ऐसा लगता है कि संसद में बजट को लेकर होने वाली चर्चा का तापमान बहुत ज्यादा रहने वाला है। संसद में बजट पेश किए जाने के बाद जैसे जैसे समय बीत रहा है वैसे वैसे उसकी कई बारीकियां और खामियां सामने आ रही हैं। कई तरह के सवाल उठने लगे हैं और इनमें से कुछ सवालों पर सरकार की सफाई का सिलसिला भी शुरू हो गया है। जाहिर है सरकार को भी लग रहा है कि बहुत सी बातों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी है।
जैसे आप एनआरआई से लिए जाने वाले टैक्स का मामला ही लें। जिस दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश किया उसी दिन मीडिया में एक बात रिपोर्ट हुई कि ऐसे प्रवासी भारतीयों को जो विदेशों में किसी भी कर का भुगतान नहीं करते उन्हें अब भारत में कर देना होगा। इस कर का आधार इस बात को बनाया गया कि फिलहाल, अगर कोई भारतीय या भारतीय मूल का व्यक्ति, प्रवासी भारतीय के दर्जे को बरकरार रखते हुए भारत में रहता है तो उसकी वैश्विक आय पर भारत में कोई कर देनदारी नहीं बनती है।
खबरें यह आईं कि केंद्रीय बजट में अब इस बात का प्रस्ताव किया गया है कि ऐसा हर भारतीय नागरिक जो अपने निवास या प्रवास के चलते किसी अन्य देश में कर नहीं देता या कर देने का पात्र नहीं है तो उसे प्रवासी भारतीय माना जाएगा और इसके चलते उसकी वैश्विक आय भारत में कर योग्य होगी। इस बार के बजट में संबंधित निवास प्रावधान को और सख्त बनाते हुए इसमें भारतीय मूल के लोगों को गैर प्रवासी भारतीयों की श्रेणी में रखते हुए भारत में ठहरने की अवधि को भी मौजूदा 182 दिन से कम कर 120 दिन करने का प्रस्ताव किया गया है।
मीडिया रिपोर्ट में राजस्व सचिव अजय भूषण पांडे के हवाले से कहा गया कि- ‘’ऐसे कई मामले हमारे ध्यान में आए हैं जिनमें कुछ लोग किसी देश के निवासी नहीं है। ये लोग अलग-अलग देशों में थोड़े थोड़े दिनों के लिए ठहरते हैं। तो अब ऐसा कोई भी भारतीय नागरिक, यदि वह किसी अन्य देश का नागरिक नहीं है, उसे भारतीय नागरिक के तौर पर ही लिया जाएगा और दुनिया भर में होने वाली उसकी आय भारत में कर के दायरे में आएगी।‘’
इस घोषणा से हड़कंप मचना ही था और वैसा हुआ भी। खासतौर से उन लोगों में जो अन्य देशों विशेषकर खाड़ी के देशों में जाकर काम करते हैं। उन्हें लगा कि सरकार उनकी वहां होने वाली कमाई पर भी आयकर वसूलना चाहती है। खुद मेरे पास केरल के एक मित्र का फोन आया जिन्होंने कहा कि बजट के इस बिंदु को केरलवासियों के खिलाफ माना जा रहा है। चूंकि केरल में भाजपा को पैर जमाने का मौका नहीं मिला है और वहां वामपंथी सरकार है इसलिए केंद्र सरकार वहां के लोगों से बदला लेना चाहती है। मित्र ने कहा कि यह भ्रम इसलिए फैल रहा है क्योंकि खाड़ी के देशों में जाकर काम करने वालों में केरलवासी अच्छी खासी संख्या में हैं।
