नई दिल्ली/ चीन से सीमा को लेकर चल रहे विवाद के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को एक बड़ा झटका दिया है। ट्रंप ने अमेरिका में जाकर काम करने वालों के लिए दिया जाने वाला H1-B वीजा 31 दिसंबर 2020 तक रद्द करने की घोषणा की है। ट्रंप के इस फैसले से दुनिया भर के आईटी प्रोफेशनल्स को तगड़ा झटका लगा है और इसमें भी भारत को यह झटका कुछ ज्यादा ही जोर से लगेगा।
ऐसा इसलिए है कि अमेरिका द्वारा दिए जाने वाले H1-B वीजा का एक बड़ा हिस्सा भारतीयों के खाते में ही जाता रहा है। अमेरिकी आईटी कंपनियों में इसी वीजा के आधार पर भारत से गए आईटी प्रोफेशनल्स बड़ी संख्या में काम कर रहे हैं। ताजा आदेश 24 जून से लागू माना जाएगा।
इन दिनों भारत कोरोना संकट के चलते बेरोजगारी के गंभीर संकट से जूझ रहा है। ऐसे में आईटी क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाने वाले युवाओं को अमेरिका के H1-B वीजा के जरिये वहां नौकरी के अच्छे अवसर मिलने की उम्मीद कायम थी। लेकिन ट्रंप सरकार के इस फैसले ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया है।
ट्रंप सरकार के इस फैसले पर गूगल के भारतीय मूल के सीईओ सुंदर पिचई ने निराशा व्यक्त की है। पिचई ने कहा कि इमिग्रेशन की वजह से दुनिया भर की प्रतिभाओं को अमेरिका में आकर काम करने का मौका मिलता है और इससे अमेरिका को बहुत फायदा भी हुआ है। बाहर से आने वाले ऐसे ही प्रोफेशनल्स के कारण अमेरिका आज ग्लोबल टेक लीडर बना है। सरकार का ताजा फैसला निराश करने वाला है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रंप के फैसले से अमेरिका में नौकरी करने का सपना देखने वाले करीब ढाई लाख लोगों को झटका लगा है। अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों के लिए विदेशी कामगारों को मिलने वाले वीजा को एच-1 बी वीजा कहते हैं। इसे एक तय अवधि के लिए जारी किया जाता है।
नए फैसले के तहत H1B, L1 और अन्य अस्थाई कामकाजी वीजा को सस्पेंड करने का मतलब यह भी है कि जिन आईटी प्रोफेशनल्स का H1B वीजा अप्रैल की लॉटरी में अप्रूव हो गया था उन्हें भी अब अमेरिका में आने की इजाजत नहीं होगी। अलबत्ता इस फैसले का असर उन लोगों पर नहीं होगा जिनके पास पहले से यूएस में कामकाज करने के लिए वीजा है। अमेरिकी सरकार का कहना है कि इन वीजा पर लगी अस्थाई रोक की वजह से अमेरिका में स्थानीय लोगों के लिए 5.25 लाख नौकरियों के अवसर बनेंगे।