आपका ये ‘विकास’ ही किसानों की जान ले रहा है

देश में किसानों की किस्‍मत पर छाए मुसीबत के बादल छंटने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके भाग्‍य में बरबादी स्‍थायी भाव बनकर ठहर गई है। कभी मौसम की मार के चलते फसल बरबाद होने का कारण हो या कभी खराब खाद बीज की वजह से या फिर कभी कीड़ा लगने से उनके खेत लगातार संकट का शिकार हो रहे हैं। एक तरफ कर्ज के दलदल में फंसा किसान लागत का उचित मूल्‍य न मिल पाने के कारण अपनी जान देने को मजबूर है वहीं अब वह कीटनाशकों के छिड़काव से मौत का शिकार होने लगा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अकेले महाराष्‍ट्र में ही खेतों में जहरीले कीटनाशक छिड़काव से प्रभावित होकर मरने वाले किसानों की संख्‍या 39 तक पहुंच गई और दर्जनों किसान इसके कारण बीमार होकर अस्‍पतालों में हैं। ये मौतों ज्‍यादातर राज्‍य के यवतमाल, नागपुर, चंद्रपुर, अकोला, अमरावती और वर्धा जिलों में हुई हैं। इनमें से भी सर्वाधिक मौते यवतमाल जिले में सामने आई हैं।

मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाया है। आयोग ने महाराष्‍ट्र के मुख्य सचिव के अलावा केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय को नोटिस जारी कर उनसे चार सप्ताह के भीतर इस मामले में रिपोर्ट मांगी है। कीटनाशक सांस में चले जाने के कारण लगातार हो रही मौतों ने सरकार को भी हिला दिया है। राज्‍य सरकार ने मृतक किसानों के परिजनों को मुआवजे की घोषण की है। राज्‍य के कृषि मंत्री का कहना है कि किसान दस्ताने और सुरक्षात्मक उपकरण इस्तेमाल करने के निर्देशों का पालन नहीं करते हैं इस कारण वे कीटनाशकों का शिकार हो रहे हैं।

सरकारी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन महीनों के दौरान, फसल पर किये गए कीटनाशक के छिड़काव के कारण हुए संक्रमण से कई किसानों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां कई की मौत हो गई और दर्जनों किसानों की हालत गंभीर है। दरअसल ऐसे मामले ज्‍यादातर कपास के खेतों में काम करने वाले किसानों या खेतिहर मजदूरों के साथ हुए हैं।

रिपोर्ट्स कहती हैं कि इस बार बारिश अनियमित रूप से हुई है इस कारण कपास के पौधों की जड़ें जमीन में ज्‍यादा गहरी चली गई हैं। इससे जमीन से ऊपर भी पौधे की ऊंचाई बढ़ी और वे खेतों की बागड़ के बराबर या उससे भी ज्‍यादा ऊंचे हो गए हैं। ऐसे में जब किसान उन पर छिड़काव करते हैं तो उन्‍हें अपने कद से ऊपर छिड़काव करना पड़ता है और इस कारण कई बार कीटनाशक उनके मुंह पर भी गिर जाता है, जो जानलेवा साबित होता है।

किसानों की इस तरह होने वाली मौत नए संकट की ओर तो इंगित कर ही रही है यह हमारे फसल प्रबंधन पर भी सवाल उठा रही है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि कीटनाशक के उपयोग के तरीकों को लेकर किसानों में प्रशिक्षण की बहुत कमी है। वे जो थोड़ा बहुत समझ लेते हैं उसके अनुसार वे छिड़काव करने लगते हैं। छिड़काव करते समय उनका सारा ध्‍यान खुद को बचाने के बजाय फसल को बचाने पर होता है और इसी चक्‍कर में वे कीटनाशक की चपेट में आसानी से आ जाते हैं।

