विरोध की आग में मासूम बच्‍चों को तो मत झोंकिये

नागरिकता संशोधन कानून, नैशनल पॉपुलेशन रजिस्‍टर और नैशनल रजिस्‍टर ऑफ सिटिजंस आदि को लेकर देश में इन दिनों जगह जगह कई तरह के ‘नाटक’ चल रहे हैं। इनमें धरना, प्रदर्शन से लेकर हिंसा और गोलीबारी की घटनाएं तक शामिल हैं। एक तबका जहां इन कानूनों के विरोध में है तो दूसरा समर्थन में। ये दोनों तबके एक दूसरे के आमने सामने हैं। लेकिन इस मुद्दे पर जैसा नाटक कर्नाटक में चल रहा है वह बिरला ही है।

कर्नाटक प्रकरण पर बात करने से पहले, बात एक दिलचस्‍प संयोग की। यह संयोग (प्रयोग नहीं) सीएए और एनआरसी आदि के विरोध के ‘शाहीन’ शब्‍द से रिश्‍ते से जुड़ा है। दिल्‍ली में जहां ‘शाहीन बाग’ विरोध प्रदर्शन का प्रतीक बना हुआ है, वहीं कर्नाटक में जो मुद्दा खड़ा हुआ है उसमें भी ‘शाहीन’ शब्‍द मौजूद है। दिल्‍ली में यदि शाहीन बाग नाम की बस्‍ती इसको लेकर चर्चा में है तो कर्नाटक में शाहीन स्‍कूल। शाहीन मूलत: फारसी का शब्‍द है जिसका मुख्‍यत: अर्थ है ‘बाज’ (पक्षी)।

शाहीन से जुड़ी एक और दिलचस्‍प जानकारी यह है कि हमारे भोपाल में भी एक ‘शाहीन’ शिल्‍प टंगा हुआ है। यह शिल्‍प लोहे लंगड़ और ऐसे ही कबाड़ से प्रसिद्ध चित्रकार जे. स्‍वामीनाथन और रॉबिन डेविड ने 1986 में बनाया था। भोपाल विकास प्राधिकरण ने यह कृति ‘सारे जहां से अच्‍छा, हिन्‍दोस्‍तां हमारा’ के रचयिता प्रसिद्ध शायर अल्‍लामा इकबाल की याद में बनवाई थी। एक ऊंचे खंभे पर टंगी यह शिल्‍पकृति (मूल नाम मीनार-ए-शाहीन) जिस जगह स्‍थापित है, वह पहले खिरनी वाला मैदान कहलाती थी, बाद में उसे ‘इकबाल मैदान’ नाम दिया गया। यह भी संयोग ही है कि इसी शाहीन के नीचे, इकबाल मैदान पर भोपाल में भी पिछले कई दिनों से सीएए के विरोध में गतिविधियां चल रही हैं।

अब बात कर्नाटक की। दरअसल पिछले महीने कर्नाटक के बीदर स्थित शाहीन स्कूल में बच्‍चों ने सीएए विरोधी नाटक का मंचन किया। यह बात जब स्‍कूल से बाहर निकल कर सरकार के कानों तक पहुंची तो राजद्रोह का मामला दर्ज कर लिया गया। और उसके बाद शुरू हो गया छोटे बच्‍चों से पुलिसिया पूछताछ का सिलसिला।

पुलिस ने इस मामले में शाहीन स्‍कूल के दो लोगों, प्राथमिक अनुभाग की प्रभारी और एक छात्र की मां को गिरफ्तार किया है। इस सिलसिले में स्‍कूल के कर्मचारियों के अलावा बच्‍चों के अभिभावकों के साथ साथ खुद बच्‍चों से भी पुलिस पूछताछ कर रही है। स्‍थानीय अखबारों के मुताबिक सोमवार की सुबह भी सादे कपड़ों में चार पुलिस वाले और बाल कल्याण आयोग के दो सदस्य स्कूल पहुंचे और पूछताछ की।

