यह गलती नहीं, मीडिया की सीनाजोरी है, इसे रोकना ही होगा

शुक्रवार को एक बार फिर माथा झुका देने वाली खबर आई। हरियाणा में गांव के ही तीन युवकों ने एक युवती से गैंग रेप किया। प्रतिभाशाली यह युवती कोचिंग के लिए जाया करती थी और उसी दौरान जब वह बस से उतरी तो तीन दरिंदों ने उसे अगवा किया और नशीला पदार्थ खिलाकर उसके साथ गैंग रेप किया गया।

घटना से जुड़े कुछ पहलू बहुत गंभीर और गुस्‍सा पैदा करने वाले हैं। पहला तो यह कि घटना की शिकार युवती के परिजन जब पुलिस के पास रिपोर्ट लिखाने गए तो उन्‍हें यहां से वहां टल्‍लाया गया। थाने वाले कहते रहे कि यह उनके नहीं दूसरे थाने का मामला है। दूसरा यह कि मीडिया की कुछ खबरों में वारदात में शामिल लोगों में एक फौजी भी बताया जा रहा है जो छुट्टी पर गांव आया हुआ था।

पीड़ित लड़की की मां ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इंसाफ गुहार लगाई है। उसने कहा है कि लड़कों ने मेरी बेटी का अपहरण किया और उसके बाद उसका बहुत बुरा हाल किया। उधर आप (मोदी) कह रहे हैं कि बेटी पढ़ाओ, कहां से पढ़ाएं? आप तो पहले मेरी बेटी को न्याय दिलाओ जी…

ये जो लड़की की मां ने कहा है, देश की सामाजिक और राजनीतिक व्‍यवस्‍था पर वह करारा तमाचा है। ऐसा इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के ही पानीपत में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना और इससे जुड़े राष्‍ट्रीय अभियान का ऐलान किया था। लड़का और लड़की के अनुपात में आ रहे भारी अंतर को कम करने और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार का यह अत्‍यंत महत्‍वाकांक्षी अभियान था।

सुबह जब मैं टीवी चैनलों पर इस घटना से जुड़ी खबरें देख रहा था तो मन में कई सवाल उठे। पहला तो यह कि हरियाणा की घटना से मुझे भोपाल में नवंबर 2017 में हुई घटना याद आ गई। यहां भी घटना की शिकार बच्‍ची यूपीएससी की कोचिंग से लौट रही थी और खुद एक पुलिस वाले की बेटी होने के बावजूद भोपाल के थानों ने उसकी रिपोर्ट न लिखते हुए उसे एक जगह से दूसरी जगह भटकाया था।

इसका मतलब यह है कि कहने को हम एक देश हैं, लेकिन इस देश के नागरिक के साथ यदि कोई घटना-दुर्घटना हो जाए तो उसे आज भी वैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है मानो वह किसी और देश का नागरिक हो और बगैर वीजा या पासपोर्ट के किसी दूसरे देश में घुस आया हो। बेटी बचाओ के नारे को सिर पर उठाकर घूमने वाली सरकारें और समाज आज तक पुलिस को यह नहीं समझा पाए कि दुष्‍टो, फरियाद लेकर जो तुम्‍हारे पास आई है यह तुम्‍हारे ही देश की बेटी है…

हमारी पुलिस अपराध का शिकार हो जाने वाली किसी बच्‍ची से यदि सहानुभूतिपूर्ण व्‍यवहार भी नहीं कर सकती, उसकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं कर सकती (जो उसका वैधानिक कर्तव्‍य है) तो काहे का बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ। हरियाणा की उस महिला का सवाल नहीं एसिड बल्‍ब है जो इस समाज के मुंह पर फेंका गया है, उससे बच सको तो बचके दिखाओ…

दूसरे, मैं इस बात की पुष्टि नहीं कर रहा और मामले में पूरी जांच पड़ताल का पक्षधर हूं, लेकिन घटना में यदि एक फौजी भी शामिल है तो आप सोचिए कि मामला कितना गंभीर है। देश और समाज की सुरक्षा की शपथ लेने वाले ही यदि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने लगेंगे तो जनता आखिर किसके पास जाएगी?

