कल ही मैंने दुआ की थी कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण में बहुत टंटे हुए हैं, ईश्वर करे उनके सरकार चलाने में कोई विघ्न न आए। लेकिन लगता है मेरी यह दुआ कुबूल नहीं हुई है। सरकार बनने के तत्काल बाद लिए गए एक फैसले से जुड़े बयान को लेकर मीडिया ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को निशाने पर ले लिया है।
दरअसल कमलनाथ ने 17 दिसंबर को पद की शपथ लेने के बाद किसानों की कर्ज माफी के साथ जो कुछ और फैसले किए उनमें एक फैसला यह भी है कि भविष्य में मध्यप्रदेश में उद्योग लगाने के इच्छुक लोगों को सरकारी रियायतें तभी मिलेंगी जब वे अपने यहां 70 प्रतिशत नौकरियां अथवा काम इस राज्य के लोगों को ही दें।
आप कह सकते हैं कि इसमें भला किसी को कोई आपत्ति कैसे हो सकती है? तो मैं कहूंगा कि आप ठीक सोच रहे हैं। लेकिन विवाद इस फैसले को लेकर नहीं बल्कि इस फैसले की जानकारी देने के दौरान मीडिया को दिए गए कमलनाथ के बयान से पैदा हुआ है। मीडिया में ऐसा बखेड़ा करने की कोशिश हो रही है कि जिसमें मामला रोजगार से हटकर राजनीतिक चालबाजियों में उलझ जाए।
आइए सबसे पहले सुन लीजिए कि कमलनाथ ने आखिर कहा क्या? फैसले की जानकारी देते हुए वे बोले- ‘’बहुत सारे ऐसे उद्योग लग जाते हैं जहां अन्य प्रदेश से लोग आ जाते हैं… बिहार, उत्तर प्रदेश से… मैं उनकी आलोचना नहीं करना चाहता… और हमारे मध्यप्रदेश के नौजवान रोजगार से वंचित रह जाते हैं… तो उनको तभी उन इंसेंटिव्स का लाभ मिलेगा जब 70 फीसदी रोजगार मध्यप्रदेश का लोकल होगा…’’
मंगलवार को तमाम सारे चैनल इस बयान पर चीत्कार करते रहे। रोजगार के मूल मुद्दे से हटाकर मामला राजनीति के अखाड़े में पटक दिया गया। बयान और उसकी भावनाओं को ठीक से समझे बिना ‘विद्वान’ (वैसे यहां आप इस शब्द को ‘घसियारे’ पढ़ें तो उचित होगा) एंकर यहां तक पहुंच गए कि अब मध्यप्रदेश में बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों की एंट्री वीजा और पासपोर्ट के जरिए ही होगी। और भी जाने क्या क्या कुटिल अर्थ और कुतर्क गढ़े गए…
अपनी ऊंटपटांग और खेमाबंदी वाली हरकतों के लिए पहले से ही बदनाम कुछ एंकरों ने सपा, बसपा के इधर उधर से जुटाए नेताओं से उकसाने वाले सवाल पूछकर यह हवा बनाने की कोशिश की कि अब तो कांग्रेस को उत्तरप्रदेश और बिहार में गठबंधन की राजनीति में बहुत दिक्कत होगी। पर ताज्जुब मुझे तब हुआ जब भाजपा के नेता भी इस मुद्दे पर कांग्रेस की नीतिगत आलोचना करने लगे। शाहनवाज हुसैन जैसे समझदार प्रवक्ता ने भी कह डाला कि कमलनाथ ने यह बयान जानबूझकर दिया है।
मेरा मन हुआ कि भाजपा के ये जितने भी केंद्रीय मंत्री और नेता आज कमलनाथ के बयान की आलोचना कर रहे हैं उन्हें मैं करीब दस साल पीछे ले जाऊं। बात नवंबर 2009 की है जब शिवराजसिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने सतना में ऐसे ही एक कार्यक्रम में कहा था- ‘’ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिले में उद्योग लगाएँ और नौकरी के लिए बिहार से लोग लाए जाएँ।‘’
तब कांग्रेस के लोगों ने शिवराज के बयान पर बवाल काटा था और उसके राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना था कि इस तरह का बयान निंदनीय है। संविधान इस मामले में साफ है और सभी को यह हक है कि वे कहीं भी जाकर अपना रोजगार कर सकते हैं।
