पहली बार दागवार सिंधिया

राकेश अचल

राजनीति में आना कोयले की खान से गुजरने जैसा है। कम ही लोग इसमें से बेदाग़ बाहर निकल पाते हैं। बीस साल से ‘मिस्टर क्लीन’ की तरह राजनीति कर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी अंतत: विधानसभा के टिकिट बेचने का घृणित आरोप लग गया। ये घटना हम जैसे आम मतदाताओं के लिए भी पीड़ादायक है, क्योंकि आम जनता की नजरों में कुछ ही लोग पाक-साफ़ दिखाई देते हैं।

कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा में सिंधिया का प्रवेश क्या हुआ उनके ऊपर आरोपों की बौछार शुरू हो गयी, पहले ये काम भाजपा वाले करते थे, अब ये काम कांग्रेस वाले कर रहे हैं और सप्रमाण कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों के समय कुछ लोगों ने भी मुझसे इस तरह की बात कही थी, तब मुझे लगा था कि सिंधिया के निज सचिव पुरुषोत्तम पाराशर से चिढ़न वाले लोग कहानियां गढ़कर लाते हैं। लेकिन अशोकनगर की एक महिला नेत्री द्वारा जारी किये गए एक ऑडियो ने मेरी धारणा को खंडित कर दिया है, अब मुझे भी लगने लगा है कि -‘दाल में कुछ न कुछ काला ‘जरूर है।

सिंधिया के ऊपर कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता रहे माणक अग्रवाल ने भी आरोप लगाया है कि पूर्व मंत्री और भाजपा नेता सरताज सिंह को भी सिंधिया ने ही टिकिट दिलाया था और इसके एवज में सरदार जी ने एक करोड़ रूपये दिए थे। अब गुना की आरती जैन और भोपाल के माणक अग्रवाल के पास इन आरोपों के समर्थन में कोई पक्का सबूत नहीं है, सिवाय एक ऑडियो के, लेकिन कहीं न कहीं पोशीदा आग जरूर थी जिसमें से अब धुंआ उठ रहा है।

राजनीति में नए-नए अलंकरणों से सुशोभित किये जाने वाले सिंधिया की तरफ से इन आरोपों के बारे में अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। वे हाल ही में कोरोना से मुक्त होकर कोरंटीन में हैं। वे जब इस पर बोलेंगे तब ही कुछ कहा जा सकेगा, फिलहाल तो उनके दामन पर दाग लगाए जा चुके हैं।

मजे की बात ये है कि सिंधिया को अपनाने वाली भाजपा इस समय सिंधिया के बचाव में आगे नहीं आ रही है। आपको याद होगा कि एक जमाने में भाजपा के राज्य सभा सदस्य प्रभात झा ने सिंधिया पर शिवपुरी में सरकारी जमीनें हड़पने के सप्रमाण आरोप लगाए थे, लेकिन बाद में उन्हें चुप करा दिया गया।

सिंधिया के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया और दादी स्वर्गीय विजयाराजे सिंधिया ने हमेशा बेदाग़ राजनीति की। राजमाता ने भी सातवें दशक में कांग्रेस की सरकार गिराई थी, लेकिन तब भी उनके ऊपर कोई आरोप भ्रष्‍टाचार का नहीं लगा था। माधवराव सिंधिया पर हवाला काण्ड में शामिल होने का आरोप लगा, लेकिन वे इसकी जांच में बेदाग़ निकले। हालांकि उन्होंने नैतिकता के चलते अपने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया था।

आम धारणा है कि सिंधिया खानदान के पास अकूत संपत्ति और वैभव है इसलिए उन्हें राजनीति में भ्रष्‍टाचार करने की कोई जरूरत नहीं है। न ही उन्हें सांसद निधि से कराये गए कामों की दलाली की जरूरत है और न ही किसी और तरीके से धन कमाने की जरूरत। इस बिना पर श्रीमती जैन और माणक अग्रवाल के आरोप निराधार और राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं।

लेकिन इनके बारे में सिंधिया को खुद बोलना पडेगा, मेरा मन इन आरोपों को ठीक उसी तरह लेता है जैसे आम जनता ले रही है। मजे की बात ये है कि सिंधिया पर आरोप लगाने वाले कल तक चुप थे, क्योंकि वे कंग्रेस में असरदार स्थिति में थे, लेकिन आज उनकी स्थिति बदल गयी है इसलिए सबके सुर बदले हुए हैं।

भ्रष्‍टाचार के आरोप राजनीति में नए नहीं हैं, लेकिन सिंधिया जैसे नेताओं पर यदि ऐसे आरोप लगते हैं तो हैरानी होती है। ये आरोप कांग्रेस के किसी अन्य नेता पर लगाए जाते तो किसी को हैरानी नहीं होती क्योंकि उनके लिए ये एक सामन्य बात है। वैसे नेता आरोप प्रूफ होते हैं। हमारे मौजूदा मुख्यमंत्री जी तो अपने पहले कार्यकाल से ही आरोपों की जद में रहे हैं, लेकिन वे आज भी भाजपा के प्रिय हैं।

प्रदेश सरकार ने इन आरोपों के बारे में अभी कोई संज्ञान नहीं लिया है, लेकिन ग्वालियर के आईजी राजाबाबू ने जरूर कहा है कि वे कांग्रेस की इस बाबद मिली शिकायत की जांच कराएँगे। सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार राजा बाबू को ऐसा करने की इजाजत देगी?

बहरहाल सबको इन्तजार है कि सिंधिया खुद इस मुद्दे पर कब और क्या बोलते हैं? जब तक सिंधिया मौन हैं तब तक सब कुछ हवा-हवाई है। सिंधिया के पास दो विकल्प हैं, पहला ये कि वे इन आरोपों को खारिज कर दें या फिर इनकी जांच की मांग खुद कर आरोप लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कीमांग करें।

जो लोग सिंधिया को जानते हैं, वे मानते हैं कि सिंधिया इस बारे में शायद ही कुछ बोलें। सिंधिया सक्रिय राजनीति में दो दशक से हैं। इन दो दशकों में उन्होंने राजनीति में मिलने वाला हर वैभव हासिल किया और गंवाया भी है। ये स्थिति लेकिन उनके लिए अप्रत्याशित है। राजनीति में सिंधिया घराने की विरासत को इन ताजा आरोपों से काफी नुक्सान हुआ है।

सिंधिया परिवार पर अनेक तरह के आरोप लगते रहे हैं, इनमें एक आरोप तो सनातन है, गद्दारी का। लेकिन इसे कोई प्रमाणित नहीं कर पाया। पर अब जो आरोप लगा है वो भ्रष्‍टाचार का आरोप है। ये आरोप भी अप्रामाणिक ही है। इसे प्रमाणित करना भी उतना ही कठिन है जितना की पहला आरोप।

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टीम मध्‍यमत

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