जेएनयू विवाद के बीच एक खबर देखने में आई जो हमारे शिक्षा परिसरों के परिदृश्य को लेकर गंभीर चिंता में डालने वाली है। खबर यह है कि देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा परिसरों में शुमार किए जाने वाले आईआईएम अहमदाबाद में रविवार को ‘लोकतंत्र के समर्थन’ में आयोजित एक कार्यक्रम को पुलिस ने बीच में ही रुकवाने की कोशिश की।
चूंकि यह घटना भी उसी रविवार यानी 5 जनवरी की है, जिस रविवार को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में कुछ नकाबपोश गुंडों ने घुसकर हिंसा और मारपीट की थी, इसलिए अहमदाबाद की घटना दब गई। लेकिन अहमदाबाद में जो हुआ उस पर भी बात होनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि देश के शिक्षा परिसर इन दिनों पढ़ाई के बजाय बहुत सारी अन्य गतिविधियों के कारण चर्चा और विवाद का केंद्र बने हुए हैं।
आईआईएम परिसर की इस घटना को ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे अखबारों ने प्रमुखता से रिपोर्ट किया है। रिपोर्ट कहती है कि रविवार को आईआईएम के पब्लिक पॉलिसी विभाग के छात्रों और फेकल्टी ने मिलकर कोर्स से जुड़े छात्रों के लिए ही एक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया था जिसका नाम रखा गया था- आईआईएम-ए प्रजातंत्र के समर्थन में है (IIM-A Stands Up for Democracy) इसमें संविधान की प्रस्तावना पढ़े जाने, देश के विभिन्न भागों खासतौर से शिक्षा परिसरों में हुई हिंसक घटनाओं पर बातचीत के साथ साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए कैंडल मार्च निकालना भी प्रस्तावित था।
आयोजकों के अनुसार यह कार्यक्रम पूरी तरह से संस्थान परिसर के भीतर होने वाला था और वह भी एक विषय समूह के छात्रों के बीच। लेकिन कार्यक्रम जब चल रहा था उसी दौरान सादे कपड़ों में पुलिस के कुछ लोग वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सकता। कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि शहर में धारा 144 लगी है।
कार्यक्रम को इस तरह रोके जाने पर दोनों पक्षों में थोड़ी कहा सुनी हुई और बाद में कार्यक्रम करने वालों को एक क्लास रूम में समेट दिया गया। हालांकि बाद में आयोजकों ने खुले में यह कार्यक्रम किया और विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात रखी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि शुरुआत में इस कार्यक्रम में बाहर के भी कुछ छात्रों के शामिल होने की खबर थी पर उसकी पुष्टि नहीं हो सकी।
घटना के बारे में संस्थान के एक छात्र ने कहा कि- पुलिस ने हम लोगों को एक क्लास रूप में धकेल दिया। यह कैंपस के भीतर छात्रों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम था, पुलिस इस तरह कैसे आकर हमें शांतिपूर्ण तरीके से किया जाने वाला कार्यक्रम करने से रोक सकती है। हमें यह भी नहीं पता कि पुलिस को सूचना किसने दी और किसने उन्हें बुलाया।
पिछले दिनों सीएए के विरोध को लेकर चर्चित हुए आईआईएम-ए के प्रोफेसर नवदीप माथुर ने बताया कि हम लोग शांतिपूर्ण तरीके से संस्थान के भीतर चर्चा का कार्यक्रम कर रहे थे, उसी समय कुछ पुलिसवाले आए और हमें रोक दिया। हमारा मकसद सिर्फ देश के विभिन्न हिस्सों में छात्रों पर हुई हिंसा का विरोध करते हुए उनके साथ एकजुटता प्रदर्शित करने का था। हमने पुलिसवालों से कहा भी कि वे हमारे कार्यक्रम में व्यवधान पैदा न करें।
