असली डर तो थप्‍पड़ से ही लगता है साहब, प्‍यार से नहीं

सलमान खान की चर्चित फिल्‍म ‘दबंग’ का एक डायलॉग है- थप्‍पड़ से डर नहीं लगता साहब, प्‍यार से लगता है। लेकिन मध्‍यप्रदेश में इन दिनों प्‍यार की नहीं थप्‍पड़ की गूंज ही सुनाई दे रही है। यह कोई मामूली थप्‍पड़ नहीं है। इसकी खासियत यह है कि यह एक महिला कलेक्‍टर ने एक राजनेता के गाल पर जड़ा है और वह भी सरेआम।

जैसे ही यह थप्‍पड़ राजनेता के गाल पर पड़ा उसकी गूंज मध्‍यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में सुनाई देने लगी। इस गूंज का सुनाई देना इसलिए भी लाजमी था क्‍योंकि मध्‍यप्रदेश में सरकार कांग्रेस की है और थप्‍पड़ मारने वाली कलेक्‍टर उसी सरकार के मातहत काम करती हैं, जबकि थप्‍पड़ खाने वाला राजनेता भारतीय जनता पार्टी का है। यानी उस पार्टी का जो साल भर पहले तक इस प्रदेश में राज करती थी, लेकिन आज विपक्ष में है।

वैसे मध्‍यप्रदेश में इन दिनों चारों तरफ थप्‍पड़ ही चल रहे हैं। जेसीबी मशीनों के लौह पंजों से माफियाओं के ठिकानों पर लगने वाले थप्‍पड़ों ने कई लोगों की नींद हराम कर रखी है। इन थप्‍पड़ों से विपक्ष के ही नहीं बल्कि सत्‍ता पक्ष के नेता भी आतंकित और आशंकित हैं कि पता नहीं कब उनके ठिकानों पर लोहे का थप्‍पड़ पड़ जाए और वे अपने ‘रसूख’ पर पड़ने वाले गहरे निशानों को सहलाते नजर आएं।

लेकिन आज जिस थप्‍पड़ की मैं चर्चा कर रहा हूं उसका किस्‍सा थोड़ा अलग है। मामला भोपाल के पड़ोसी जिले राजगढ़ के ब्‍यावरा शहर का है और राजधानी के प्रमुख अखबारों में घटना का जो ब्‍योरा छपा है वह कहता है कि ब्यावरा में धारा-144 लागू होने के बावजूद नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में रैली निकाल रहे भाजपा कार्यकर्ताओं की कलेक्टर निधि निवेदिता से झड़प हो गई। कलेक्टर ने धारा-144 का हवाला देते हुए रैली न निकालने के लिए कहा। इस पर रैली में शामिल कार्यकर्ता नारेबाजी करने लगे। इससे कलेक्टर नाराज हो गईं और भाजपा के एक स्‍थानीय नेता को थप्पड़ मार दिया।

इसके बाद भीड़ में कुछ और लोग नारे लगाने लगे तो कलेक्टर भड़क गईं और भीड़ को धक्का मारने लगी। कलेक्टर ने पुलिसकर्मी का डंडा ले लिया और रैली की अगुवाई करते हुए तिरंगा लेकर चल रहे राजगढ़ के पूर्व विधायक अमरसिंह यादव के साथ झूमाझटकी की। गाड़ी अड़ाकर भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ नहीं रुकी।

इससे विवाद गहरा गया। इसी बीच जोश में आईं डिप्टी कलेक्टर प्रिया वर्मा दौड़ लगाकर भीड़ में घुसीं और लोगों को पकड़कर पुलिस को सौंपने लगी। उन्‍होंने भी कुछ लोगों पर हाथ उठाया। इसी दौरान भीड़ में से कुछ लोगों ने डिप्टी कलेक्टर के साथ अभद्रता की। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया। जिसमें कुछ प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं।

यह घटना ही ऐसी थी जिसका राजनीतिक रंग लेना स्‍वाभाविक था और ऐसा ही हुआ। पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने घटना को लेकर ट्वीट किया- ‘’कलेक्टर मैडम, आप यह बताइये कि कानून की कौन सी किताब आपने पढ़ी है जिसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे नागरिकों को पीटने और घसीटने का अधिकार आपको मिला है? एक और ट्वीट में शिवराज ने कहा- ‘’सरकार कान खोलकर सुने ले, मैं किसी भी कीमत पर मेरे प्रदेशवासियों के साथ इस प्रकार की हिटलरशाही बर्दाश्त नहीं करूंगा!’’

