2015 में हुआ दिल्ली विधानसभा का चुनाव क्या आपको याद है? वैसे उस चुनाव को याद करके बहुत से लोगों के दिमाग में बहुत सारी बातें ताजा हो सकती हैं। उस चुनाव के परिणाम से कई घाव हरे हो सकते है.., लेकिन आश्वस्त रहें, आज मैं उस चुनाव के राजनीतिक फलितार्थ पर बात नहीं करने जा रहा… मैं तो बस उस चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण की आपको याद दिलाना चाहता हूं।
एक फरवरी 2015 को दिल्ली के द्वारका विधानसभा क्षेत्र में हुई चुनावी रैली में मोदी ने कहा था- ‘’एक तरफ झूठे वादों की स्पर्धा हो रही है, झूठ बोलने की स्पर्धा हो रही है, झूठे आरोप लगाने की स्पर्धा हो रही है एक प्रकार से लग रहा है शायद पहले कभी दिल्ली के चुनाव पर झूठ का इतना साया सवार नहीं हुआ होगा। डीजल के दाम कम हुए कि नहीं हुए… आपकी जेब में थोड़ा बहुत पैसा बचने लगा कि नहीं बचने लगा… आपका फायदा हुआ कि नहीं हुआ…
अब हमारे विरोधी लोग कहते हैं कि ये तो मोदी नसीब वाला है, इसलिए हुआ है… अब मुझे बताइये कि आपको नसीब वाला चाहिए कि कमनसीब चाहिए… चलो भाई मान लिया कि नसीब वाला है, लेकिन रुपया तो आपकी जेब में बचा ना… अगर मोदी का नसीब देश की जनता के काम आता है तो इससे बढि़या नसीब की बात क्या होती है, भाइयो बहनो..
ये देश का दुर्भाग्य रहा… अगर नसीब के कारण पेट्रोल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण डीजल के दाम कम होते हैं, अगर नसीब के कारण सामान्य आदमी के जेब में पैसे बच जाते हैं तो फिर बदनसीब को लाने की जरूरत क्या है…’’
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नहीं.. नहीं.. आप शायद फिर गलत समझ रहे हैं। मैं डीजल, पेट्रोल के बढ़ते दामों पर भी लिखने नहीं जा रहा हूं। न ही मेरा इरादा उस भाषण को याद दिलाकर भाजपा या प्रधानमंत्री पर किसी तरह का कोई कटाक्ष करने का है। मुझे तो यह भाषण सिर्फ ‘नसीब’ शब्द के कारण याद आया। इसमें मोदी ने खुद को नसीब वाला बताते हुए पेट्रोल डीजल के दाम कम होने का परोक्ष रूप से श्रेय लिया था।
वही ‘नसीब’ शब्द आज मुझे भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के ताजा कमेंट को पढ़कर याद आ गया। राजन ने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति को हाल ही में बताया है कि देश की बैकों में लाखों करोड़ रुपए की एनपीए की समस्या के लिए यूपीए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं।
राजन ने समिति द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि ‘’यूपीए के समय घोटालों और जांच की वजह से सरकार के निर्णय लेने की गति धीमी हुई और इस कारण एनपीए बढ़ते गए। बड़े कर्जों पर बैंकों ने यथोचित कार्रवाई नहीं की। 2006 के बाद विकास की गति धीमी पड़ जाने से बैंकों की वृद्धि का आकलन अवास्तविक हो गया।‘’
ऐसे समय में जब मोदी सरकार चारों तरफ से आलोचनाओं का शिकार हो रही है और कांग्रेस उस पर लगातार हमलावर होने की कोशिश कर रही है, उस समय में राजन का यह बयान सरकार के लिए बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की तरह ही है। इस बयान की टाइमिंग कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को डिफेंसिव होने पर मजबूर करेगी। इतना ही नहीं यह बहस की दिशा को मोड़ने में भी सहायक होगा।
राजन का यह बयान इस समय सरकार के लिए कितना कीमती है इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि 24 घंटे के भीतर ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि ‘’इससे कांग्रेस का भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। इससे साबित होता है कि बैंकों के एनपीए के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका वाड्रा टैक्सपेयर्स का पैसा बर्बाद करना चाहते थे।‘’
यहां मैं रघुराम राजन की प्रोफेशन एप्रोच की दाद दूंगा कि उन्होंने संसदीय समिति के सामने बगैर किसी लाग लपेट, बिना किसी पूर्वग्रह या दुराग्रह के बहुत साफगोई से अपनी बात रखी है। वरना वर्तमान सरकार ने उनके साथ जो व्यवहार किया था उसे कौन भूल सकता है।
भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था ‘’राजन भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वे ब्याज दरें बढ़ाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को खत्म कर रहे हैं, छोटे-मध्यम उद्योगों के लिए बैंक से लोन लेने में मुश्किलें खड़ी की जा रही हैं।‘’
जबकि अर्थनीति के जानकारों का मानना था कि राजन की नीतियां भारतीय अर्थव्यवस्था को गड्ढे में जाने से बचाने का काम कर रही हैं। जिस प्राक्कलन समिति को राजन ने अपना यह चर्चित जवाब भेजा है उसी समिति के सामने खुद देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने, एनपीए संकट को पहचानने और इसका हल निकालने का प्रयास करने के लिए, राजन की प्रशंसा की थी।
सुब्रमण्यम ने समिति को बताया था कि एनपीए की समस्या को सही तरीके से पहचानने का श्रेय पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को जाता है। उनसे बेहतर यह कोई नहीं जानता कि आखिर देश में एनपीए की समस्या कैसे इतनी गंभीर हो गई। सुब्रमण्यम ने यह दावा भी किया था कि अपने कार्यकाल में राजन ने इस समस्या को हल करने की महत्वपूर्ण पहल की थी।
आज अपने पक्ष या बचाव में इस्तेमाल किए जा सकने लायक बयान देने के कारण सरकार में बैठे लोग भले ही राजन को ढाल बनाकर इस्तेमाल कर रहे हों लेकिन देश जानता है कि उन्हें किन परिस्थितियों में भारत से बाहर जाना पड़ा था।
कैसे एक जानकार आदमी को राजनीतिक कारणों से विवादास्पद बना दिया गया था। दरअसल चाहे राजन हो या नंदन नीलेकणि या उन जैसे और कई लोग, इस सरकार की दिक्कत यह है कि इसे या तो लोगों की सही पहचान नहीं है या फिर वह वाजिब और तर्कशील लोगों को सहन नहीं कर पाती।
कतई जरूरी नहीं कि आपकी परिभाषा में फिट होने वाला व्यक्ति ही राष्ट्रभक्त हो। आपके उस दायरे से बाहर भी कई लोग हैं जो राजनीति के विषाणुओं से दूर रहकर, सही गलत के बारे में विवेकपूर्ण होकर सोचते हैं और समय आने पर बिना किसी पक्षपात या पूर्वग्रह के अपनी राय व्यक्त करते हैं। जरूरत इस बात की है कि आप ऐसे लोगों को पहचानें और उनकी योग्यता एवं क्षमता का देश के लिए उपयोग कर सकने की कुव्वत पैदा करें।