भाजपा को भरोसा है उसका नेटवर्क जरूर काम आया होगा

मुझे पता है कि 7 दिसंबर की रात एक्जिट पोल के नतीजे आने के बाद से आप लोगों की रुचि वैसी सामग्री पढ़ने में कम रही होगी, जो मैं लिख रहा हूं। क्‍योंकि चुनाव की अंतिम और चरम जिज्ञासा हार-जीत के निष्‍कर्ष पर जाकर समाप्‍त हो जाती है। पर मैं शुक्रगुजार हूं उन तमाम एक्टिजपोलियों का जिन्‍होंने कम से कम मध्‍यप्रदेश में तो इस चरम जिज्ञासा को बरकरार रखा है।

मध्‍यप्रदेश के बारे में एक्जिट पोलों (मेरी सलाह है कि यहां इसे अंग्रेजी के पोल का बहुवचन ही पढ़ें, हिन्‍दी की पोल का नहीं) ने मेरी मदद करते हुए उस धुंध को बरकरार रखा है जो इस बार विधानसभा चुनाव पर शुरू से ही छाई हुई है। सबने यहां कांटे की टक्‍कर बताई है और तमाम एक्जिट पोल का लब्‍बोलुआब भी यही है कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार भी बन सकती है और भाजपा चौथी बार फिर से सत्‍ता में भी आ सकती है।

यानी 11 दिसंबर तक तो चुनाव को लेकर और भी कुछ लिखा ही जा सकता है। दरअसल एक्जिट पोल ने भी मेरी उसी बात का समर्थन किया है जो कल मैंने अंत में कही थी। मैंने कहा था- ‘’अबकी बार 200 पार जैसे नारे के साथ शुरू हुआ भाजपा का चुनावी अभियान 140 सीटों के दावे तक सिमट आया है। आश्‍चर्य इस बात का है कि इतनी ही सीटों का दावा कांग्रेस भी कर रही है…!!!’’

पर आखिर इस बार ऐसी कौनसी बात है जो मामला इतना फंसा हुआ है और तमाम विशेषज्ञ, विश्‍लेषणकर्ता और भविष्‍यवक्‍ता भी इस बात का अनुमान नहीं लगा पा रहे कि राज्‍य में आखिर होने क्‍या वाला है। दरअसल मेरे हिसाब से कारण वही है जो मैं इस श्रृंखला में पहले लिख चुका हूं, कि इस बार के नतीजे वोट मिलने के बजाय वोट बिखरने पर ज्‍यादा निर्भर होंगे। इसके साथ ही पलड़ा उसी पार्टी का भारी रहेगा जिसने मतदान के दिन अपने वोट डलवाने वाले तंत्र को पूरी तरह झोंक दिया हो।

अब इस सिलसिले में कांग्रेस और भाजपा की तुलना करें तो भाजपा के पास जहां सुगठित संगठन तंत्र है, वहीं कांग्रेस के पास इस तरह के मैदानी तंत्र का अभाव है। भाजपा को एक फायदा राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के नेटवर्क का भी मिलता रहा है जो प्रत्‍यक्ष रूप से तो मैदान में नहीं होता लेकिन परोक्ष रूप से बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाता है।

जहां तक संघ का सवाल है, शुरुआत में वह इस बार के विधानसभा चुनाव को लेकर कोई बहुत ज्‍यादा उत्‍साहित नहीं था। वहां भी कई बातों को लेकर कई तरह के रिजर्वेशंस थे। लेकिन कांग्रेस की एक गलती ने संघ के नेटवर्क को ऐन वक्‍त पर सक्रिय कर दिया और इस तरह मुकाबले में अच्‍छी भली आगे बढ़ रही कांग्रेस की राह थोड़ी कठिन हो गई।

मेरे हिसाब से कांग्रेस को अपने वचन पत्र में यह कहने की कतई कोई जरूरत नहीं थी कि ‘’शासकीय परिसरों में आरएसएस की शाखाएं लगाने पर प्रतिबंध लगाएंगे तथा शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारियों को शाखाओं में छूट संबंधी आदेश निरस्त करेंगे।‘’ हालांकि कांग्रेस ने ऐसा कहकर कोई नई बात नहीं की थी। इस तरह का आदेश दिग्विजयसिंह सरकार में जारी हुआ था जो उनकी सरकार जाने के बाद भाजपा सरकारों में भी बना रहा था।

लेकिन चुनाव को लेकर कोई ‘अनुकूल’ मुद्दा खोज रही भाजपा को कांग्रेस की इस गलती से बहुत अच्‍छा मसाला मिला और वह तत्‍काल इसे ले उड़ी। उसने मीडिया में यह प्रचारित किया कि कांग्रेस सरकार में आने के बाद राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ को प्रतिबंधित करने की बात कर रही है। हालांकि बात बिगड़ती देख कांग्रेस ने मामले को संभालने की भरसक कोशिश की और यह साफ भी किया कि संघ पर प्रतिबंध लगाने की बात उसने नहीं की है, लेकिन तीर कमान से निकल चुका था। कांग्रेस की इस नासमझी या रणनीतिक चूक का नतीजा यह हुआ कि इस एक मामले ने संघ के तंत्र को सक्रिय कर दिया।

मध्‍यप्रदेश की राजनीति का स्‍वभाव वैसा सांप्रदायिक कभी नहीं रहा है जैसा इसके कुछ पड़ोसी राज्‍यों में दिखाई देता है, लेकिन एक और घटना को भाजपा ने उसी तर्ज पर भुनाने की कोशिश की। यह घटना थी अलग अलग समूहों से की जाने वाली कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ की मुलाकात। मुस्लिम समुदाय के साथ हुई ऐसी ही एक मुलाकात का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और उस मामले में भी कांग्रेस को डिफेंसिव मोड पर आना पड़ा।

इस वीडियो में कमलनाथ को यह कहते हुए दिखाया गया कि- ‘’जो मुसलमान बूथ हैं वहां कितने प्रतिशत मतदान हुआ है… और अगर वहां 50-60 फीसदी हुआ है, तो ये क्‍यों हुआ 50-60 प्रतिशत, 90 प्रतिशत क्‍यों नहीं हुआ… इस बारे में पिछले चुनाव का पोस्‍टमार्टम करना बहुत जरूरी है। आज मुसलमान समाज के अगर 90 प्रतिशत वोट नहीं पड़े तो हमें बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है।‘’

भाजपा ने कमलनाथ के इस बयान को वैमनस्‍य की राजनीति करार दिया और कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह सांप्रदायिकता की राजनीति कर रही है। यह वीडियो भी हिन्‍दू तंत्र को सक्रिय करने का कारण बना। मध्‍यप्रदेश में संघ के कुल तीन प्रांत हैं, इनमें से महाकोशल प्रांत में उसकी 2523, मध्‍यभारत में 1576 और मालवा में 2708 शाखाएं हैं। इस तरह तीनों प्रांतों को मिलाकर प्रदेश में संघ की कुल 6798 शाखाएं होती हैं।

समान्‍य तौर पर एक शाखा पर नियमित रूप से आने वालों की संख्‍या 10-15 होती है और उस शाखा के दायरे में आने वाले संघ-संपर्कों की संख्‍या 100 से 150 तक। अब यदि ऐसे एक संपर्क के परिवार में तीन लोग भी संघ के विचार से प्रभावित हों तो प्रदेश में संघ का कुल नेटवर्क 30 लाख तक पहुंच जाता है। भाजपा को भरोसा है कि हमेशा की तरह इस चुनाव में भी संघ के इस तगड़े नेटवर्क ने उसकी नैया पार लगाने में मदद की है।

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