डॉ. अजय खेमरिया
24 उपचुनावों की पहाड़ सी चुनौती से मुकाबिल कांग्रेस में घर की कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। जिस चंबल ग्वालियर से बीजेपी सरकार के भविष्य का निर्णय होना है वहाँ कमलनाथ और दिग्विजयसिंह की लड़ाई खुलकर सामने आ गई है। रविवार को पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह ने राकेश चौधरी की घर-वापसी पर एतराज जताया तो आज उनका जवाब देने के लिए चौधरी खुद भिंड से ग्वालियर आये और मीडिया के सामने दिग्विजयसिंह के अलावा अजय सिह और पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह पर गंभीर आरोप लगाए।
माना जा रहा है कि कमलनाथ के इशारे पर ही चौधरी राकेश ने सोमवार को बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस लेकर यह हमला बोला है। चौधरी ने अजय सिंह पर जिस तल्खी के साथ आरोप लगाये हैं वे ठीक वैसे ही हैं जैसे 2013 में पार्टी छोड़ते हुए लगाए गए थे। राकेश सिंह ने कहाकि अजय सिंह खुद तीन चुनाव हार चुके हैं और अपने पिता की विरासत को जो न बचा पाया हो वह कांग्रेस का क्या भला करेंगे।
राकेश सिंह ने इस कांफ्रेंस में जो कहा है उसके बहुत ही गहरे निहितार्थ भी हैं, क्योंकि रविवार को दिग्विजयसिंह ने कहा था कि “मैं राकेश चौधरी के प्रवेश और मेहगांव से टिकट के पक्ष में नही हूँ” सोमवार को इसका जबाब देते हुए चौधरी राकेश ने कहाकि मैं तो कांग्रेस में ही हूँ और राहुल गांधी ने मुझसे खुद काम करने के लिए कहा है। यानी राकेश सिंह ने घोषित कर दिया कि वह कांग्रेस में हैं और उन्हें दिग्विजयसिंह, अजय सिंह की किसी एनओसी की जरूरत नही है।
मेहगांव से टिकट को लेकर भी उन्होंने स्थिति साफ करते हुए कहा कि कमलनाथ ने उन्हें बुलाकर पूछा है कि क्या वे चुनाव लड़ना चाहते हैं? इस पर उन्होंने एक तरह से अपनी सहमति व्यक्त की है। पार्टी आदेश मानने के लहजे में। यानी कमलनाथ मेहगांव से चौधरी को टिकट देने का मन बना चुके हैं, इसलिए रविवार के दिग्विजयसिंह के बयान का मतलब है इस मामले पर दोनों नेताओं के बीच मतभेद की स्थिति।
असल में अब यह स्पष्ट हो गया है कि मप्र में कमलनाथ और दिग्गीराजा के बीच समन्वय का दौर खत्म सा हो गया है, जो कमलनाथ के सीएम रहते देखा जाता था। महीने भर में दिग्गीराजा को तीसरी बार यह कहना पड़ा है कि उनके और कमलनाथ के बीच कोई मतभेद नहीं हैं। यह साबित करता है कि जिन परिस्थितियों ने कमलनाथ सरकार के पतन की पटकथा लिखी थी, कमोबेश उनमें कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया है।
राकेश चौधरी कमलनाथ और दिग्गीराजा के बीच अलगाव के प्रतीक भर हैं और यह भी समझना होगा कि सिंधिया के जाने के बाद कमलनाथ मप्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए भी व्यूह रचना में जुटे हैं। ग्वालियर चंबल अंचल में वे अब उन चेहरों को आगे बढ़ाना चाहते हैं जो जीतने के बाद उनके हमकदम रहें। मेहगांव से राकेश चौधरी इसी व्यूह के मोहरे हैं।
वैसे देखा जाए तो खुद दिग्विजयसिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी बीजेपी में चले गए थे, लेकिन उन्हें पार्टी ने वापिस लेकर दो चुनाव लड़ाए। कमलनाथ इसे चौधरी पर लागू कर दिग्गीराजा को मैसेज देना चाहते हैं। कमलनाथ ऑफ द रिकॉर्ड सरकार जाने के लिए भी दिग्विजयसिंह को जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि नाराज विधायकों के साथ दिग्विजय ही फ्रंट फुट पर बात कर रहे थे। इस आशय का उनका बयान भी पिछले दिनों सामने आ चुका है।
जाहिर है मप्र कांग्रेस में जहां ज्यादा एकजुटता और आक्रामकता की आवश्यकता है, वहां पार्टी के शीर्ष पर मतभेदों का यह खुला अंबार उसकी वापिसी के सपनों को परवान नहीं चढ़ने देगा।
यह भी समझना होगा कि इस अंचल में कमलनाथ के पास खुद की कोई पूंजी नहीं है, सिंधिया के बाद जो कांग्रेस नजर आती है, उसके तार दिग्गीराजा से ही जुड़े हैं। क्योंकि न तो प्रदेशाध्यक्ष और न सीएम रहते हुए ही कमलनाथ कभी इस इलाके में आये। महल से कूटनीतिक मोर्चा राजा ही लेते रहे हैं, इसलिए बरास्ता राहुल गांधी (जैसा कि चौधरी राकेश सिंह ने कहा) नई खिचड़ी पकाने का प्रयास कमलनाथ करते हैं तो इसकी सफलता की संभावना कम ही होगी।
राकेश के रूप में कमलनाथ का यह दूसरा हमला है दिग्गीराजा पर। इससे पहले अशोक सिंह को प्रदेश महामंत्री से ग्वालियर ग्रामीण का अध्यक्ष बनाया जाना भी सियासी सन्देश देता था। तब जबकि अशोक सिंह ग्वालियर महानगर की दो सीटों से दावेदार थे।
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टीम मध्यमत