आमतौर पर किसी भी चुनाव में नतीजे आ जाने के बाद माहौल धीरे- धीरे ठंडा होने लगता है। सब लोग अपने-अपने काम से लग जाते हैं, वे भी जो दिखावे के लिए ही सही चुनाव के काम में लगे दिखाई देते रहते हैं। लेकिन दिल्ली अभी गरम है। जो करना था वो कर कराके आम आदमी पार्टी तो अपने काम से लग गई है, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के काम लगा के, उन्हें कुछ दिनों के लिए तो कम से कम काम पर लगा ही दिया है।
11 फरवरी को जिस दिन दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए उस दिन पूरे समय आम आदमी पार्टी और भाजपा पर ही बातें होती रहीं। कांग्रेस जिस तरह चुनाव में नेपथ्य में थी उसी तरह चुनाव हो जाने के बाद होने वाली चर्चाओं में भी पीछे ही रही। भाजपा ने जरूर अपनी शर्मनाक हार की झेंप कम करने के लिए कांग्रेस की लुटिया डूब जाने को ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया, लेकिन उस पर खुद इतने तीखे और इतने ज्यादा हमले हो रहे थे कि उसका यह बचाव भी कोई खास काम नहीं आया।
पर जैसे-जैसे हारे हुए राजनीतिक दल उस धक्के से उबर रहे हैं उनमें अपने कपड़े झाड़ने पोंछने और उन पर लगे दागों को देखने की चेतना भी आती जा रही है। बुधवार को कांग्रेस के भीतर से ही, दिल्ली की हार को लेकर एक ऐसी आवाज उठी जिसने पूरे मीडिया का ध्यान आकर्षित किया। यह आवाज शर्मिष्ठा मुखर्जी की थी। शर्मिष्ठा मुखर्जी का एक परिचय तो यह है कि वे कांग्रेस के दिग्गज नेता और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की बेटी हैं। लेकिन उनका दूसरा परिचय यह है कि वे पार्टी की प्रवक्ता होने के साथ साथ दिल्ली प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी हैं।
दिल्ली चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद अरविंद केजरीवाल को चारों ओर से बधाइयां मिल रही हैं। उन्हें बधाई देने वालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी, राहुल गांधी भी हैं और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीररंजन चौधरी भी, सपा के अखिलेश यादव भी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी। लेकिन इन सारी बधाइयों में एक बधाई ने शर्मिष्ठा को उखड़ने पर मजबूर कर दिया और यह बधाई थी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री पी. चिदंबरम की।
चिदंबरम ने केजरीवाल की जीत पर ट्वीट किया- ‘’आप की जीत हुई, बेवकूफ बनाने तथा फेंकने वालों की हार। दिल्ली के लोग, जो भारत के सभी हिस्सों से हैं, उन्होंने भाजपा के ध्रुवीकरण, विभाजनकारी और खतरनाक एजेंडे को हराया है। मैं दिल्ली के लोगों को सलाम करता हूं जिन्होंने उन राज्यों के लिए मिसाल पेश की है जहां 2021 और 2022 में चुनाव होंगे।‘’
चिदंबरम के इस ट्वीट पर बहुत ही तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शर्मिष्ठा मुखर्जी ने जवाबी ट्वीट किया- ‘’आदरणीय, मैं जानना चाहती हूं कि क्या हमने भाजपा को हराने का काम प्रादेशिक दलों को आउटसोर्स कर दिया है? यदि ऐसा नहीं है तो हम आम आदमी पार्टी की जीत पर इतना क्यों नाच रहे हैं, बजाय इसके कि अपनी दुर्दशा पर चिंता करें? और यदि ऐसा ही है तो बेहतर होगा हम (तमाम प्रदेश कांग्रेस कमेटियां) अपनी दुकान बंद कर दें।‘’