दोपहर को डीआईजी भी वहां पहुंच गए और उसके बाद करीब दो घंटे तक नाटक में शामिल सभी सात छात्रों से पुलिस ने सवाल किए। उनसे पूछा गया कि नाटक किसने लिखा, किसने तैयारी कराई और उन्हें सीएए विरोधी लाइनें किसने रटाईं?खबरों में शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) तौसीफ मडीकेरी के हवाले से कहा गया- ‘‘मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि पुलिस 9 से 12 साल के बच्चों से बार बार पूछताछ कर उन्‍हें मानसिक यातना क्यों दे रही है? इस तरह का मानसिक उत्पीड़न उन्‍हें लंबे समय प्रभावित करेगा।‘’

‘इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार ने स्‍कूल के एक अधिकारी के हवाले से बताया कि ‘छात्र डरे हुए हैं। बच्चों से पूछताछ भी अकेले में की गई, वहां किसी बड़े व्‍यक्ति को मौजूद नहीं रहने दिया गया।‘’ स्‍कूल का दावा है कि वहां समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्र पढ़ते हैं। पुलिस ने कक्षा 6 की एक छात्रा की मां को इसलिए गिरफ्तार किया, क्योंकि बताया गया कि कथित विवादास्‍पद नाटक उन्‍होंने ही लिखा था। वे सिंगल मदर हैं और गिरफ्तारी के बाद उनकी बेटी की देखभाल उनकी मकान मालकिन कर रही हैं।

मीडिया में जो खबरें आई हैं वे बताती हैं कि शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के शिक्षकों ने अपने छात्रों और अभिभावकों में सीएए कानून को लेकर गलतफहमी दूर करने का फैसला किया था। इसी सिलसिले में एक नाटक का मंचन किया गया। इसमें एक किरदार कहता है कि मुझसे यदि कोई दस्‍तावेज मांगेगा तो मैं उसे चप्‍पलों से पीटूंगा। बस इसी बात पर एक सामाजिक कार्यकर्ता ने शाहीन स्कूल और उसके प्रबंधन के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया। आरोप लगाया गया कि नाटक में कानून और प्रधानमंत्री का अपमान कर राजद्रोह किया गया है।

मेरे हिसाब से इस मामले के दो पहलू हैं और दोनों पर ही समान रूप से विचार होना चाहिए। पहली बात तो यह कि किसी स्‍कूल में छोटे बच्‍चों के द्वारा खेले गए नाटक को राजद्रोह जैसा गंभीर अपराध मान लेना सरासर ज्‍यादती है। हो सकता है बच्‍चों ने उन्‍हें सिखाए गए कुछ संवाद बोले हों लेकिन सिर्फ इसलिए उन्‍हें या संस्‍थान को अपराधी की नजर से देखना और बच्‍चों से पुलिसिया पूछताछ करना किसी भी स्थिति में जायज नहीं है।

दूसरी बात हाल के घटनाक्रमों में बच्‍चों को इस्‍तेमाल किए जाने की है। मेरा मानना है कि कर्नाटक में पुलिस ने जो किया उससे भी ज्‍यादा गंभीर और आपराधिक कृत्‍य किसी भी धरने प्रदर्शन में बच्‍चों को हथियार के रूप में इस्‍तेमाल करना है। बच्‍चों को ऐसी गतिविधियों और घटनाओं से हरसंभव दूर रखा जाना चाहिए। लेकिन हम देख रहे हैं कि देश के विभिन्‍न भागों में बच्‍चों के चेहरे पर सीएए विरोध के नारे पोत कर, उनके गले में कानून के विरोध की तख्तियां लटकाकर उनका जुलूस निकाला जा रहा है। उनसे कानून के विरोध में मीडिया कैमरों के सामने बाइट दिलवाई जा रही है।

कानून का समर्थन हो या विरोध इसमें बच्‍चों को इस तरह हथियार बनाना सरासर गलत और बच्‍चों के खिलाफ किया जाने वाला अपराध है। ऐसे सारे आयोजनों से बच्‍चों को दूर रखा जाना चाहिए जिससे उनके बालमन पर गलत असर पड़ता हो। जिस बात को वे जानने समझने की स्थिति में नहीं है, वह बात उनके गले में लटकाई जा रही है, उनकी जुबान से बुलवाई जा रही है। हाल ही में शाहीन बाग में धरना दे रही एक मां के चार माह के बच्‍चे की ठंड से मौत की खबर आई है। इस मौत के लिए कौन जिम्‍मेदार है? आपका समर्थन और विरोध आप जानें लेकिन बच्‍चे इस आग में क्‍यों झोंके जा रहे हैं?

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