राकेश अचल
गोस्वामी तुलसीदास की छिद्रान्वेषण की क्षमता पर मैं मुग्ध हूँ। उन्होंने बहुत पहले लिख दिया था- ‘नारी न मोहे, नारी के रूपा, पन्नगारि यह रीति अनूपा।‘ मुझे लगता है कि सचमुच नारियां जाने-अनजाने नारियों की शत्रु बन जाती हैं, फिर चाहे वे सामान्य नारियां हों या विदुषियां। मध्यप्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा की नारियां लगातार महिलाओं की छवि को लेकर समाज में भ्रम पैदा कर रही हैं।
मध्यप्रदेश में एक जिला है राजगढ़, इस जिले की महिला कलेक्टर निधि निवेदिता के बारे में मैं बहुत पहले लिख चुका हूँ। वे एक भाजपा नेता और एक पुलिस सहायक सब इंस्पेक्टर को थपड़ियाने को लेकर चर्चा में आयी थीं। दोनों ही मामलों में राज्य की सरकार ने उन्हें बचा लिया, हालांकि प्रदेश के पुलिस महानिदेशक उनके खिलाफ कार्रवाई चाहते थे। पर निधि की आईएएस लॉबी भारी पड़ी और वे मारपीट के आरोपों से, सारे गवाह-सबूत होते हुए भी बच गयीं, लेकिन उनकी तरह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि भारद्वाज किस्मत वाली नहीं थीं, सो उन्हें अपने पद से हटना पड़ा।
निधि निवेदिता की तरह ही छवि भारद्धाज को भी सुर्खियों में रहने की आदत है। वे आरम्भिक दिनों में अल्पकाल के लिए ग्वालियर में जिला पंचायत में थीं तब मैंने उन्हें काम करते देखा था। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि ने हाल ही में नसबंदी कार्य में लगे अमले को लक्ष्यपूर्ति न होने पर वेतन न देने और नौकरी से निकाले जाने का आदेश जारी किया था। छवि के इस आदेश से प्रदेश में हंगामा होता इससे पहले ही राज्य सरकार ने अवकाश के दिन न सिर्फ छवि के आदेश को बल्कि छवि को ही बदल दिया। ये समझदारीपूर्ण कार्रवाई है।
छवि की मंशा क्या थी ये वे ही जानें क्योंकि उन्होंने इस बारे में अब तक अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन उनके आदेश में अनेक लोगों को आपातकाल की बू आई। छवि ने जैसा आदेश जारी किया था, वैसे आदेश नसबंदी को लेकर केवल आपातकाल के दौरान ही निकाले गए थे। उस दौर में लक्ष्यपूर्ति के लिए सरकारी अमले ने नौकरी बचाने के लिए किशोरों और बुजुर्गों तक की नसबंदी करा दी थी। छवि के इस आदेश से और कुछ हुआ हो या न हुआ हो लेकिन महिला प्रशासकों की छवि को अवश्य धक्का लगा है। लोग सोचते हैं कि महिला अधिकारी इस तरह के बेतुके आदेशों के बारे में सोच भी कैसे लेती हैं।
पिछले कुछ दशकों से महिला प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों में अचानक ‘सिंघम’ बनने की होड़ लगी दिखाई दे रही है। हर राज्य में ऐसी घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। आखिर इसके पीछे कारण क्या है? क्या इस तरह से महिलाओं के स-शक्तिकरण को प्रमाणित किया जा सकता है? शायद नहीं। महिलाओं को पुरुष अधिकारियों के मुकाबले अधिक संवेदनशील होना चाहिए, ऐसी धारणा है, लेकिन निधि और छवि जैसी महिला अधिकारी इस धारणा को भंजित करती हैं।
इस संदर्भ में अनेक महिला अधिकारियों के नाम लिए जा सकते हैं। यदि आप फेहरिस्त बनायें तो ये बहुत लम्बी हो सकती है लेकिन मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। मैं सिर्फ इस बात को रेखांकित करना चाहता हूँ कि कुछ महिला अधिकारियों की सनक पूरी बिरादरी की छवि पर भारी पड़ने लागी है, इसे रोका जाना चाहिए।
देश में महिलाएं समर्थ और दृढ दिखाई दें ये बहुत जरूरी है। खासतौर पर राजनीति और नौकरशाही में महिलाओं की दृढ़ता बहुत आवश्यक है किन्तु ये मजबूती सनक से सर्वथा रिक्त होना चाहिए। कोई माने या न माने लेकिन हकीकत ये है कि नौकरशाही और राजनीति में महिलाएं अपनी क्षमता को सीमित संख्या में ही प्रमाणित कर पाती हैं, पुरुष प्रधान समाज अक्सर उन्हें पीछे धकेल देता है लेकिन ऐसा होता निधियों और छवियों के कारण ही है। राजनीति में इंदिरा गांधी और नौकरशाही में किरण बेदी या निर्मला बुच जैसी महिलायें अपवाद हैं। सुषमा स्वराज देश की दूसरी महिला प्रधानमंत्री नहीं बन पाईं तो नहीं ही बन पाईं जबकि उनमें अपार संभावनाएं थीं।
महिलाएं केवल राजनीति या नौकरशाही में ही नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में आगे आएं, नेतृत्व दें लेकिन इसके लिए उन्हें सनक से हमेशा दूर रहना होगा। उन्हें मिलने वाले अवसरों का बड़ी सतर्कता से इस्तेमाल करना होगा अन्यथा वे सुर्ख़ियों में तो आएंगीं लेकिन भुला भी दी जाएँगी। शीर्ष पर आने के लिए किसी को भी शीर्षासन की आवश्यकता नहीं होती। दृढ़ता सर्वथा अलग गुण है, इसका विवेक से इस्तेमाल कर कोई भी शीर्ष पर पहुँच सकता है। बहुत कम शीर्ष पद ऐसे हैं जहां महिलाएं स्वाभाविक रूप से पहुँच पाती हैं। प्रदेशों में महिलाओं को मुख्य सचिव या पुलिस महानिदेशक जैसे पद कम ही मिलते हैं। केंद्र में भी नौकरशाही या न्यायपालिका में शीर्ष पर पहुँचने वाली महिलाएं अपवाद ही हैं।
छवि के बारे में आपको बता दें कि वे सिर्फ नौकरशाह ही नहीं बल्कि एक संवेदनशील लेखिका भी हैं। उन्होंने प्रेम कथा पर आधारित उपन्यास ‘लाइक ए बर्ड ऑन दि वायर’ भी लिखा। शिवराज सरकार में 2008 बैच की आईएएस अधिकारी छवि भारद्वाज का सिक्का खूब चला। उन्हें लगातार ऊंचे पदों पर पोस्टिंग दी गयी। सरकार की मेहरबानी उन पर इस कदर हुई कि पोस्टिंग में जूनियर-सीनियर का भी ध्यान नहीं रखा गया।
छवि भारद्वाज को जब जबलपुर जिले का कलेक्टर बनाया गया तब वहां पहले से ही उन्ही की बैचमेट अफसर अपर कलेक्टर के पद पर पदस्थ थीं। जिले की कमान संभालने से पहले आईएएस छवि भारद्वाज, मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम में प्रबंध संचालक और भोपाल नगर निगम के कमिश्नर पद पर भी रह चुकी हैं। छवि भ्रष्टाचार के मामले में ‘जीरो टालरेंस’ के लिए जानी जाती हैं, उन्हें नगर निगम भोपाल से इसी वजह से हटाया भी गया था।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)