राकेश अचल
संकट को अवसरों में बदलना कोई पाप नहीं है, इसलिए बाबा रामदेव के नए आविष्कार ‘कोरोनिल’ को लेकर बावेला मचाना राष्ट्रद्रोह है। बाबा ने सरकार से फूटी कौड़ी लिए बिना कोरोना विषाणु की ऐसी-तैसी करने वाली भव्य-दिव्य औषधि खोजी है, इसके लिए उन्हें पुरस्कृत किया जाना चाहिए। देश पर ये बाबा जी का ऋण है, जिससे शायद ही कोई उऋण हो पायेगा। इस देश को बाबाजी ही बचाते आये हैं फिर चाहे शुंग वंश का राज रहा हो या आम आदमी के प्रतिनिधि का।
आपको पता नहीं है कि पूरी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। दुनिया का हर देश कोरोना का शिकार है। देश में आज की तारीख में दुनिया में कोई दस लाख मरीज हैं इस विषाणु के। पांच लाख के करीब कालकवलित हो चुके हैं, ऐसे में बाबाजी की खोज आशा की एक किरण है। बाबाजी की भव्य-दिव्य औषधि आम जनता को ही नहीं बल्कि देश की कोरोना ग्रस्त अर्थव्यवस्था का भी कायाकल्प कर सकती है। लेकिन कोई समझता ही नहीं।
हम एक गरीब देश हैं इसलिए अनुसन्धान पर ज्यादा खर्च नहीं कर सकते, इस समय हमारे देश को दवा से ज्यादा गोला-बारूद की जरूरत है। हमने इसीलिए अपने रक्षामंत्री को रूस तक भेजा है, अपनी सेना को पांच सौ करोड़ का आकस्मिक बजट दिया है। ऐसे में बाबा बिना एक पैसा लिए रिसर्च कर कुछ लाये हैं तो उनका अभिनंदन करना चाहिए, लेकिन ये आयुष मंत्रालय उन्हें अपनी कोरोना किट का प्रचार ही नहीं करने दे रहा! ये गलत बात है और मैं गलत बात का न समर्थन करता हूँ और न खुद कभी गलत बात करता हूँ।
आप कल्पना कीजिये कि बाबाजी की कोरोनाकिलर दवा भविष्य में हमारे कितने काम आने वाली है। आज जो चीन हमारा दुश्मन बना बैठा है (माफ़ कीजिये खड़ा है) वो ही कल हमसे बाबाजी की बनाई कोरोना किलर दवा मंगवाएगा। अपने सवा लाख नागरिक गंवा चुका अमेरिका तो हमारे सामने हाथ जोड़ेगा, गिड़गिड़ायेगा इस कोरोना किट के लिए। हमने यदि इन दो बड़े देशों को ही कोरोना किट बेच ली तो हमारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष देखते ही देखते लबालब हो सकता है। संकट को अवसर में बदलने का इससे बड़ा कोई दूसरा उदाहरण है आपके पास?
ये देश हमेशा से बाबाओं पर भरोसा करता रहा है और ये बाबा किसी डिग्री-विग्री के मोहताज कभी नहीं रहे। आप तो रामभक्त हैं, आपको पता है कि भगवान जी का जन्म भी एक बाबा की खीर से ही हुआ था। अब अगर ये खीर न होती तो न रामजी होते और न अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर होता। (क्षमा कीजिये मैं बहक गया) बात बाबाजी की कोरोना किट की हो रही थी और मुझे वो ही बात करना चाहिए।
तो बात ये है कि हमारे देश में युगों से डाबर,झंडू, ऊंझा, वैद्यनाथ जैसी असंख्य आयुर्वेद औषधि उत्पादक कंपनियों के होते पतंजलि ने ही कोरोनाकिल बनाने का काम किया है। इसलिए जो भी इनाम-इकराम बनता है, बाबाजी का बनता है। हम उन्हें पद्म अलंकरण दें या भारत रत्न, सब कम ही हैं। बाबा ने जान और जहां, दोनों की रक्षा के लिये कुछ बनाया है,ये कोई छोटी बात नहीं है।
मेरा तो सुझाव है कि सरकार को होने वाले बिहार विधानसभा के चुनाव में केंचुआ की ओर से हर मतदाता को बाबाजी की कोरोना किट मुफ्त में बांटने का आदेश देना चाहिए। कोरोना मुक्त मतदाता ही मुक्तभाव से नई सरकार चुन सकता है, अन्यथा जो भी सरकार चुनी जाएगी वो कोरोना ग्रस्त सरकार होगी। कोई तकनीकी बाधा हो तो सरकार के बजाय सरकारी पार्टी को ये काम करना चाहिए। हमारे सूबे में तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद आयुष काढ़ा वितरित करा रहे हैं। मुझे लगता है कि ये काढ़ा भी पतंजलि की ही देन होगा!
एक भूतपूर्व कम्पाउंडर होने के नाते मुझे पता है कि कोई भी कम्पाउंड कितनी कठिनाई से बनता है और फिर उसकी पुड़िया बनाना कितना कठिन होता है? एक जमाने में पुड़िया देने का एकाधिकार वैद्य-हकीमों का ही था लेकिन बाद में जानकार बाबाओं और नेताओं ने इस पर अतिक्रमण कर लिया।
कालांतर में ये पुड़िया भव्य-दिव्य रूप में प्लास्टिक की डिब्बियों में तब्दील हो गयीं इसलिए मैं सबसे कहता हूँ कि कोरोना हो या न हो, आप ‘कोरोनिल’ लीजिये अन्यथा एक बार अस्पताल गए तो आपका लाखों का बजट एक झटके में साफ़ हो सकता है। अस्पताल वाले तो केवल कमरे और आक्सीजन के बदले में मरीजों से प्रतदिन हजारों रूपये वसूल रहे हैं और बाबाजी क्या ले रहे हैं, कुल पांच-छह सौ रुपये। जान बचाने का इससे सस्ता सौदा कोई और हो सकता है, मुझे तो अभी नहीं मालूम।
आपको बता दूँ कि हमारे आयुर्वेद में वायरस का रस निकालने की अनेक विधियां हैं। सुश्रुत संहिता में उल्लेख है कि धूपन विधि से दृश्य व अदृश्य हानिकारक जीवाणुओं को दूर भगाया जा सकता है। यह विधि हवन जैसी ही है। मगर इसमें एक मिट्टी के बर्तन में धूपन जलाकर उसे पूरे संस्थान में घुमाया जा सकता है। भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में इसी विधि का प्रयोग अब सबसे बड़े चिकित्सा एवं शोध संस्थान राजीव गांधी राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय एवं स्नातकोत्तर महाविद्यालय पपरोला में भी शुरू किया गया है। प्राकृतिक तरीकों से रोगों पर जीत हासिल करने के लिए संस्थान में चल रहे स्वास्थ्य वृत्त एवं योग विभाग ने इसका जिम्मा उठाया है।
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टीम मध्यमत