सब कुछ समय की बलिहारी है साहब। समय साथ हो तो जमीन से आसमान पर चढ़ा देता है और साथ न हो तो आसमान से जमीन पर गिरा देता है। लेकिन आसमान पर चढ़ाने और जमीन पर उतारने के अलावा समय एक काम और भी करता है और वो ये कि जमीन पर गिरते हुए को धड़ाम होने से पहले ही थाम कर, उसका सिर फूटने से बचा भी लेता है।
जब से पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आए हैं मैं समय की इस तासीर को और भी ज्यादा शिद्दत से महसूस कर रहा हूं। परिणाम से पहले जब एक्जिट पोल के नतीजे आए थे तो उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए उम्मीद की रोशनी बचाए रखी थी और इसी उम्मीद की रोशनी का सहारा लेकर अपने मध्यप्रदेश में दोनों ही पार्टिंयां 12 दिसंबर की अल सुबह तक अपने-अपने पक्ष में परिणाम आने की आस लगाए रहीं।
और जब परिणाम आए तो समय ने दोनों ही पार्टियों को बहुत ज्यादा खुश होने या गमगीन होने का मौका नहीं दिया। कांग्रेस ने सरकार बनाने का अंतिम लक्ष्य भले ही पूरा कर लिया हो लेकिन भाजपा को भी समय ने पूरी तरह जमीन पर पटक मारने से पहले ही थाम लिया और उसे एक ऐसा सिरा थमा दिया जिसका सहारा लेकर सत्ताच्युत हुई इस पार्टी को यह कहने का मौका मिला कि हार गए तो क्या, जनता ने वोट तो हमें ज्यादा दिए हैं।
वक्त ने भाजपा को मन ही मन खुश होने का एक मौका उस समय और दे दिया जब मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने लायक बहुमत जुट जाने और विधायक दल की बैठक हो जाने के बाद भी कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के नाम घोषित होने में देरी हुई। दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान के साथ चली पदाकांक्षी नेताओं की मैराथन बातचीत वाले प्रसंग में भाजपा को अपनी हार की शर्म छिपाने का और मौका मिल गया, क्योंकि मीडिया में भाजपा की हार के बजाय कांग्रेस में नेता चयन को लेकर चल रहा घमासान छाया रहा।
जैसे तैसे मध्यप्रदेश और राजस्थान के नेता मसला सुलझा और ऐसा लगा कि कांग्रेस अब इस पेचीदा मसले को सुलझा लेने के बाद भाजपा पर आक्रामक होकर वार करेगी तो शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने राफेल का फैसला पटक दिया। कोर्ट ने राफेल सौदे की किसी भी तरह की जांच करवाने से इनकार करते हुए इस संबंध में दायर सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।
इसे कहते हैं किस्मत या समय की बलिहारी। जरा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की टाइमिंग देखिए। यह फैसला न सिर्फ राज्यों पर कब्जे के लिहाज से बल्कि लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी महत्वपूर्ण हिन्दी हार्टलैण्ड में हुई भाजपा की हार के ऐनवक्त पर आया है। सामान्य समय होता तो मीडिया में कई सप्ताह तक मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की यह हार और इसकी चीरफाड़ ही चर्चा में रहती और टीवी पैनलों की चीखपुकार का केंद्र बनती। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इस हार से दबाव महसूस करता और पार्टी में अंदर ही अंदर कई सारे समीकरण बनने बिगड़ने की सुगबुगाहट शुरू होती।
मुश्किल तो कांग्रेस के लिए भी होने वाली थी, क्योंकि भाजपा को टारगेट करने के साथ साथ मीडिया इस बात को भी मुद्दा बनाता कि राहुल गांधी ने तीनों राज्यों में नेता का मसला भले ही हल कर लिया हो लेकिन जिस तरह से नेता चुनने का ड्रामा चला है उसने यह तो उजागर कर ही दिया है कि हिन्दी हार्टलैंड में सरकार बनाकर लोकसभा में भी अपेक्षित सफलता का सपना देख रही कांग्रेस मूल रूप से एक ‘डिवाइडेड हाउस’ है। लोगों को भी सोचने के लिए उकसाया जाता कि क्या वे लोकसभा में ऐसी पार्टी को चुनना पसंद करेंगे?
लेकिन ऐन वक्त पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सारी चर्चाओं का रुख ही बदल डाला है। जो कांग्रेस अपनी जीत पर इतरा रही थी और जो भाजपा अपनी हार पर मुंह छिपाने की हालत में थी, दोनों के पाले मानो बदल गए हैं। कोर्ट के फैसले की जो बटेर हाथ लगी है उसने हार के सदमे में बैठी भाजपा को कांग्रेस पर आक्रामक होने का सुनहरा मौका दे दिया है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर दिखाई भी दिया। भाजपा के प्रवक्ता सीना चौड़ा कर कांग्रेस को चुनौती दे रहे थे कि विधानसभा चुनाव के दौरान राफेल सौदे को लेकर देश की जनता को गुमराह करने और ‘चौकीदार चोर है’ जैसे नारे लगवा कर प्रधानमंत्री को बदनाम करने के ‘अपराध’ के लिए राहुल गांधी देश से माफी मांगें।
उधर कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता सफाई दे रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट में न तो वे मामला लेकर गए थे और न ही वहां दायर याचिकाओं में कांग्रेस कोई पार्टी थी। उनका कहना था कि हम तो इस मामले में शुरू से ही संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की मांग कर रहे हैं, भाजपा इससे भाग क्यों रही है।
कुल मिलाकर अब सीन यह है कि राज्यों के चुनाव से हटकर फोकस राफेल पर केंद्रित हो गया है। भाजपा के मीडिया मैनेजर्स ने पूरी ताकत लगा दी है कि हिन्दी भाषी राज्यों में हुई पार्टी की हार से ध्यान हटाकर लोगों का ध्यान इस पर केंद्रित किया जाए कि राहुल गांधी ने देश की जनता से झूठ बोलकर और लोगों को गुमराह करके वोट मांगे हैं। क्या लोग लोकसभा में ऐसी पार्टी को चुनना पसंद करेंगे?
इसीलिए मैंने कहा कि यह सब समय की बलिहारी है। जो आसमान पर चढ़ाता और जमीन पर गिराता ही नहीं है, आसमान पर चढ़ाते और जमीन पर गिराते हुए बीच में ही थाम भी लेता है। विधानसभा चुनाव में समय कांग्रेस के लिए बलवान था तो राफेल मामले में वह भाजपा पर मेहरबान नजर आ रहा है।