कुछ गंभीर शिकायतें मुझे मीडिया से भी हैं। पहली, मीडिया में घटना को लेकर दिखाई गई हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की प्रतिक्रिया के संबंध में है। वो दृश्‍य देखकर ऐसा लगा कि खट्टर से किसी कार्यक्रम में आते या जाते रोक कर प्रतिक्रिया पूछी गई। खट्टर ने कहा- ‘’कानून अपना काम करेगा। जो भी इस मामले में दोषी होगा, उसे सजा मिलेगी।‘’

अब इसकी कोई संहिता नहीं है कि ऐसी घटनाओं पर किसी भी मुख्‍यमंत्री को क्‍या प्रतिक्रिया देनी चाहिए या फिर उसे कितनी देर तक बोलना चाहिए। लेकिन एक टीवी चैनल ने बाकी मुद्दों को छोड़ इस बात को मुद्दा बनाते हुए घसीटा कि खट्टर सिर्फ ‘सात सेकंड’ बोले। बार-बार सात सेकंड की समयावधि पर जोर दिया गया और वह बाइट लगातार दोहराई गई।

मैं जानना चाहता हूं कि आखिर हम क्‍या चाहते हैं? खबरों और उससे जुड़े मुद्दों को लेकर हमारी प्राथमिकताएं क्‍या हैं? और प्राथमिकताएं छोड़ भी दें तो खबरों को लेकर हमारी समझ आखिर क्‍या है? कोई मुझे बताए कि पत्रकारिता की कौनसी किताब में लिखा है कि गैंग रेप की घटना पर प्रतिक्रिया देते समय किसी सीएम को कितनी देर बोलना चाहिए।

और चलिए मान लीजिए खट्टर सात सेकंड के बजाय सात मिनिट, सात घंटे या सात दिन भी बोल लें तो उससे होने क्‍या वाला है? आपकी प्राथमिकता या चिंता का विषय अपराध की रोकथाम और दोषियों को सजा दिलवाना है या खुद के द्वारा तय की गई अवधि त‍क किसी मुख्‍यमंत्री का मुंह खुलवाना…

अंतिम और सबसे महत्‍वपूर्ण बात। टीवी चैनलों और बाकी मीडिया ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के उन निर्देशों का पालन नहीं किया जिसमें साफ कहा गया है कि ऐसे मामलों में पीडि़ता की पहचान को तय करने वाला कोई भी संदर्भ नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन मीडिया ने न सिर्फ इस बात का जिक्र किया कि बालिका कौनसी परीक्षा में हरियाणा में टॉपर रही थी और उसे कौनसे साल में राष्‍ट्रपति ने सम्‍मानित किया था।

मेरा मानना है कि ये दोनों तथ्‍य सीधे सीधे उस लड़की की पहचान सुनिश्चित करने वाले हैं, और इस तरह पहचान उजागर करने पर मीडिया के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई होनी चाहिए। आपको याद दिलाऊं कि कुछ महीने पहले हुए कठुआ कांड में भी मीडिया ने ऐसा ही अपराध किया था और सुप्रीम कोर्ट ने उसका संज्ञान लेते हुए 12 मीडिया घरानों पर दस दस लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

मीडिया घरानों ने निहायत ही पोचा तर्क देते हुए कहा था कि यह गलती उनसे कानून की जानकारी नहीं होने के कारण हुई। उस समय भी अदालत ने स्‍पष्‍ट निर्देश दिए था कि पीड़िता के बारे में कोई भी जानकारी जैसे उसका नाम, पता, तस्वीर, पारिवारिक ब्‍योरा, स्कूल संबंधी जानकारी, पड़ोस का ब्‍योरा आदि बिलकुल न दिया जाए। ताकि उसकी पहचान गोपनीय रहे।

पर ऐसा लगता है कि मुख्‍यमंत्रियों के बयान के सेकंड गिनने वाले मीडिया को कानून या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पढ़ने तक की फुर्सत नहीं है। ये लातों के वो भूत बन गए हैं जो बातों से नहीं मानने वाले…

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