राकेश अचल
देश में यद्यपि कांग्रेस का वजूद बहुत क्षीण हो गया है किन्तु आज भी भाजपा को कांग्रेस ही अपनी दुश्मन नंबर एक दिखाई दे रही है, इसका कारण ये है कि चाहे, अनचाहे भी आज देश में कांग्रेस को छोड़कर कोई दूसरा दल नहीं है जिसमें भाजपा को भविष्य में चुनौती देने की क्षमता हो। कोरोना से जूझ रहे देश को अधर में छोड़कर देश के गृह मंत्री अमित शाह, बिहार के बाद अब बंगाल में वर्चुअल रैली के जरिये कांग्रेस पर प्रहार कर रहे हैं। देश जब लॉकडाउन में था तब शाह साहब ने भूमिगत रहकर इस लड़ाई की भव्य तैयारियां की थीं। खबर है कि बंगाल में अमित शाह की वर्चुअल रैली को कामयाब बनाने की लिए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। 65 हजार बूथों तक पहुंचकर इसे वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाने की तैयारी है।
लेकिन शाह की शाही रैलियों के बजाय आज मै आपसे कांग्रेस की बात करूंगा। कांग्रेस आज डूबता जहाज लगती है, फिर भी लोग इसमें सवार हैं, इसे छोड़ना नहीं चाहते और कांग्रेस के इस जहाज के पास ऐसा कोई कप्तान नहीं है जो इस डूबते जहाज को बचाने के साथ ही असंख्य लोगों की हसरतों को पार ले जाये। कांग्रेस पिछले एक दशक में लगातार कमजोर हुई है। संगठन के मामले में भी और रणनीतियों के मामले में भी। कांग्रेस का 55 साल का सत्ता में रहने का तजुर्बा अब उसके काम नहीं आ रहा है। कांग्रेस का नया-पुराना कार्यकर्ता लगातार असहाय होता दिखाई दे रहा है।
ताजा प्रसंग मध्यप्रदेश और गुजरात का ही है। गुजरात में पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन जैसे ही कांग्रेस सत्ता से छिटकी उसका मनोबल एक विपक्ष के रूप में निखरने के बजाय बिखर गया। अब वहां कांग्रेस के विधायक लगातार भाग रहे हैं, परोक्ष रूप से कह सकते हैं कि बिक रहे हैं, लेकिन कोई उन्हें समझने-समझाने वाला नहीं है। राज्य सभा चुनावों से ठीक पहले ये सब हो रहा है और कांग्रेस सोती दिखाई दे रही है। इससे पहले भी कांग्रेस अहमद पटेल के चुनाव के समय गुजरात में यही सब झेल चुकी है।
गुजरात से पहले कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में पंद्रह साल बाद सत्ता में वापसी की, लेकिन डेढ़ साल में ही सत्ता गंवा बैठी। कांग्रेस में उम्रदराज हो चुके नेताओं की हठधर्मी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेता पार्टी से बाहर जाने को विवश हो गए, लेकिन पार्टी का आला कमान सोता रहा, उसे शायद इसका अफ़सोस तक नहीं है। आज नहीं तो कल राजस्थान में भी यही सब हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस में संवाद के सारे पुल टूट चुके हैं। संगठन भरभरा कर गिर चुका है, उसे सम्हालने वाला कोई नहीं है। कार्यकर्ता हताश हैं।
मुझे याद है कि राहुल गांधी ने कुछ वर्ष पूर्व कॉरपोरेट पैटर्न पर संगठन को खड़ा करने के लिए देशव्यापी मुहिम चलाई थी और इसके सकारात्मक परिणाम भी आये थे, किंतु राहुल ने जिस टीम को तैयार किया था, उसे कांग्रेस के ही क्षत्रप निगल गए। राहुल उनकी रक्षा नहीं कर पाए।
मध्यप्रदेश को कांग्रेस हाईकमान एक नया अध्यक्ष तक नहीं दे पाया। लगता है हाईकमान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के सामने असहाय है, जबकि ये दोनों ही वर्तमान में कांग्रेस के असल खलनायक हैं। कांग्रेस हाईकमान ने इन दोनों को प्रदेश में पार्टी की टूट-फूट के लिए न दण्डित किया और न बदला। अब ऐसे बूढ़े नेतृत्व से आप क्या उम्मीद करते हैं? कांग्रेस को मजबूत बनाने का कोई मास्टर प्लान हाईकमान के पास जैसे है ही नहीं।
देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश उत्तरप्रदेश में अकेले श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा कमान सम्हाले हैं, लेकिन वे अकेले दम पर कांग्रेस को कितनी देर तक सम्हाल पाएंगी, कहना कठिन है। देश में सत्तारूढ़ भाजपा से देश के अलग-अलग हिस्सों में लड़ने वाले अनेक क्षेत्रीय दल हैं किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर लड़ने वाला कोई दल नहीं है, इसीलिए भाजपा लगातार निरंकुश होती जा रही ही। और इसमें उसका कोई दोष भी नहीं है, दरअसल लोकतंत्र में एक सबल विपक्ष की भूमिका न निभाकर कांग्रेस देश के साथ अपराध कर रही है। इसका अहसास कांग्रेस को है या नहीं हम नहीं जानते लेकिन हकीकत तो हकीकत है।
बिहार और बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने कोरोनाकाल में जिस तरह की तैयारियाँ कीं और उन पर अमल भी शुरू कर दिया, उसके मुकाबले कांग्रेस अभी भी शीतनिन्द्रा में है। कांग्रेस की इन राज्यों में मुकाबले की क्या तैयारियां हैं कोई नहीं जानता, कांग्रेस के कार्यकर्ता तक नहीं जानते। ऐसे में भाजपा की बढ़त को रोक पाना नामुमकिन है।
भाजपा की रणनीति की मैं शुरू से सराहना करता आया हूँ क्योंकि उसके पास समर्पित नेता और कार्यकर्ता हैं। आप भाजपा की रीति-नीति से असहमत हो सकते हैं लेकिन उसकी आक्रामक राजनीति से इंकार नहीं कर सकते। भाजपा का सांगठनिक ढांचा आज की तारीख में सभी राजनीति दलों के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ है।
आभासी तकनीक के जरिये सियासत कैसे लड़ी जाये इसका मुजाहिरा भाजपा कर चुकी है, किन्तु कांग्रेस के पास इसके मुकाबले में क्या है किसी को कुछ नहीं पता। कांग्रेस के आम कार्यकत्र्ता की बात हाईकमान तक पहुँचाने वाली कोई कड़ी है ही नहीं जैसे कि भाजपा में संगठन मंत्री होता है। कांग्रेस में कार्यकर्ता को न प्रदेश स्तर पर सुना जा रहा है और न हाईकमान के स्तर पर।
इसी संवादहीनता का खमियाजा कांग्रेस पिछले एक दशक से भुगत रही है और यदि फौरन न सम्हली तो आगे भी भुगतेगी। कांग्रेस अब एक लापरवाह और उदासीन राजनीतिक दल है, उसके पास न अपने संगठन में समन्वय की क्षमता रही है और न दल से बाहर मित्रदलों के साथ समन्वय करने की क्षमता। देश के क्षेत्रीय दल अपनी सुविधा की राजनीति करते हुए भाजपा के साथ चाहे-अनचाहे कदमताल कर रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रीय परिदृश्य बेहद निराशाजनक है।
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टीम मध्यमत