चीनी माल: घटिया किट्स मंगवाए ही क्यों?

अजय बोकिल

जैसी कि आशंका थी, वही हुआ। कोरोना वायरस टेस्ट के लिए चीन से मंगाए गए एंटीबॉडी रैपिड टेस्ट किट्स के घटिया होने की गंभीर शिकायतों के बाद आईसीएमआर ने दो दिन तक देश में इनके इस्तेमाल कर रोक लगा दी है। सबसे पहले ऐसी शिकायत राजस्थान से आई और‍ फिर कुछ अन्य राज्यों ने भी ऐसी ही शिकायतें कीं कि इन किट्स के इस्तेमाल से सही नतीजे नहीं आ रहे हैं। इसके पहले चीन से हमे दान में मिले 1.70 लाख पीपीई (व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) भी घटिया निकले थे। हमारी ही नहीं, लगभग सारी दुनिया से ऐसी ही शिकायतें मिल रही हैं।

ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि चीन के रैपिड टेस्ट किट्स पर भरोसा किस आधार पर किया गया और वहां से ये मंगवाए ही क्यों गए? ऐसा करने के पीछे कौन सा दबाव था? और अगर ये किट्स मंगवा ही ली गईं थीं तो अस्पतालों में भेजने से पहले उनकी जांच क्यों नहीं की गई? और यह भी कि स्वास्थ्य उपकरणों जैसे संवदेनशील मामलों में ‘चीनी माल के बहिष्कार’ के आव्हान कहां गुम हो जाते हैं? वैसे अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि चीन से आयातित रैपिड टेस्ट किट बिना गुणवत्ता की जांच किए प्रयोग में लाना जनता के साथ धोखा है। उन्होंने कहा कि उपयोग से पहले आईसीएमआर को इसके बारे में चेतावनी देनी चाहिए थी।

बहरहाल मामला गंभीर है और देश की स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़ा है। क्योंकि जो शिकायतें आई हैं, उसके मुताबिक ये चीनी‍ किट्स सही परिणाम नहीं दे रहे हैं। जांच के नतीजों में 6 से 71 फीसदी तक का उतार-चढ़ाव दिख रहा है। ऐसे में कोरोना वायरस के लक्षणों को लेकर निश्चित नतीजे पर पहुंचना संभव नहीं है। खुद आईसीएमआर (इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) ने माना कि नतीजों में इतना उतार चढ़ाव स्वीकार्य नहीं है। आईसीएमआर के हेड साइंटिस्ट रमण गंगाखेडकर ने कहा कि हमें एक राज्य से शिकायत मिली कि रैपिड किट से मामले कम डिटेक्ट हो रहे हैं। इसलिए हमने तीन स्टेट से पूछा। पता चला कि पॉजिटिव सैंपलों की एक्युरेसी में अंतर आ रहा है।

इतना अंतर होने पर हमें आगे जांच की जरूरत है। हम इसे अनदेखा नहीं कर सकते। आईसीएमआर के मुताबिक हो सकता है कि हमे किट बदलने की जरूरत पड़े। बता दें कि रैपिड टेस्ट किट शरीर में वायरस के कारण बनने वाली एंटीबॉडीज की जांच करता है। यह खून के नमूने लेकर उसमें मौजूद विभिन्न घटकों जैसे लाल रक्त कणिकाओं (आरबीसी) तथा वायरस एंटीबॉडीज की जांच करता है। इससे व्यक्ति के कोरोना पॉजिटिव होने का लक्षण पता चलता है। हालांकि यह कोरोना पॉजिटिव जांच का बहुत सटीक तरीका नहीं है।

आईसीएमआर रैपिड टेस्ट किट का इस्तेमाल सिर्फ मास स्क्रीनिंग के लिए कर रहा है। इन किट्स के बारे में पहली शिकायत राजस्थान ने की थी। वहां के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा था कि इन किट्स से मात्र 5.5 फीसदी सही नतीजे आ रहे हैं, जबकि इनसे 90 प्रतिशत सही नतीजों की उम्मीद थी। ऐसी ‍ही शिकायत बंगाल ने भी की। उल्लेखनीय है कि भारत ने देश में कोरोना टेस्ट तेजी से करने के लिए पिछले सप्ताह ही चीन से 5 लाख टेस्ट किट्स मंगवाई थीं और इन्हे कोरोना से ज्यादा प्रभावित राज्यों को भेजा गया था।

विडंबना यह है कि चीनी चिकित्सा उपकरण घटिया होने की शिकायतें दुनिया भर से आ रही हैं, मगर फिर भी चीन ही आज विश्व में इन वस्तुओं का सबसे बड़ा सप्लायर बना हुआ है। गंभीर रूप से कोरोना ग्रस्त स्पेन ने ऐसे घटिया 6 लाख किट्स चीनी निर्माता कंपनी को लौटा दिए। ब्रिटेन ने भी लो क्वालिटी टेस्टिंग किट्स सप्लाई के एवज में दो चीनी कंपनियों से 2 करोड़ डॉलर का रिफंड मांगा है। बताया जाता है कि इनमें से एक चीनी कंपनी ग्वांगजू वोंदफो, वही है, जिसे भारत ने भी किट्स सप्लाई का ऑर्डर दिया था। इसी तरह फिलीपीन्स ने भी चीनी किट्स को निरस्त कर दिया है। यही परेशानी चेक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, इटली और जर्मनी की भी है। कहीं भी रैपिड टेस्ट किट्स अपेक्षित एक्युरेसी के साथ रिजल्ट नहीं दे रहे हैं।