शुरुआत में तो मित्र की बात में ऐसी कोई गंभीरता मुझे नहीं दिखी और मैंने माना कि यह बजट की अर्थशास्त्रीय आलोचना नहीं बल्कि राजनीतिक आलोचना है और ऐसी आलोचनाएं तो हर बजट के बाद होती ही रहती हैं। राजनीतिक दल अपने दल की रीति-नीति के हिसाब से बजट का आकलन, मूल्यांकन करते हैं और उसी हिसाब से प्रतिक्रिया भी देते हैं। ऐसे में तय है कि गैर सत्ताधारी दलों की प्रतिक्रिया बजट की सराहना वाली तो कतई नहीं होगी।
लेकिन जैसे जैसे बजट प्रस्तुति के बाद का समय बीतता गया यह मामला गंभीर और पेचीदा होता चला गया। और शायद वित्त मंत्री के कानों तक भी यह बात पहुंची। यही कारण रहा कि बजट के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में निर्मला सीतारमण ने इस मामले में सफाई दी। उन्होंने कहा- आप दुबई में जो कमा रहे हैं मैं उस पर टैक्स नहीं लगा रही हूं।
सीतारमण ने मामले को स्पष्ट करते हुए कहा- प्रवासी भारतीयों की विदेशों में होने वाली आय पर कर लगाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है, बल्कि उनकी केवल भारत में होने वाली आय पर ही कर लगाया जायेगा। बात को और साफ करते हुए उन्होंने बताया- ‘‘हम अब जो कर रहे हैं वह यह है कि प्रवासी भारतीयों की भारत में होने वाली आय पर यहां कर लगाया जायेगा। यदि उनकी किसी दूसरे देश अथवा अलग अधिकार क्षेत्र में कोई आय होती है जहां कर नहीं लगता है, तो उनकी उस आय को मैं यहां शामिल नहीं कर रही हूं।‘’
वित्त मंत्री ने मीडिया से कहा- ‘‘आप दुबई में जो कमा रहे हैं मैं उस पर कर नहीं लगा रही। लेकिन आपकी यदि कोई संपत्ति भारत में है, आपने उसे किराये पर दिया है, और चूंकि आप विदेश में रहते हैं इसलिये भारत में होने वाली किराये की इस कमाई को भी आप वहां ले जाते हैं। इस तरह आप वहां भी कर नहीं देते हैं और यहां भी नहीं देते हैं…। चूंकि आपकी वह संपत्ति भारत में है, इसलिये मुझे उस पर कर लगाने का संप्रभु अधिकार है।‘’
संसद में पेश वित्त विधेयक 2020 में यह प्रस्ताव किया गया है कि यदि कोई भारतीय नागरिक किसी देश अथवा दूसरे अधिकार क्षेत्र में कर देने का पात्र नहीं है तो उसे भारत में निवास करने वाला नागरिक माना जायेगा। ऐसा संबंधित व्यक्ति को स्थितियों का लाभ उठाने से रोकने के लिहाज से किया जा रहा है। क्योंकि यह देखा गया है कि कुछ भारतीय नागरिक भारत में कर देने से बचने के लिये ऐसे देशों अथवा स्थानों पर चले जाते हैं जहां उन्हें या तो कोई कर नहीं देना होता या फिर वहां बहुत कम कर लगता है।
मामला बढ़ने पर वित्त मंत्रालय ने भी बयान जारी कर सफाई दी, इसमें कहा गया कि ‘‘इस नये प्रावधान में उन भारतीय नागरिकों को कर के दायरे में लाने की कोई मंशा नहीं है जो विदेशों में काम कर रहे हैं। कुछ मीडिया में इस प्रावधान को ऐसे पेश किया गया है मानो पश्चिम एशिया सहित विदेशों में काम कर रहे भारतीय, जो वहां कर नहीं दे रहे हैं उन पर भारत में कर लगाया जायेगा। संबंधित प्रावधान की इस तरह से व्याख्या करना सही नहीं है।‘’
जाहिर है बजट की जटिलताओं और अस्पष्टताओं को लोगों को समझाने में सरकार को अभी कई पापड़ बेलने होंगे।