया। सब गरीबों के लिए, गरीब ही तो मंदिर-मस्जिद के फेर में पड़े रहते हैं। अमीरों को तो धन जुटाने से ही फुरसत नहीं मिलती।
देश में जब चीन से कोरोना आया तो मोदी जी ने इसका रोना नहीं रोया बल्कि गरीबों के लिए 20 लाख करोड़ का एक विशेष पैकेज और फिर बाद में 90 हजार करोड़ का अन्नदान कर दिखाया। बदनसीबी ये है कि इन ख़ास पैकेजों का लाभ हम जैसे गरीबों को नहीं मिलता, हमारे पास रोजी-रोजगार नहीं है, लेकिन हमें मुफ्त का कोई माल नहीं मिलता क्योंकि हम दो नंबर के गरीब हैं।
हमारे पास बैंक लोन है, फ़्लैट है, कार है, घर में आरओ और फ्रिज तथा टीवी है, हालांकि सब उधार है। कोरोना के कारण हम उधारी चुकाने के लायक भी नहीं रहे। हमारे हमपेशा कलमकार तो आत्महत्याएं करने पर मजबूर हैं लेकिन हम जैसे बेशर्म अभी बचे हैं तो सिर्फ इसलिए कि हमें उम्मीद है अपने मोदी जी के ऊपर।
दुनिया भर की संस्थाओं की नजर हम गरीबों पर होती है। उनके पास भले ही दूसरे मामलों के सटीक आंकड़े हों या न हों लेकिन गरीबों के जरूर होते हैं। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल आबादी का 30 फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे ज़िंदगी बसर करता है। वर्ल्ड बैंक ने साल 2013 के आंकड़ों के आधार पर जानकारी दी है कि दुनिया के तीन गरीबों में से एक गरीब भारत का है।
पर हमें वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों पर रत्ती भर यकीन नहीं है, क्योंकि ये बैंक कहती है कि दुनिया में करीब 76 करोड़ गरीब हैं। दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब अफ्रीका में हैं। भारत में यह संख्या करीब 22 करोड़ है। जबकि हमारे मोदी जी अकेले भारत में 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त में अन्न बाँट रहे हैं। अब या तो ये वर्ल्ड बैंक गलत है या मोदी जी! गरीब तो गलत हो नहीं सकते।
हमें तकलीफ है कि वर्ल्ड बैंक ने साल 2030 तक अति गरीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन हमारे मोदी जी ने तो 2024 में ही गरीबी को निपटाने की सोची है। अलबत्ता हम जानते हैं कि कोई माई का लाल या लाली दुनिया से गरीबी और गरीबों को खत्म नहीं कर सकता, क्योंकि गरीब खत्म तो सियासत खत्म। यदि सब बराबर हो जायेंगे तो सियासत तो बराबरी की दुश्मन होती है, कम से कम भारत में तो होती है। हमारे मध्यप्रदेश में तो गरीबों के कल्याण के लिए बाकायदा एक संस्थान है और उसका एक अध्यक्ष होता है जिसका गरीबी और गरीबों से कोई वास्ता नहीं होता।
यकीन मानिये कि यदि आप आज गरीब नहीं हैं यानि गरीबी की रेखा के ऊपर हैं तो निकट भविष्य में आप गरीबी की रेखा के नीचे आ जायेंगे। आप जैसे मध्यमवर्गीय लोग बहुत दिनों तक महंगाई का बोझ नहीं झेल पाएंगे। महंगा डीजल-पेट्रोल, टमाटर, आटा-दाल एक न एक दिन आपकी पहुँच से बाहर हो ही जाएगा, तब आपको भी मुफ्त में राशन-पानी मिलने लगेगा। इसलिए आइये बोलिये मेरे साथ-
गरीबी जिंदाबाद! गरीब जिंदाबाद !!
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टीम मध्यमत