उपचुनाव भांडेर
डॉ. अजय खेमरियाा
अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित दतिया जिले की भांडेर विधानसभा सीट पर बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसकी सँभावित प्रत्याशी रक्षा संतराम सिरोनिया ही नजर आ रही हैं। 2018 में जिस बड़े अंतर से वह बीजेपी की रजनी प्रजापति से जीती थीं, वह अंतर उनके 18 माह के कार्यकाल में आज पूरी तरह से गायब नजर आ रहा है। विधायक के परिजनों और उनके कथित पीए के तमाम किस्से भांडेर की वीथिकाओं में ऊंचे स्वरों में गूंज रहे हैं।
बीजेपी में आने के बाद भी रक्षा सिरोनिया बीजेपी में ही सुरक्षित महसूस करती हों ऐसा नही कहा जा सकता। यहां जमीन पर इस नए सियासी मिलाप के कोई चिन्ह भी फिलहाल दिखाई या सुनाई नही दे रहे हैं। कभी ग्वालियर जिले में रहा यह विधानसभा क्षेत्र सदैव बाहरी लोगों के सियासी पुनर्वास का केंद्र भी रहा है।
एक जमाने में बसपा की पहचान रहे फूलसिंह बरैया, ग्वालियर के पूर्व महापौर पूरन सिंह पलैया, कमलापत आर्य, अखबार में कार्टूनिस्ट रहे संघ के पूर्व प्रचारक घनश्याम पिरोनिया सब ग्वालियर से आकर यहां जीते हैं। 2018 में बीजेपी के घनश्याम पिरोनिया यहां मजबूत स्थिति में थे, लेकिन उनका टिकट काटकर पार्टी ने एक तरह से यह सीट गिफ्ट में कांग्रेस को थमा दी थी। अब बदली परिस्थिति में इसी गिफ्टेड एमएलए को फिर से जिताने की चुनौती से यहां बीजेपी परेशान है।
भांडेर में यादव, दांगी, गुर्जर, किरार, कुर्मी, पटेल, लोधी, साहू, ब्राह्मण, मुस्लिम, वैश्य, ठाकुर, जाटव(अहिरवार, दोहरे, जाटव तीनों) परिहार, सेन, प्रजापति जैसी प्रमुख जातियों के मतदाता हैं। 2018 के चुनाव में लगभग सभी जातियों ने बीजेपी उम्मीदवार को खारिज कर दिया था। भांडेर में यादव जाति के वोटर जाटवों के बाद सर्वाधिक हैं, लेकिन पिछले चुनाव में उन्होंने बीजेपी को वोट नही किया।
यही नहीं किरार, लोधी, पटेल, वैश्य और दांगी समाज ने भी रक्षा के पंजे पर बटन ज्यादा दबाया था। यहाँ सम्पर्कशील नेता के रूप में लोग अभी भी घनश्याम पिरोनिया को याद करते हैं। वह टिकट कटने के बाद भी भांडेर के गांवों में लगातार घूमते रहते हैं, जबकि रक्षा सिरोनिया को लेकर लोगों में नाराजगी के स्वर उनके पीए जीतू दांगी और परिजनों को लेकर बने हुए हैं।
कांग्रेस के लिए रक्षा का बीजेपी में जाना आज के हालात में फायदेमंद नजर आ रहा है, क्योंकि अगले चुनाव में उनकी टिकट पक्की थी और जिस कठिन उम्मीदवारी से बीजेपी इस उपचुनाव में परेशान होगी वह 2023 में कांग्रेस को भी उठानी पड़ती।
ग्राउंड रिपोर्ट कहती है कि रक्षा सिरोनिया का जीतना फिलहाल बहुत ही कठिन है। कांग्रेस यहां से अगर फूलसिंह बरैया, अन्नू भारती या महेंद्र बौद्ध को टिकट देती है तो नतीजा बीजेपी के पक्ष में आने का मतलब है चुनावी चमत्कार।
और यह चमत्कार तभी संभव है जब सिंधिया, नरेंद्र सिंह, (ठाकुर) नरोत्तम (ब्राह्मण), शिवराज (किरार), उमा भारती (लोधी), भूपेंद्र सिंह (दांगी), कृष्णा गौर (यादव) जैसे नेता यहां कैम्प कर अपनी जातीय स्वीकार्यता को प्रमाणित करें। तभी यहां बीजेपी की सम्भावना रक्षा सिरोनिया के साथ आकार ले सकेगी। यादव समाज की नाराजगी को सुलझाए बगैर भी बीजेपी के लिए मुश्किलें कम नहीं होनी हैं।
फूलसिंह बरैया यहां 1998 में एमएलए रह चुके हैं, उनका खुद का नेटवर्क भी यहां जीवित है। वे एक सशक्त उम्मीदवार साबित होंगे। अन्नू भारती 2013 में यहां से कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे। हारने के बावजूद वह लगातार सक्रिय रहे हैं। 2018 में उनकी टिकट काटकर रक्षा को दे दी गई, इसके बावजूद वह इस क्षेत्र में सबसे मजबूत कांग्रेस उम्मीदवार की स्थिति को बनाए हुए हैं।
असल में यहां जाटव बिरादरी तीन उपवर्गों में बंटी है- जाटव, दोहरे और अहिरवार। सर्वाधिक संख्या जाटवों की है और अन्नू तथा रक्षा दोनों जाटव ही हैं। नए केन्डिडेचर के साथ अन्नू भारती जाटवों के सर्वाधिक वोट ले जायेंगे। हालांकि उनकी जाति को लेकर पूर्व गृहमंत्री महेंद्र बौद्ध हाईकोर्ट में मुकदमा लड़कर अन्नू का जाति प्रमाण पत्र निरस्त करा चुके हैं। इस मामले में फिलहाल भारती स्टे पर हैं, इसलिए वह चुनाव तो लड़ ही सकते हैं।
महेंद्र बौद्ध भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। वह इस चुनाव के जरिये अपने राजनीतिक पुनर्वास का मौका छोड़ना नहीं चाहेंगे। भांडेर से दो बार विधायक रह चुके कमलापत आर्य भी तीसरी दफा एमएलए बनने की जुगत में हैं। वे बीजेपी कांग्रेस दोनों दलों से जीत चुके हैं। फिलहाल कांग्रेस से टिकट मांग रहे हैं।
कांग्रेस के सामने केवल गुटबाजी की चुनौती है, शेष मैदानी हवा उसके पक्ष में है। भांडेर में बसपा के लड़ने से फौरी तौर पर बीजेपी को फायदा हो सकता है, लेकिन कांग्रेस के लिए यहां जाटव, यादव, गुर्जर, मुस्लिम औऱ अन्य छोटी जातियों का एकीकरण फिलहाल मुफीद लग रहा है। बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं का भी यहां खासा विरोध है। पूर्व विधायक घनश्याम पिरोनिया की उपयोगिता को भी स्वीकार करना एक तथ्य है। बीजेपी को यहां अपनी पूरी ताकत मिशन सरकार बचाओ मोड पर झोंकनी होगी।
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टीम मध्यमत