जिस तरह आज कांग्रेस की ओर से टीवी चैनलों पर कांग्रेस के प्रवक्ता अभय दुबे कमलनाथ के बयान का बचाव कर रहे हैं, उसी तरह उस समय भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और सांसद प्रभात झा ने भी पार्टी का बचाव करते हुए कहा था कि राजनीतिक साजिश के तहत शिवराज का बयान तोड़-मरोड़कर पेश कर, इसे अनाश्यक तूल दिया जा रहा है।
विवाद होने पर खुद शिवराज ने भी सफाई दी थी कि ‘’मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि अन्य प्रदेश के नागरिक मध्यप्रदेश में न आएँ। यहां किसी भी अंचल के लोग आएँ, उनका स्वागत है। वे ऐसी किसी भी बात का विरोध करते हैं, जो देशवासियों में विभेद पैदा करती हो। मेरा यह कहना है कि जहाँ कहीं भी उद्योग धंधे लगें वहाँ 50 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। कारखानों में जिनकी जमीनें जाती हैं, उनकी पीड़ा दूर की जानी चाहिए।‘’
हो सकता है, दबाव ज्यादा बढ़ने पर इस बार कमलनाथ भी ऐसा ही कोई बयान दे दें। लेकिन मेरा कहना है कि चाहे कमलनाथ हो या शिवराज, उन्होंने गलत क्या कहा है? क्या किसी राज्य को अपनी उद्योग व रोजगार नीति बनाने का हक नहीं है? क्या वहां के मुख्यमंत्री को यह कहने का हक नहीं है कि यदि उसकी सरकार से सुविधाएं चाहिए तो स्थानीय लोगों को रोजगार में प्राथमिकता देनी होगी।
उत्तरप्रदेश या बिहार से चूंकि रोजगार के लिए सर्वाधिक पलायन होता है इसलिए इन राज्यों का नाम स्वाभाविक रूप से, स्लिप ऑफ टंग की तरह जबान पर आ जाता है। लेकिन इसका यह अर्थ निकाल लेना कि मध्यप्रदेश में दूसरे राज्यों के लोगों के लिए वीजा और परमिट अनिवार्य किया जा रहा है, मानसिक दिवालियापन है।
जिन लोगों का पेट से लेकर पृष्ठ भाग तक ऐसे बयानों से दुखने लगता है, अच्छा होगा वे अपने राज्यों के युवाओं के रोजगार की चिंता करें। और यही वह मीडिया था ना जिसने हाल ही में संपन्न चुनाव के दौरान बेरोजगारी को प्रदेश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बताया था। अब जब प्रदेश के युवाओं को रोजगार सुनिश्चित करवाने के लिए कोई बात की जा रही है तो उसमें किसी को खुजली क्यों होनी चाहिए।
हां, हम मध्यप्रदेश के युवाओं को रोजगार देने की बात करेंगे। छाती ठोक कर करेंगे। यहां की मिट्टी में पैदा हुआ युवा रोजगार के लिए आखिर कहां जाएगा। यदि कोई यहां की जमीन पर, यहां की जनता के टैक्स से चलने वाली सरकार से सुविधाएं और रियायत लेकर, उद्योग स्थापित करना चाहता है तो उसे प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता देनी ही होगी। इसे कोई क्षेत्रवाद समझे तो समझता रहे।
जो मूर्ख तब शिवराज के बयान पर और आज कमलनाथ के बयान पर सवाल उठा रहे हैं वे पहले देख तो लें कि आज भी सरकार ने प्रदेश के युवाओं के लिए सिर्फ 70 फीसदी रोजगार रिजर्व करने की बात की है, पूरे सौ फीसदी नहीं। बाकी तीस फीसदी तो देश के अन्य राज्यों के लिए खुला ही है ना, फिर चाहे वो बिहार हो या उत्तरप्रदेश। लेकिन इन आंख के अंधों को यह तीस फीसदी थोड़े दिखाई देगा। उन्हें सिर्फ दो शब्दों पर अपनी दुकान चलानी है, बिहार और उत्तरप्रदेश… थू है ऐसी पत्रकारिता और ऐसी राजनीति पर…