आंकड़ों के खेल से उपजती ‘शर्म’ को पहचानना होगा

विश्‍व बैंक द्वारा ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में भारत की रैकिंग में सुधार आने के संबंध में दी गई रिपोर्ट को लेकर बुधवार को जब देश के वित्‍त मंत्री अरुण जेटली और कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के बीच ट्विटर वार चल रहा था, उसी समय देश की एक समाचार एजेंसी ने चौंकाने वाला समाचार जारी किया, जो हमारे मीडिया की नजरों से करीब करीब अनदेखा रह गया।

पहले जरा यह सुन लीजिए कि अरुण जेटली और राहुल गांधी क्‍यों लड़ रहे थे। दरअसल विश्‍व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स’ में भारत ने इस साल जबरदस्त छलांग लगाई है। साल 2014 में भारत इस इंडेक्स में 142वें स्थान पर था, जबकि पिछले साल सुधार करते हुए वह 130वें स्थान पर पहुंच गया था। इस इंडेक्स में 190 देश शामिल हैं, इसमें भारत अब 30 पायदान की छलांग के साथ 100वें स्थान पर आ गया है। यह पहली बार है, जब भारत कारोबार सुगमता के मामले में शीर्ष 100 देशों में जगह बनाने में कामयाब हुआ है।

सरकार ने विश्‍व बैंक की इस रिपोर्ट को हाथों हाथ लेते हुए जब अपनी पीठ थपथपानी शुरू की तो राहुल गांधी ने ट्वीट किया- ’’सबको मालूम है ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की हकीकत, ख़ुद को खुश रखने के लिए डॉ. जेटली ख्याल अच्छा है।’’

राहुल का ट्वीट आया तो मशहूर वकील जेटली कहां चुप रहने वाले थे उन्‍होंने पलटवार करते हुए ट्वीट पटका- “The difference between the UPA and NDA — the ease of doing corruption has been replaced by the ease of doing business.”

राहुल और जेटली के ट्वीट पर एक नवंबर को दिन भर घमासान मचता रहा और इसी में वह खबर एक तरह से दबकर रह गई, जिसका मैं जिक्र कर रहा हूं। यह खबर न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस ने जारी की, जिसे मैंने न्‍यूज 18 की वेबसाइट पर देखा। खबर के मुताबिक भारत के नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने पोषण, गरीबी से पीड़ित बचपन, शिक्षा और युवा एवं रोजगार पर भारत के बारे में ‘यंग लाइव्स लांजीट्यूडनल सर्वे’ के प्रारंभिक निष्कर्ष जारी करते हुए कहा कि देश के 201 जिले इन मामलों में बहुत ही पिछड़े हैं और इन जिलों ने देश के विकास की रफ्तार को रोक रखा है।

खबर के मुताबिक अमिताभ कांत ने कहा- “अगर आप देश के 201 जिलों को देखें, जहां हम असफल हैं, तो उनमें से 53 उत्तर प्रदेश में, 36बिहार में और 18 मध्य प्रदेश में है।”… “मेरा विचार है कि जब तक आप इन इलाकों का नाम लेकर उन्हें शर्म नहीं दिलाएंगे, तब तक भारत के लिए विकास करना काफी मुश्किल होगा। सुशासन को अच्छी राजनीति बनाना चाहिए।”… “आधे समय तो प्रशासक बिना वर्तमान आंकड़ों के ही चीजें करते रहते हैं। इसलिए बिना स्पष्ट आंकड़ों के ही नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं।‘’

नीति आयोग के सर्वोच्‍च कार्यकारी अधिकारी ने कहा- “दक्षिण भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। पश्चिम भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। यह केवल पूर्वी भारत के साथ है, वहां के सात राज्यों और (बाकी) 201 जिलों की समस्या है। जब तक आप इन्हें नहीं बदलते, भारत में कभी बदलाव नहीं आ सकता।”

कांत आगे बोले- “उनका नाम जाहिर कर उन्हें शर्म दिलाना चाहिए, क्योंकि नेता और सरकारी अधिकारी को यह महसूस होना चाहिए कि उन्हें दंडित किया जाएगा। अगर आप स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के क्षेत्र में अपना प्रदर्शन नहीं सुधारते हैं तो मतदाता आपको खारिज कर देंगे।”…”जिस क्षण यह भारत में होना शुरू हो जाएगा, उसी क्षण चीजें सुधरने लगेंगी।”

देश में जिस समय आंकड़ों को लेकर राजनीतिक युद्ध लड़ा जा रहा है, उस समय अमिताभ कांत की यह खरी खरी देश के नीति नियंताओं और तमाम प्रशासकों के लिए आंखे खोलने वाली है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक को लेकर जिस तरह आंकड़ों की बाजीगरी हो रही है,जिस तरह अलग अलग नंबर दिखाकर खुद को बड़ा या सही साबित करने का खेल हो रहा है, वहां नीति आयोग के मुताबिक ये मूल समस्‍या से भटकाने वाली हरकतें हैं।

मैंने काफी कोशिश की लेकिन मुझे उन 201 जिलों की सूची नहीं मिल पाई जो नीति आयोग के सीईओ के मुताबिक देश को पीछे खींचने का काम कर रहे हैं। लेकिन कांत का बयान कई लिहाज से गंभीर विश्‍लेषण की मांग करता है। जब वे बताते हैं कि समस्‍या दक्षिण भारत के साथ नहीं बल्कि पूर्वी और उत्‍तरी भारत के साथ है, तो मामला और भी जटिल हो जाता है।

अमिताभ कांत जब यह कहते हैं कि देश के 201 फिसड्डी जिलों में से 53 उत्तर प्रदेश के, 36 बिहार के और 18 मध्य प्रदेश के हैं तो मेरा दिल और भी बैठने लगता है। क्‍योंकि इसमें हमारे प्रदेश का भी नाम शामिल है। जिस प्रदेश के बारे में कहा जा रहा है कि उसने बीमारू होने का कलंक अपने माथे से उतार फेंका है, जिसकी विकास दर देश के कई राज्‍यों से आगे चल रही है, जिसने कृषि विकास के मामले में सभी राज्‍यों को पीछे छोड़ दिया है, वहां के एक तिहाई जिले देश को पीछे ले जाने का काम कर रहे हैं? क्‍या वाकई ऐसा है?

दो दिन पहले ही, 51 जिलों वाले मध्‍यप्रदेश ने अपनी स्‍थापना की 61 वीं सालगिरह मनाई है। यदि यहां के 18 जिले देश के अति पिछड़े जिलों में शामिल हैं तो यह चिंताजनक है। ऐसे में यह समय स्‍थापना दिवस का जश्‍न मनाने के साथ साथ यह संकल्‍प लेने का भी है कि हम इन 18 जिलों को जितना जल्‍दी संभव हो, प्रदेश और देश के विकास में योगदान करने लायक बनाएंगे।

 

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