उधर घटना को लेकर पुलिस के दो अलग अलग वर्जन अखबारों में छपे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने संबंधित क्षेत्र के डीसीपी के.एन. डामोर के हवाले से कहा है कि किसी भी पुलिस वाले ने आईआईएम परिसर में प्रवेश नहीं किया। हमने वहां किसी अफसर की तैनाती भी नहीं की थी क्योंकि वह उनका अपना आंतरिक कार्यक्रम था।
दूसरी तरफ सेटेलाइट पुलिस थाने के प्रभारी पी.डी. दर्जी ने इस बात से इनकार किया कि पुलिसवालों ने क्लासरूप में दाखिल होकर आयोजन को रोकने की कोशिश की। थाना प्रभारी का दावा था कि पुलिस को एक वाट्सएप संदेश मिला था कि आईआईएम परिसर में कोई कैंडल मार्च होने जा रहा है।
उन्होंने कहा- पुलिस संस्थान में दाखिल नहीं हुई, हमारे लोग संस्थान के बाहर सुरक्षा गार्ड के केबिन पर ही इंतजार करते रहे। वे सिर्फ वाट्सएप संदेश के संदर्भ में जानकारी लेने वहां गए थे। हमने आयोजन को नहीं रोका और वह यथावत चलता रहा।
आईआईएम के लोगों का कहना था कि एक सप्ताह के भीतर इस तरह की यह दूसरी घटना है। इससे पहले एक क्लास रूम में अहमदाबाद के ही एक निजी विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर और एक वकील के नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर पर आयोजित लेक्चर के दौरान सादे कपड़ों में दो पुलिस वाले आकर बैठ गए थे। छात्रों के मुताबिक उस समय भी उन्होंने विरोध जताते हुए उनसे कहा था कि यह क्लासरूम है और यहां उनकी (पुलिस) कोई जरूरत नहीं है।
आईआईएम-ए का रविवार, जेएनयू के रविवार की तरह हिंसक तो नहीं रहा लेकिन वहां जो कुछ हुआ यदि उसमें थोड़ी सी भी सचाई है तो यह घटना बहुत चिंता में डालने वाली है। शिक्षा तंत्र को चलाने वालों से लेकर कानून व्यवस्था में लगे तंत्र तक को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि आखिर शिक्षा संस्थानों का कौनसा स्वरूप वे देखना चाहते हैं।
इस बात को अच्छी तरह से समझना होगा कि शिक्षा संस्थान सड़क पर होने वाली कानून व्यवस्था से जुड़ी गतिविधियों से निपटने के तौरतरीकों से नहीं चलाए जा सकते। वहां पढ़ने वालों और वहां पढ़ाने वालों की तासीर और संस्थान की प्रकृति बहुत अलग है। हां, यह चिंता का विषय है कि ऐसे संस्थानों के भीतर भी अब इस प्रकृति को चोट पहुंचाने की घटनाएं हो रही हैं लेकिन उससे किस तरह निपटा जाए इसके लिए विशेष एहतियात की जरूरत है।
विडंबना यह है कि जेएनयू में हथियारबंद नकाबपोश गुंडे घुसकर हिंसा का नंगा नाच कर रहे होते हैं और बार बार कॉल करने पर भी पुलिस वहां नहीं पहुंचती, जबकि अहमदाबाद में वह वाट्सएप पर मिले एक संदेश के आधार पर ही, एक इनहाउस कार्यक्रम में पूछताछ के लिए पहुंच जाती है।
जेएनयू में पुलिस की निष्क्रियता और अहमदाबाद में उसकी अति सक्रियता दोनों ही उचित नहीं है। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी नत्थी है कि पुलिस परिसर में जाए तो सवाल उठता है और न जाए तो भी सवाल उठता है। क्या शिक्षा परिसर अपने आप में ऐसे नहीं बन सकते कि जिनमें किसी के जाने की नौबत ही न आए, चाहे वह पुलिस हो या फिर गुंडे।