यूं तो घटनाओं पर लिखना और उनका विश्लेषण करना ही मेरा काम है। साढ़े तीन दशक से भी ज्यादा समय से यही काम करता भी आया हूं। लेकिन कुछ मौके ऐसे होते हैं जब कलम भी चलने से इनकार कर देती है और शब्द भी साथ नहीं देते। अपने आप से ही जैसे वितृष्णा होने लगती है…
मैं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 31 अक्टूबर को घटी एक बच्ची से गैंग रेप की घटना पर कुछ दिन से लिख रहा हूं। इसी बीच एक ऐसी खबर आई है जिस पर लिखते हुए भी हाथ कांपते हैं। भोपाल की पुलिस जब 31 अक्टूबर के गैंग रेप के मामले को सुलझाने के नाम पर उलझाने की कोशिश कर रही थी, उसी दौरान सामने आए एक और मामले ने एक तरह से पूरे समाज को उलझा दिया।
शर्मसार करने वाली यह घटना 3 नवंबर की है जब भोपाल रेलवे स्टेशन पर जीआरपी यानी शासकीय रेलवे पुलिस को 12 साल की एक बच्ची मिली जो गैंग रेप की शिकार थी। खबरें कहती हैं कि 31 अक्टूबर की घटना से झुलसने के बावजूद जीआरपी ने कोई सबक नहीं लिया और केस दर्ज करके मामले की जांच करने के बजाय रेलवे चाइल्ड लाइन को बच्ची मिलने की सूचना देकर पल्ला झाड़ लिया।
चाइल्ड लाइन ने मेडिकल कराया तो पता चला कि बच्ची को 4 महीने का गर्भ है। उसके साथ कई बार ज्यादती हुई है। चाइल्ड लाइन ने बच्ची को बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया, जहां से उसे गौरवी वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर भेजने के आदेश दिए गए।
गौरवी अभियान की शुरुआत मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 16 जून 2014 को की थी। महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत दावा किया गया था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जाएगा और उनके खिलाफ अपराध करने वालों को सख्त सजा दिलाई जाएगी। लेकिन भोपाल स्टेशन पर मिली बच्ची के बारे में गौरवी सेंटर ने भी असंवेदनशील रवैया अपनाते हुए, एफआईआर कराना तो दूर, बच्ची को रखने से भी मना कर दिया।
बच्ची ने पूछताछ के दौरान बताया था कि वह जबलपुर से है तो बाल कल्याण समिति ने उसे जबलपुर भेजने की तैयारी कर ली। मामले पर जब मीडिया में हो हल्ला मचा तो सरकार हरकत में आई। महिला बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस बच्ची से मिलने पहुंचीं और बच्ची को समुचित इलाज मुहैया कराने का भरोसा दिलाते हुए उन्होंने पूरे मामले में सबंधित संस्थाओं की जांच के लिए विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिए हैं।
सवाल यह है कि बलात्कार के मामलों में अव्वल रहने वाला मध्यप्रदेश आखिर चाहता क्या है? क्या वह बलात्कार की शिकार पीडि़ताओं से अमानवीय व्यवहार करने के मामले में भी अव्वल आना चाहता है? पहले तो प्रदेश में ऐसी घटनाओं की बढ़ती सूची ही तमाम सरकारी मशीनरियों को कठघरे में खड़ा करती हैं। दूसरे यह मामला तो इसलिए भी संगीन है क्योंकि यह कम उम्र की बच्चियों से जुड़ा है।
13 अक्टूबर 2015 को मैंने इसी कॉलम में ऐसे ही दो प्रकरणों का हवाला देते हुए कहा था कि कन्या पूजन के फोटो छपवाकर वाहवाही लूटने वाला तंत्र इन कन्याओं के साथ क्या न्याय की भी कोई व्यवस्था करेगा? तीन साल, पांच साल, दस साल की बच्चियों के साथ जो घट रहा है वह सामान्य श्रेणी का अपराध नहीं है। इससे जुड़ी कई जटिलताएं हैं जिन्हें समझना होगा।
अक्टूबर 2015 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर और जबलपुर के सरकारी अस्पतालों में ऐसी ही दो बच्चियां भरती थीं जिनके मामले सुर्खियों में आए थे। ये दोनों नाबालिग बच्चियां दुष्कर्म का शिकार होकर गर्भवती हो गईं थी। इनमें से एक मामला मूल रूप से पन्ना जिले का और दूसरा शिवपुरी जिले का था। हादसे का शिकार हुई बच्चियों की उम्र 13 साल और 14 साल थी।
पन्ना की बच्ची के साथ उसके ही सौतेले पिता ने दुष्कर्म किया था और मानसिक पीड़ा के कई पड़ावों से गुजरने के बाद उसे प्रसव के लिए जबलपुर अस्पताल लाया गया था। जबकि अपने दो पड़ोसियों से दुष्कर्म का शिकार हुई शिवपुरी जिले की बच्ची ने ग्वालियर अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया था।
मैंने तब भी सवाल उठाया था कि सबसे बड़ा मुद्दा नाबालिग लड़की और उससे जन्मी, अजन्मी संतानों का है। क्योंकि बच्चियां जिस उम्र में इन अपराधों का शिकार बनाई जा रही है उस उम्र में वे किसी भी बात से वाकिफ नहीं होतीं। इस संबंध में कानून में भी यह स्पष्टता नहीं है कि इस तरह जन्म लेने वाले बच्चों का अभिभावक कौन होगा?
ऐसी घटनाओं में न तो उस बच्ची का कोई दोष होता है जो बलात्कार का शिकार हुई और न उस संतान का दोष है जो इस तरह अनचाहे तरीके से दुनिया में आई हो। दुष्कर्म करने वाले तो पता नहीं कब अपने किए की सजा पाएंगे, और पाएंगे भी या नहीं… लेकिन इन बच्चियों को तो जीवन भर न जाने कितनी त्रासदायी सजाओं से गुजरना होगा।
और चलिए, यदि दोषियों को सजा मिल भी जाए तो भी इन नाबालिग बच्चियों के माथे पर चस्पा कर दिए गए दाग को कौन धोएगा? उन संतानों का क्या होगा जो इन हादसों के फलस्वरूप इस संसार में आने को विवश हुई हैं। मध्यप्रदेश की लाड़ली हितैषी सरकार और समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाओं को कैसे रोकें और घटना के बाद पीडि़ताओं के सामाजिक पुनर्वास और पुनर्स्थापन की व्यवस्था क्या हो…