आकाश शुक्ला
असहमति और आलोचना को अपनी जिंदगी में स्थान दें, क्योंकि यदि कोई आपसे असहमत है तो उसका मतलब यह नहीं कि वह आप का विरोधी ही हो। हो सकता है कि वह जिस बात पर आप से असहमत है, उस बात पर उसको आपसे ज्यादा जानकारी और अनुभव हो। इसीलिए हमें, हमारी किसी बात पर असहमति जताने वाले व्यक्ति से, उसकी असहमति का कारण जानना चाहिए और उस कारण पर गंभीरता से विचार करते हुए उस कार्य को करने का निर्णय लेना चाहिए।
हो सकता है कि हमसे असहमति जताने वाले व्यक्ति के सुझाव हमें गलतियां करने से रोकें और हमारे कार्य को अच्छे से संपन्न करने में मदद करें। असहमति जताने वाले की पद, प्रतिष्ठा, उम्र ज्ञान, जाति, धर्म पर विचार करने के स्थान पर उससे उसकी असहमति का आधार पूछना चाहिए और उस पर जरूर विचार करना चाहिए। संभव है जिंदगी में किसी की असहमति हमें कोई नई राह दिखा जाए।
हमारी हर बात पर सहमति जताने वाले व्यक्ति और हर बात पर हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति के कारण हमारे जीवन में कभी सुधार नहीं आ सकता, ना ही हमें हमारी गलतियां कभी समझ आ सकती हैं। किसी बात पर असहमति जताने वाला व्यक्ति ही हमारी गलतियों का एहसास करा कर हमारे कार्य और जीवन में सुधार ला सकता है।
हमारे जीवन में, परिवार में, माता-पिता जब बचपन में हमारे कार्यों से असहमत होते हैं तो वह असहमति हमें तकलीफ देती है। परंतु हमारी जिंदगी का समय बीतने पर हमें हमारे शुरुआती जीवन में, हमारे माता-पिता की असहमति का महत्व समझ आता है।
इसी प्रकार यदि समाज में असहमति का स्थान खत्म हो जाए तो समाज के सुधार की गुंजाइश भी खत्म हो जाती है। यदि सभी लोग हर बात में एक दूसरे से सहमत हो जाएं तो आदमी और भेड़ में कोई अंतर नहीं रहेगा। पूरा समाज भेड़ चाल में चलने लगेगा। इसलिए सामाजिक सुधारों के लिए भी गलत बातों पर असहमति आवश्यक है। यदि समाज में असहमति नहीं होती तो सती प्रथा, विधवा विवाह, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयां कभी खत्म नहीं होतीं।
इसी प्रकार देश के विकास, भलाई और उन्नति के लिए असहमति आवश्यक है। यदि देश में असहमति नहीं हो तो देश के शासक को अपनी गलतियां ही पता नहीं चलेंगी और सरकार की नीतियों से होने वाले नुकसान का आकलन भी सरकार नहीं कर पाएगी। जब असहमतियों के कारण गलतियों का आकलन सरकार करेगी, तब गलतियों में सुधार की गुंजाइश बनेगी।
हमारे देश की आजादी का कारण अंग्रेजी शासन की नीतियों से उपजी असहमतियां बनीं। यदि हम अंग्रेजी शासन से सहमत रहते तो हमें कभी आजादी नहीं मिलती, न ही उपनिवेशवाद खत्म होता। इसीलिए हमें जिंदगी में असहमति को भी महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए और उचित असहमति पर चिंतन करते हुए जीवन को सही दिशा देने का प्रयास करना चाहिए। इसे वैमनस्यता, विरोध और दुश्मनी का कारण नहीं बनने देना चाहिए।
सहमति के साथ असहमति का सह अस्तित्व आश्चर्यजनक है, सत्य ही है कि सहमति का घटते जाना असहमति में बदल जाता है और असहमति का घटते जाना सहमति में बदल जाता है।
————————————-
आग्रह
कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक कर मध्यमत यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।
https://www.youtube.com/c/madhyamat
टीम मध्यमत