अजय बोकिल
ये ‘गमछा प्रकरण’ जितना चौंकाने वाला है, उतना ही दिलचस्प भी है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी नहीं सोचा होगा कि जनता को मास्क पहनने का संदेश देने के लिए उन्होंने जिस गमछे से मुंह ढंका था, वह दो भाजपा शासित राज्यों के बीच विवाद का कारण बन जाएगा। इस गमछे को लेकर पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के हथकरघा एवं कपड़ा निदेशक ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर आपत्ति जताई है कि वह यूपी में मणिपुरी मफलर लांगयेन की नकल बनाने पर तुरंत रोक लगाए।
चिट्ठी के मुताबिक मोदी ने जो गमछेनुमा कपड़ा मुंह पर ढंका था, वह मणिपुर की खास पहचान लांगयेन था, जो लेईरम फी कपड़े से बनता है। इस लांगयेन से मणिपुर का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक जुड़ाव है। उत्तरप्रदेश उस पर यूं ‘डाका’ नहीं डाल सकता। केन्द्र सरकार ने इस का क्या जवाब दिया, यह अभी साफ नहीं है, लेकिन उधर राज्य के कई बुनकरों ने इस लांगयेन का उत्पादन ‘मोदी गमछा’ के नाम से करना शुरू कर दिया है और कानपुर की कई ई-कॉमर्स कंपनियों ने इसकी ‘ऑनलाइन बिक्री’ भी शुरू कर दी है।
ऐसे में मणिपुरवासियों को लग रहा है कि गमछे के रूप में यह उनके पेट पर ही लात मारी जा रही है। उनकी पहचान भी छीनी जा रही है। इस पूरे विवाद की जड़ में लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 14 अप्रैल को राष्ट्र के नाम संबोधन के वक्त पहना गया वो सुंदर और खास तरह का गमछा है, जिसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि यदि आप के पास तैयार मास्क नहीं है तो आप देशी गमछा भी बतौर मास्क कोरोना से बचाव के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेकिन मामला जोर पकड़ गया और यहीं नहीं थमा तो गमछा पॉलिटिक्स भी जोर पकड़ सकती है। क्योंकि मणिपुरवासियों का साफ कहना है कि उनका ‘लेईरम फी’ कभी ‘मोदी गमछा’ नहीं हो सकता है। लिहाजा मणिपुर ने इसका जी आई टैग हासिल करने की तैयारी शुरू कर दी है। खास बात यह है कि यह विवाद उन दो भाजपा शासित राज्यों में छिड़ा है, जिनके आदर्श राजपुरुष मोदी ही हैं।
चूंकि मोदी का अपना स्टाइल स्टेटमेंट है और हर राष्ट्र के नाम संबोधन के वक्त उनके कपड़े, उसकी डिजाइन, करीने से ट्रिम की हुई दाढ़ी, चश्मा आदि यही संदेश देते हैं कि वो अपनी प्रेजेंटेबिलिटी को लेकर कितने संजीदा हैं। ऐसे में उनका हर पहनावा और अदा समर्थकों के बीच लोकप्रिय होती जाती है। उनकी बातों को लोग कितनी गंभीरता से लेते हैं, यह कहना कठिन है, लेकिन उनके स्टाइल स्टेटमेंट को हाथों-हाथ लिया जाता है।
यही वजह है कि मोदी कुर्ता, मोदी जैकेट, मोदी स्टाइल की दाढ़ी भी मोदी समर्थकों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाती है। इससे बाजार का भी एक नया चैप्टर खुलता है। 14 अप्रैल के संबोधन से यूपी के बुनकरों ने प्रेरणा ली और बाराबंकी जिले के शाहबादपुर के उबेद अंसारी जैसे बुनकरों ने उसी डिजाइन के ‘मोदी गमछे’ बनाकर बेचना शुरू कर दिए। कुछ वेबसाइट्स पर ये मोदी गमछा 299 रुपये में उपलब्ध है।
यहां समझने की बात यह है कि आखिर मणिपुरी लेईरम फी में ऐसा क्या है, जिसकी नकल ‘मोदी गमछे’ के रूप में करने पर मणिपुर को आपत्ति है। वरना आजकल तो कट पेस्ट का जमाना है। डिजाइन तक मार लिए जाते हैं और उनकी नकल शुरू हो जाती है। लेकिन मणिपुर के लिए लेईरम फी का भावनात्मक महत्व है। क्योंकि लेईरम फी हथकरघे पर बनता है और इसे बेहद कुशल बुनकर ही बनाते हैं।
