राकेश अचल
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपनी चौथी पारी में खुलकर नहीं खेल पा रहे हैं। उनकी सौ दिन की सरकार हिचकोले लेकर चल रही है। पहले उन्होंने अपना काम पांच मंत्रियों के साथ शेयर करते हुए चलाया, फिर जैसे-तैसे मंत्रिमंडल का चार दिन पहले विस्तार किया तो विभागों के वितरण के लिए उन्हें एक बार फिर भोपाल से दिल्ली तक दौड़ लगाना पड़ी। मुमकिन है कि आज आप ये आलेख पढ़ रहे हों तो वे विभागों के वितरण का ऐलान करने की स्थिति में हों।
शिवराजसिंह चौहान चौथी बार (महाराज) ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुग्रह से मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन उनकी अपनी आभा पहले जैसी नहीं रही। अब उनके प्रभामंडल पर सिंधिया का वलय भारी पड़ रहा है। मंत्रिमंडल में अपनी पसंद के विधायकों को शामिल न कर पाने के साथ ही गैर विधायकों को मंत्री बनाने की मजबूरी ने इस बात को प्रमाणित कर दिया की अब पार्टी हाईकमान पहले की तरह उन्हें खुलकर नहीं खेलने दे रहा है। कम से कम सौ दिन में तो यही बात सामने आयी है।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के सामने अब पुराने क्षत्रपों के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी एक बड़ा कारक बन गए हैं। बिना उनकी सहमति के वे एक कदम भी आगे नहीं रख पा रहे हैं। सिंधिया अभी भाजपा में भले ही जुम्मा-जुमा चार रोज पहले आये हैं लेकिन पार्टी में उनकी जड़ें पार्टी के जन्म के पहले से हैं। उनकी दादी और दो बुआ दशकों से भाजपा के साथ हैं और पार्टी हाईकमान भी उनके लिए पलक पांवड़े बिछाए बैठा है। पार्टी को पता है कि मप्र विधानसभा के अगले चुनावों में पार्टी की नाव शिवराज नहीं महाराज ही पार लगाएंगे और इसीलिए उन्हें राज्य सभा में भेजा गया है।
सरकार में एक शब्द चलता है ‘मलाईदार’ कहते हैं कि मलाईदार विभाग पाने के संघर्ष के चलते ही नए मंत्रियों को शपथ ग्रहण के चार दिन बाद भी बिना विभाग का मंत्री बनकर रहना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि विभागों के वितरण में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की मांग का विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। वैसे भी वे भाजपा के मौनी बाबा माने जाते हैं, वे उतना ही बोलते हैं जितने में काम चल जाये। पार्टी हाईकमान की सहमति लेने में जिस मुख्यमंत्री को चार रोज लग जाएँ तो आप समझ सकते हैं कि उसकी हैसियत क्या है?
आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि मध्यप्रदेश में एक ठहरी हुई यानि कि लंगड़ी सरकार चल रही है। उसको लड़खड़ाने से बचाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कदम-कदम पर सावधानी बरतना पड़ रही है। सिंधिया को अपने समर्थक मंत्रियों में कम से कम इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, यशोधरा राजे सिंधिया और राजवर्द्धन के लिए तो अहम विभाग चाहिए ही, ये वे लोग हैं जो सरकार में सिंधिया की और से संतुलन का काम करेंगे। आपको याद होगा कि कमलनाथ मंत्रिमंडल में प्रद्युम्न सिंह तोमर और इमरती देवी खुलकर मुख्यमंत्री के आड़े आ जाते थे। ये दोनों ही सरकार के सामने सिंधिया की नाराजगी जताने का काम करते थे।
भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच एक यक्ष प्रश्न ये भी अभी तक अनुत्तरित है कि ग्वालियर चंबल अंचल में भाजपा मुखर्जी भवन से चलेगी या रानी महल से? आपको बता दें कि इस समय रानी महल में पार्टी के राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही मंत्री बनी यशोधराराजे सिंधिया भी रहती हैं और ये दोनों शायद ही कभी मुखर्जी भवन गए हों। यशोधरा राजे के सभी चुनावों का संचालन भी मुखर्जी भवन के बजाय रानी महल से होता आया है।
भाजपा के सामने धर्म संकट ये है कि 24 सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों तक पार्टी सिंधिया की उपेक्षा भी नहीं कर सकती, क्योंकि 24 में से 16 सीटें तो अकेले ग्वालियर-चंबल अंचल में हैं और एक तरह से इन्हें जिताने का जिम्मा सिंधिया पर ही है। हालाँकि इसी अंचल से भाजपा के एक बड़े क्षत्रप केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी हैं, लेकिन उनके रहते ही पिछले विधानसभा चुनाव में सिंधिया की आंधी नहीं थम पाई थी।
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टीम मध्यमत