ग्रहण लगी राजनीति का देश

राकेश अचल

आज सूरज को ग्रहण लगा है। ये तो जाने कब से लगता रहता है, लेकिन जो ग्रहण देश की राजनीति को लगा है उसके मोक्ष के बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं होती। ग्रहण का मतलब सिर्फ ग्रहण होता है। यानि कोई है जो आपके रास्ते में आकर एक बाढ़ खड़ी करता है। कोशिश करता है आपकी आभा को समाप्त करने की। लेकिन कर नहीं पाता। सूरज हो या चंद्र हर ग्रहण के बाद मोक्ष को प्राप्त हो ही जाते हैं लेकिन ये जो सियासत है इसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो रही है।

देश की राजनीति को लगे ग्रहण के बारे में न कोई ज्योतिषी बोलता है और न कोई खगोलशास्त्री। हम जैसे अलोलशास्त्री बोलें भी तो हमारी सुनता कौन है? नक्कारखाने में तूती की आवाजें हमेशा दबकर रह जाती हैं। ग्रहण लगी सियासत के इस देश में मीडिया को भी ग्रहण लगा हुआ है। मीडिया पता नहीं किसकी गोद में जाकर छिप गया है। जो नहीं छिपा है वह मरा पड़ा है यानि शोक का माहौल है। छंटनियाँ हो रही हैं। कोई अजीठिया, मजीठिया काम नहीं आ रहे। आदमियों को सताने वाला कोरोना मीडिया को भी सता रहा है।

जब मैं सियासत के ग्रहण की बात करता हूँ तो उसमें सत्ता और विपक्ष दोनों शामिल होते हैं। दोनों का चोली-दामन का साथ बताया जाता है, बताया क्या जाता है, होता है लेकिन आजकल ये साथ भी ग्रहण का शिकार है। चोली कहीं है और दामन कहीं। सियासत की आबरू खतरे में है। सियासत की आबरू यानी लोकतंत्र की आबरू। लोकतंत्र न हो तो काहे की सियासत? दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। हमारे नेताओं ने सियासत को ग्रहण से बचाने के लिए हालांकि उसे वर्चुअल बना लिया है, फेसमास्क लगा लिए हैं लेकिन सियासत है कि बच ही नहीं पा रही, ग्रहण (संक्रमण) से।

आप सोच रहे होंगे कि बन्दे के ऊपर आज सूर्य ग्रहण का असर हो गया है जो आंयबांय बके चला जा रहा है, लेकिन हकीकत यही है कि ग्रहण चाहे सूरज को लगे चाहे सियासत को, उसका असर होता है। ये बात और है कि असर कैसा होता है? शनि की दशा ठीक ठाक हो तो असर अच्छा भी हो सकता है, अन्यथा बंटाधार ही समझिये।

आप लाखों-करोड़ों के पैकेज देकर भी ग्रहण के कुप्रभावों को कम नहीं कर सकते। कोरोना के ग्रहण ने देश का बंटाधार कर ही दिया न? न घर में चैन है और न सरहद पर। सब जगह हद हो रही है। किसी के कुछ समझ नहीं आ रहा। वो तो गनीमत है कि हमारे पास एक जिम्मेदार चौकीदार किस्म का प्रधानमंत्री है सो लाज बची हुई है। अन्यथा हम किसी दीन के न रहते।

सूर्य ग्रहण तो तीन-चार घंटे में समाप्त हो जाएगा लेकिन देश की सियासत को लगे ग्रहण को समाप्त होने में पता नहीं कितना वक्त लगे। कुछ समझदार ज्योतिषी कहते हैं कि देश की सियासत को लगे ग्रहण को समाप्त करने का एक क्षीण सा योग 2024 में है लेकिन ये योग तभी असरकारक होगा जब चौकीदारी के लिए कोई बढ़िया विकल्प देश की सियासत के सामने मौजूद हो। प्रकट हो। अवतार ले।

नारद जी कहते हैं कि सियासत के दुःख-दर्द को विष्णु भगवान भी समझते हैं, लेकिन वे क्या कर सकते हैं? देश की सियासत देखकर तो वे भी अवतार लेने को तैयार नहीं है। ग्रहण से मुक्ति का एक ही रास्ता है, और वो है कठोर साधना। आइये हम सब मिलकर थोड़ी-बहुत साधना करें। शायद ऊपर वाला सुन ले!

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टीम मध्‍यमत

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