खास बात है इसकी डिजाइन, जो खास मणिपुरी टच लिए हुए है। लेईरम फी का सम्बन्ध राज्य के दो प्रभावशाली समुदायों मैतेई और तांग्खुल से है। कहा जाता है कि सदियों पहले तांग्खुल समुदाय ने मैतेई को ‘लेईरम फी’ भेंट किया था ताकि दोनों समुदायों के बीच अच्छे रिश्ते बने रहें। इसे पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच सम्बन्धों के रूप में भी याद किया जाता है। तब से राज्य के प्रभावशाली मैतेई समुदाय में शादी के समय वधु पक्ष की ओर से यह वस्त्र अनिवार्य रूप से दिया जाता है।
कहते हैं कि इस विशेष वस्त्र की बुनाई का आदेश मणिपुर के राजा द्वारा राज बुनकर 32 युमनाक को दिया जाता है। यह परंपरा एक हजार से चली आ रही है। समय के साथ फैशन डिजाइनरों ने इसे और आकर्षक रूप दिया और इसे मणिपुरी संस्कृति को प्रस्तुत करने वाला वस्त्र बना दिया। मणिपुर की आपत्ति इस बात पर भी है कि उनके लेईरम फी की नकल यूपी में पावरलूम पर बने मोदी गमछे के रूप में की जा रही है। जबकि लेईरम फी पूरी तरह हाथों से बना वस्त्र है। इसमें मानव श्रम और कौशल लगता है। यह मणिपुर की पारंपरिक कला है। इसलिए इसकी ‘यूनिकनेस’ भी है। जबकि यूपी में ‘मोदी गमछे’ के नाम पर मशीन से थोक में वस्त्र बनाए जा रहे हैं। इससे मणिपुर के कारीगरों का रोजगार छिनेगा।
यूपी की इस पहल पर आपत्ति उठाते हुए मणिपुर के हैंडलूम एवं वस्त्र निदेशालय के निदेशक के. लामली कामेई ने केन्द्रीय कपड़ा मंत्रालय को कड़ी चिट्ठी लिखकर कहा है कि इससे मणिपुर वासियों में ‘भावनात्मक असंतोष’ है। यूपी के कपड़ा कारखानों के मालिक केवल मुनाफा कमाने की नीयत से हमारे पारंपरिक डिजाइनों और छापों की नकल कर रहे हैं। बता दें कि लेईरम का अर्थ है मोटा कपास और फी का अर्थ है कपड़ा। यानी कि मोटे कपास के कपड़े से बना वस्त्र। खास बात है इसकी डिजाइन। यह डिजाइन लाल, काली और बीच में सफेद पट्टियों से बनी होती है।
मणिपुर में इसका उपयोग अंगवस्त्र के रूप में भी किया जाता है। जब इसे मफलर की तरह इस्तेमाल किया जाता है तब इसे लेईरम फी लेंगयान कहा जाता है। चूंकि भारत संस्कृतिबहुल देश है, इसलिए एक राज्य या अंचल की संस्कृति से दूसरा कुछ ले या उठाए, इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन मणिपुरवासियों को लेईरम फी के ‘मोदी गमछे’ में तब्दील होने के पीछे डर इस बात का है कि इस गमछे का थोक उत्पादन मणिपुर के बुनकरों के हाथ बांध देगा। हम विदेशी की नकल छोड़ ’स्वदेशी’ पर जोर दे रहे हैं, लेकिन इस अंतर्देशीय नकल को क्या नाम दिया जाए?
केन्द्रीय कपड़ा मंत्रालय ने मणिपुर की शिकायत पर क्या कार्रवाई की, पता नहीं। लेकिन दो राज्यों और वो भी भाजपा शासित राज्यों के बीच इस तरह गमछे पर ’ठन’ जाए, यह ठीक नहीं है। वैसे भी अगर मणिपुर को लेईरम फी का टैग मिल गया तो यूपी के बुनकरों को दिक्कत हो सकती है। यहां मूल मुद्दा यह है कि नकल की जाए, लेकिन किस कीमत पर?
प्रधानमंत्री मोदी ने गमछा लपेटने की सलाह शायद इसलिए दी होगी कि गांवों में तैयार मास्क आसानी से न मिलते हों और गांव वाले यूं भी धूप से बचने या हाथ वगैरह पोंछने के लिए गमछे सिर पर बांधते हैं या फिर कंधे पर डाले रहते हैं। लेकिन मोदी की स्टाइल की नकल करने वालों अथवा प्रशंसकों को यह बात समझनी होगी कि बात केवल गमछा लपेटने की नहीं है। हर ‘गमछा’, ‘मास्क’ नहीं होता और न ही हो सकता है।
लेईरम फी में मणिपुरी संस्कृति लिपटी है। सामान्य गमछों में वो बात नहीं होती। पूर्वोत्तर के लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। उनकी भावना का सम्मान किया जाना चाहिए। हर स्टाइल को धंधे से जोड़कर देखना उचित नहीं है और न ही मणिपुरी लेईरम पर मोदी गमछे का लेबल लगाना उचित है। उत्तर प्रदेश के बुनकर मौलिक डिजाइन के ‘मोदी गमछे’ बना सकते हैं। देखना यह है कि केन्द्र सरकार दो भाजपा शासित राज्यों के बीच इस ‘गमछा विवाद’ का निदान किस तरह करती है। ‘लेईरम’ बनाम ‘मोदी गमछा’ जंग जल्द थमनी चाहिए।
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