दिल्ली में पार्टी के प्रदर्शन से कांग्रेस की अगली पीढ़ी के नेता किस कदर क्षुब्ध हैं इसकी बानगी शर्मिष्ठा की ओर से 11 फरवरी को चुनाव नतीजे आने के बाद किए गए दो ट्वीट से साफ झलकती है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा- ‘’दिल्ली में हम फिर खेत रहे… आत्मनिरीक्षण बहुत हुआ, अब एक्शन लेने का समय है। शीर्ष स्तर पर निर्णय लेने में असहनीय देरी, राज्य स्तर पर पार्टी में एकता और सही रणनीति का अभाव, हताश कार्यकर्ता, जमीनी स्तर पर जुड़ाव का न होना (हार के) ये प्रमुख कारण हैं। पार्टी तंत्र का हिस्सा होने के कारण मैं अपनी भी जिम्मेदारी लेती हूं।‘’
इसके बाद उन्होंने ऐसा ही एक और ट्वीट कर कहा- ‘’भाजपा विभाजनकारी राजनीति कर रही है, केजरीवाल ‘स्मार्ट’ राजनीति कर रहे हैं और हम क्या कर रहे हैं? क्या हम ईमानदारी से कह सकते हैं कि हमने अपने घर को दुरुस्त रखने का काम किया है? हम कांग्रेस पर काबिज होने में व्यस्त हैं जबकि दूसरे दल देश पर कब्जा कर रहे हैं। यदि हमें जिंदा रहना है तो यही समय है जब हम अपने ऊंचे महलों से बाहर निकलें।‘’
पता नहीं कांग्रेस शर्मिष्ठा जैसे कार्यकर्ताओं की बात को कितना सुनेगी और उनकी राय को कितना महत्व देगी लेकिन यदि उसे अपनी बची खुची जमीन बचानी है तो उसे इस दिशा में सोचना ही पड़ेगा। यदि वह यह सोचकर खुश होती रही कि भाजपा हार रही है तो इस खुशी से उसके शीर्ष नेताओं के बदन में थोड़ी देर के लिए रोमांच की फुरफुरी भले ही दौड़ जाए, पर उसके बाद पार्टी की काया ठंडी ही हो जाने वाली है।
कमाल की बात है कि आज कांग्रेस आम आदमी पार्टी की उस जीत पर खुश है जो केजरीवाल ने अपनी ‘काम की राजनीति’ की बदौलत हासिल की है। कांग्रेस को इस बात का शायद मलाल भी नहीं है कि वह क्यों शीला दीक्षित के कामों को दिल्ली विधानसभा चुनावों में नहीं भुना सकी। जबकि असलियत यह है कि दिल्ली आज जिस रूप में दिखाई दे रही है उसके इस आधुनिक रूप की शिल्पी शीला दीक्षित रही हैं। उन्होंने केजरीवाल से कई गुना अधिक काम किया, भविष्य की जरूरतों के हिसाब से दिल्ली का विकास किया…
इसके विपरीत कांग्रेस की हालत तो देखिये कि आज दिल्ली के नतीजों के बाद, शीला दीक्षित के दिवंगत हो जाने के बाद, दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पी.सी. चाको कह रहे हैं कि दिल्ली में कांग्रेस की दुर्दशा तो शीला दीक्षित के समय से ही शुरू हो गई थी। चाको के बयान पर पार्टी नेता मिलिंद देवड़ा ने ट्वीट किया- ‘’शीला दीक्षित जी बेहतरीन नेता और प्रशासक थीं। मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में दिल्ली का कायांतरण हुआ और कांग्रेस मजबूत हुई। यह दुर्भाग्यजनक है कि निधन के बाद उन्हें दोषी ठहराया जाए। उन्होंने कांग्रेस और दिल्लीवासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।‘’
जो लोग कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य टटोलना चाहते हैं, उसमें संभावनाएं देखना चाहते हैं, उन्हें दिल्ली चुनाव के बाद पी. चिदंबरम, शर्मिष्ठा मुखर्जी, पीसी चाको और मिलिंद देवड़ा के ट्वीट में छिपे अंतर्विरोधों को पहले अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए। जरूरत तो कांग्रेस को भी है इन्हें पढ़ने की, अगर पढ़ना आता हो तो…