दूसरी तरफ राज्‍य के पूर्व मुख्‍यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता दिग्विजयसिंह ने घटना को लेकर ट्वीट किया- ‘’मप्र के राजगढ़ में भाजपा की गुण्डागर्दी सामने आ गयी। महिला जिला कलेक्टर और महिला एसडीएम अधिकारियों को पीटा गया, बाल खींचे गये। महिला अधिकारियों की बहादुरी पर हमें गर्व है।‘’ प्रदेश के मुख्‍यमंत्री कमलनाथ इस समय विदेश यात्रा पर हैं और जिस समय मैं यह कॉलम लिख रहा हूं उस समय तक उनके आधिकारिक ट्विटर हैंडल से घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि राजगढ़ की घटना अफसरशाही के गर्व का विषय है या शर्म का। यह फैसला भी उच्‍च अधिकारियों पर छोड़ देना चाहिए कि किसी प्रशासनिक अधिकारी को सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान लोगों पर हाथ उठाने का अधिकार है या नहीं। ये सब बातें आने वाले दिनों में राजनेता और अफसर करते रहेंगे।

मैं जिस मुद्दे पर बात करना चाहता हूं वो यह है कि क्‍या हमने संविधान और कानून को भी राजनीतिक पार्टियों के हिसाब से बांट लिया है? क्‍या अब भाजपा और कांग्रेस के लिए संविधान और कानून के अलग अलग अर्थ हैं? क्‍या दोनों दलों के लिए संविधान और कानूनी प्रक्रिया के पालन के मापदंड भी जुदा हैं? क्‍या अब कोई विरोध प्रदर्शन इस बात पर कानूनी या गैर कानूनी होगा कि वह किस पार्टी द्वारा शासित राज्‍य में हो रहा है? क्‍या भाजपा के राज में कांग्रेस को प्रदर्शन की मनाही होगी और कांग्रेस के राज में भाजपा को?

यह सवाल इसलिए उठा है क्‍योंकि एक तरफ रविवार को हुई ब्‍यावरा की घटना है और दूसरी तरफ मध्‍यप्रदेश के ही प्रमुख शहर इंदौर में 18 जनवरी को हुई घटना है। इंदौर की घटना में कुछ लोगों ने एनआरसी और एनपीए आदि का विरोध करते हुए बिना अनुमति धरना दिया। उस पर जब पुलिस ने कार्रवाई की तो नतीजा यह निकला कि संबंधित थाना क्षेत्र के टीआई को लाइन अटैच कर दिया गया और एडीशनल एसपी का पुलिस हेडक्‍वार्टर्स में तबादला हो गया।

दूसरी तरफ ब्‍यावरा में जब कुछ लोगों ने सीएए और एनआरसी के समर्थन में रैली निकालनी चा‍ही तो उन पर लाठीचार्ज हुआ, कलेक्‍टर और डिप्‍टी कलेक्‍टर ने लोगों को थप्‍पड़ जड़े और कई लोगों को हिरासत में लिया गया। इंदौर में प्रदर्शन सीएए और एनआरसी के खिलाफ था इसलिए पुलिस पर कार्रवाई हुई और ब्‍यावरा में रैली सीएए और एनआरसी के समर्थन में थी इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों के थप्‍पड़ गर्व का विषय हैं। ऐसा क्‍यों?

रहा सवाल धारा 144 के उल्‍लंघन का, तो मेरा सुझाव है कि मध्‍यप्रदेश सरकार को चाहिए कि वह जिलों में पदस्‍थ सभी मैदानी अधिकारियों को, सुप्रीम कोर्ट के 10 जनवरी को कश्‍मीर के संबंध में दिए गए उस फैसले की कॉपी भेज कर कहे कि वे उसे ध्‍यान से पढ़ लें। फैसला बहुत बड़ा है लेकिन उसका एक पैरेग्राफ कहता है-

‘’निषेधाज्ञा का उपयोग वैधानिक रूप से अपना मत या विरोध प्रकट करने वालों तथा किसी भी लोकतांत्रिक अधिकार का इस्‍तेमाल करने वालों को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता। इसे लागू करने का आदेश देने वाले मजिस्‍ट्रेट के लिए जरूरी है कि वह अधिकारों और प्रतिबंधों के बीच आनुपातिकता के सिद्धांत के तहत संतुलन बनाए और हस्‍तक्षेपकारी कदम कम से कम उठाए। निषेधाज्ञा का बार बार लगाया जाना अधिकारों का दुरुपयोग माना जाएगा।‘’

सरकार चाहे किसी भी दल की हो, बेहतर होगा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी किसी भी मामले में लाठी या हाथ चलाने से पहले दिमाग चलाएं और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को शांति से पढ़ लें। और हां, जो भी लोग बात-बात पर संविधान की दुहाई देते हैं वे भी अपनी-अपनी सरकारों को यह बताने की जहमत उठाएं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरे देश के लिए नजीर होता है…

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