आकाश शुक्ला
हम सामाजिक जीवन में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं, कई जाने पहचाने और अनजान लोगों से हमारी मुलाकात सामाजिक जिंदगी में होती है। हमारी जिंदगी में संबोधनो का बहुत महत्व है, हम किसी व्यक्ति को बातचीत के दौरान किस संबोधन से पुकारते हैं वह संबोधन हमारे और अन्य व्यक्तियों के संबंधों की नींव होता है।
यदि अनजान व्यक्तियों से बात करते समय हमारे संबोधन में अपनेपन का एहसास होगा तो अनजान व्यक्ति भी हमें भूल नहीं पाएगा और हमारे और उसके बीच संबंध में संबोधनों से उपजा अपनापन हमारे दीर्घकालीन संबंधों की नींव रखेगा।
इसलिए सामाजिक जीवन में बातचीत करते समय संबोधन का विशेष ध्यान रखें। हर अमीर, गरीब, छोटे बड़े व्यक्ति से बातचीत करते समय संबोधन ऐसे रहना चाहिए कि वो रिश्तो का अहसास कराए। आपके संबोधन अनजान व्यक्ति को भी अपना बना सकते हैं और अपने व्यक्तियों को भी अनजान बना सकते हैं।
हम अपने आसपास अवलोकन करें यदि हमारे पिता के हमउम्र व्यक्तियों से बातचीत करते समय यदि उन्हें चाचा जी कहकर संबोधित करते है या अंकल जी कहकर संबोधित करते हैं या बिना संबोधन के औपचारिक बात करते हैं तो हम पाएंगे कि जिन व्यक्तियों को चाचा जी कहकर संबोधित करते हैं उनमें हमारे प्रति एक अलग अपनत्व का भाव होगा। जिन्हें अंकल जी कहकर संबोधित कर रहे हैं उनमें अपने प्रति थोड़ा कम अपनापन पायेंगे। और जिनसे बिना किसी संबोधन के औपचारिक बातचीत करेंगे उनमें अपनेपन का अभाव पाएंगे।
ऐसे ही हम किसी हम उम्र स्त्री को यदि बहन जी, दीदी कहकर संबोधित करते हैं तो वह उनमें सामाजिक सुरक्षा और अपनेपन का एहसास उत्पन्न करता है एवं अपनी माताजी कि उम्र की महिलाओं को चाची जी, बुआ जी, मौसी जी आदि संबोधनो से पुकारते हैं तो उनमें अपने प्रति एक अलग अपनापन एवम् विश्वास पाते हैं।
ऐसे ही यदि हम और हमारे बच्चे हमारे घर में काम करने वाले कर्मचारियों को रिश्तों का अहसास दिलाने वाले संबोधन के साथ पुकारते हैं तो उनके व्यवहार में हमारे परिवार के प्रति जिम्मेदारी का अलग भाव पाते हैं। इसी तरह यदि हमारे कार्यक्षेत्र में अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अगर वे उम्र में बड़े हैं, तो उनके नाम के साथ सम्मान पूर्ण शब्द जोड़कर उनका संबोधन कर हम उनका दिल जीत सकते हैं एवं उन्हें अपनेपन का एहसास करा सकते हैं। इससे हम उनके कार्य करने की क्षमता और विश्वसनीयता में भी बढ़ोत्तरी पाते हैं।
आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को चाहे वह उम्र में हमसे छोटा हो यह बड़ा हो, संबोधित करते समय यदि उचित सम्मान पूर्ण और अपनेपन का एहसास कराने वाले संबोधनो से संबोधित करेंगे तो इसके बदले सम्मान और अपनापन ही पाएंगे और यह अपनापन उससे हमारे भविष्य के संबंधो की नींव रखेगा। उचित संबोधन से हम संबंधों की पूंजी एकत्र करेंगे।
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टीम मध्यमत