मीडिया में आई कुछ खबरें इसके लिए बाजार में मिलने वाले सस्‍ते चीनी छिड़काव पंपों को भी जिम्‍मेदार ठहरा रही हैं। ये पंप बहुत अधिक धुंआ और बौछार डालने वाले हैं जिसके कारण छिड़काव करने वाले के प्रभावित होने की आशंकाएं और बढ़ जाती हैं। यदि उसने दस्‍ताने या मुंह पर मास्‍क का प्रयोग न किया हो तो यह छिड़काव उसकी जान भी ले सकता है। पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे ज्‍यादातर किसान इन सस्‍ते पंपों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं साथ ही खर्च बचाने के लिए वे दस्‍ताने या मास्‍क आदि का उपयोग भी नहीं करते, सिर्फ पूरी बांह की कमीज और मुंह पर कपड़ा बांधकर काम चला लेते हैं जो खतरनाक साबित होता है।

जहां तक किसानों को प्रशिक्षित करने का सवाल है टाइम्‍स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट सरकारी कृषि विभाग के अमले पर गंभीर सवाल उठाती है। रिपोर्ट के अनुसार ज्‍यादातर किसानों के खेतों में कीटनाशक व खाद कंपनी के डीलर या उनके प्रतिनिधि जाकर अपने उत्‍पाद का प्रदर्शन करते हैं। इन कंपनियों का मूल मकसद किसानों या फसल की सुरक्षा के बजाय अपने उत्‍पाद की ज्‍यादा से ज्‍यादा बिक्री करना होता है। चूंकि सरकारी अमले के लोग उन्‍हें सही जानकारी देने नहीं पहुंचते ऐसे में किसान के पास डीलरों की बात ही सही मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता।

दूसरा मामला नकली कीटनाशक और खाद, बीज आदि का भी है। सहकारी संस्‍थाओं आदि के जरिए सबसिडी वाले जो कीटनाशक और खाद किसानों को दिए जाते हैं उनकी गुणवत्‍ता पर भी कई सवाल उठते रहे हैं। ऐसी शिकायतें हर साल बड़ी संख्‍या में सामने आती हैं कि किसानों को घटिया गुणवत्‍ता वाला या फिर एक्‍सपाइरी डेट निकल चुकने वाला माल सप्‍लाय कर दिया गया। ऐसी सामग्री इस्‍तेमाल करना किसानों के लिए और घातक हो जाता है।

एक और मुद्दा कंपनियों द्वारा कीटनाशकों में इस्‍तेमाल किए जाने वाले जहरीले रसायनों की मात्रा का है। वे अपने उत्‍पाद को अधिक प्रभावी सिद्ध करने के लिए इन रसायनों की मारक क्षमता को और अधिक बढ़ाती जाती हैं। ऐसी सामग्री की नियमित और प्रभावी जांच की व्‍यवस्‍था न होने से किसान को पता ही नहीं चल पाता कि वह कितने गुना अधिक जहरीली सामग्री का इस्‍तेमाल कर रहा है। वह इन अधिक मारक रसायनों का इस्‍तेमाल भी परंपरागत तरीकों से कर अपने को और अधिक जोखिम में डाल लेता है।

ऐसे में जरूरी है कि किसानों को कीटनाशक और खाद के इस्‍तेमाल को लेकर और अधिक प्रशिक्षित किया जाए। सरकारी अमला समय समय पर इनके छिड़काव और इस्‍तेमाल की विधियों का खेतों पर जाकर प्रदर्शन करें। निजी कंपनियों के द्वारा किए जाने वाले ऐसे प्रदर्शनों के दौरान कोई सरकारी कर्मचारी भी अवश्‍य उपस्थित रहे जो ऐसे उत्‍पादों के गुणदोषों के बारे में किसानों को ठीक से समझा सके।

महाराष्‍ट्र की घटनाओं ने जो खतरे की घंटी बजाई है उसके परिणामों को तत्‍काल समझना और उनका निदान करना जरूरी है। वरना महाराष्‍ट्र से उठी किसानों की मौत की यह लहर पता नहीं देश में और कितने किसानों की जान लेने का सबब बन जाएगी।

 

 

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