इस बारे में चीन का कहना है कि रैपिड टेस्ट किट्स उनकी ‘गुणवत्ता के सत्यापन’ के बाद ही भारत भेजे गए हैं। हम इस पर लगातार नजर रखे हुए हैं। यह भी कहा जा रहा है ‍कि किट्स तो बढि़या हैं, लेकिन उनके इस्तेमाल का तरीका सही नहीं है।

तो क्या हमारे पास चीन के अलावा कोई विकल्प नहीं है? हम इन्हें दूसरे देशों से नहीं मंगवा सकते? ‘मेक इन इंडिया’ का क्या हुआ? जब हमारी कंपनियां भी ये टेस्ट किट्स बना सकती हैं तो उनसे क्यों नहीं बनवाए जा रहे? हमारे यहां कई लोगों ने सस्ते में टेस्ट किट्स तैयार किए हैं। शुरुआती कमी के बाद अब हमारे यहां बड़ी तादाद में मास्क बनाए जा रहे हैं, जो चीनी माल की तुलना में कहीं ज्यादा टिकाऊ और विश्वसनीय हैं। केन्द्र सरकार को इस बारे में जल्द निर्णय लेना चाहिए।

फिलहाल तो इन घटिया चीनी किट्स के कारण देश में कोरोना के अधिकाधिक टेस्ट करने के अभियान को झटका लगा है, जिसे पटरी पर लाने में वक्त लगेगा। सरकार चाहती थी कि वर्तमान में प्रतिदिन 25 हजार टेस्ट को बढ़ाकर 1 लाख तक लाया जाए।

सवाल यह भी है कि ‘दुनिया की फैक्ट्री’ कहे जाने वाले चीन में निर्मित ज्यादातर चीनी माल सस्ता होने के साथ गुणवत्ता में भी निम्न क्यों हैं? ऐसी शिकायतों के बाद भी चीन की नजर नीची क्यों नहीं होती? इसके कई कारण बताए जाते हैं। पहला तो यह कि चीनी कंपनियां कोई भी माल थोक के भाव बनाती हैं। इसलिए सस्ता पड़ता है। दूसरे, चीन में कल्याणकारी श्रम कानून हैं, लेकिन ये उन कंपनियों पर लागू नहीं होते, जो विदेशी सहयोग से उत्पादन या विनिमय करती हैं। वहां ज्यादातर कंपनियां ऐसी ही हैं। ऐसे में कोई कितने भी कम रेट में किसी भी गुणवत्ता का माल बना कर दुनिया के बाजार में खपाता रहता है।

यह माल तुलनात्मक रूप से बेहद सस्ता होता है, इसलिए खरीदार मिल ही जाते हैं। चूंकि चीन के पास पैसा आता रहता है, इसलिए वहां की सरकार बाकी बातों को नजरअंदाज करती है। तीसरे, चीन कम्युनिस्ट देश है, इसलिए वहां श्रमिकों को यूनियन बनाने की आजादी नहीं है। एक ही सरकारी ट्रेड यूनियन है, जो अपने हिसाब से काम करती है। वैसे भी वहां श्रम कानूनों में सुधार के बाद श्रमिकों का खूब शोषण होता है। इस कारण से भी वहां माल की लागत कम पड़ती है।

लेकिन मेडिकल उपकरणों के मामले में तो कोई समझौता नहीं किया जा सकता। यह लोगों की जान का सवाल है, केवल उपभोग का नहीं। वास्तव में भारत की निर्भरता चीन पर अभी भी बहुत ज्यादा है। हम चीन को ज्यादातर कच्चा माल निर्यात करते हैं, बदले में उससे कई गुना ज्यादा तैयार माल आयात करते हैं। यहां तक कि दूसरे देशों को कोरोना से लड़ने हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन गोली देने का फैसला भी मोदी सरकार ने तब किया जब चीन से इस दवा के कच्चे माल का आयात शुरू हो गया। कहने को देश में जब तब चीनी माल के बहिष्कार के आंदोलन चलते रहते हैं, लेकिन हकीकत में वो भी चीनी माल की तरह ही फुस्स हो जाते हैं।

अधिकृत आंकड़ों को देखे तो वर्ष 2019 में चीन ने हमे 74.72 अरब डॉलर का माल भेजा तो हम उसे मात्र 17.96 अरब डॉलर का माल ही भेज सके। यानी चीन ने हमसे 74.68 अरब डॉलर (लगभग 570 खरब रुपये) कमाए। दरअसल चीन कई मोर्चों पर दूसरे देशों में दखल बढ़ाता है। उसे अपनी प्रतिष्ठा से ज्यादा दंबगई का ध्यान रहता है। सच तो यह है कि चीनी माल खरीदना तो ठीक, दान में लेना भी सही नहीं है। चीन से दोस्ती रखें, लेकिन उस पर अंधा भरोसा करना भी आत्मघाती ही है। आज उसने घटिया किट्स दिए हैं, कल न जाने क्या करेगा?

(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)

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