हुई जिन्दगी झण्ड, कबीरा,
पूजित है पाखण्ड है कबीरा
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राजा रानी गर्राये से
राजकुंवर उद्दण्ड, कबीरा
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जनगणमन उदास सा बेबस
शासक मत्त भुसण्ड, कबीरा
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संविधान लूला लंगडा सा
लोकतन्त्र बरिबण्ड, कबीरा
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लण्ठ और गुण्डे सम्मानित
है सन्तन को दण्ड कबीरा
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लुच्चे टुच्चे राजकरत हैं
माया बडी प्रचण्ड, कबीरा
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परजा भूखी और प्यासी है
नेता खा गये फण्ड कबीरा
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नहीं सुरक्षित बहन बेटियाँ
गली-गली मुसडण्ड. कबीरा
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हंसन को धकियाकर मोती
चुग रये कागभुसण्ड कबीरा
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मारो पटक-पटक कर अब तो
करो खण्ड के खण्ड कबीरा
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कल होना तय राख परन्तु
करता फिरे घमण्ड कबीरा
(डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डे की फेसबुक वॉल से साभार)