यह भारतीय लोकतंत्र का बहुत अजीब समय है, इस दुश्वार समय में शायद समय भी अपने बारे में सोचता होगा कि उसकी किस्मत में क्या लिखा है या कि क्या–क्या लिखा है?
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब 24 जुलाई को देश ने राष्ट्रपति पद से प्रणव मुखर्जी को बिदाई दी। प्रणव मुखर्जी की बिदाई देश के सर्वोच्च पद से एक ऐसे व्यक्ति की बिदाई थी जो भारतीय राजनीति की खांटी परंपरा से आया था। जिसने राजनीति को जिया भी और भोगा भी। प्रणव दा की बिदाई के समय माहौल में गमी और नमी दोनों भीतर तक महसूस की जा सकती थी। उस गमी और नमी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद प्रणव मुखर्जी को लिखी एक चिट्ठी में व्यक्त किया था जिसमें उन्होंने प्रणव दा को पितृतुल्य बताया था।
लेकिन संसद परिसर से गुरुवार को हुई एक और बिदाई का माहौल कुछ जुदा रहा। यह बिदाई थी उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी की। पूरे दस साल तक देश के उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति रहे हामिद अंसारी को सदन से बिदा देते समय कई लोगों ने कई बातें कहीं, भावनाएं व्यक्त कीं, लेकिन उन सारी भावनाओं पर खुद हामिद अंसारी जी का एक वक्तव्य भारी पड़ता नजर आया जो उन्होंने अपनी विदाई से एक दिन पहले राज्यसभा टीवी में करण थापर को दिए गए इंटरव्यू में दिया।
करण थापर ने इस लंबे इंटरव्यू में हामिद अंसारी से कई सारी बातों के साथ साथ यह भी पूछ लिया कि- ‘’क्या वह इस बात से सहमत हैं कि मुस्लिम समुदाय में एक तरह की शंका है और जिस तरह के बयान उन लोगों के खिलाफ दिए जा रहे हैं, उससे वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं?’’
इस पर अंसारी ने कहा- ‘’हां, यह आकलन सही है, जो मैं देश के अलग-अलग हलकों से सुनता हूं। मैंने बेंगलुरु में यही बात सुनी। मैंने देश के अन्य हिस्सों में भी यह बात सुनी। मैं इस बारे में उत्तर भारत में ज्यादा सुनता हूं। बेचैनी का अहसास है और असुरक्षा की भावना घर कर रही है।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या मुस्लिमों को ऐसा लगने लगा है कि वे ’अवांछित’ हैं,अंसारी ने कहा- ’’मैं इतनी दूर नहीं जाऊंगा, (पर) असुरक्षा की भावना है।‘’
गुरुवार को मीडिया में दिन भर अंसारी की विदाई के दौरान राज्यसभा सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं की कम और उनके इस इंटरव्यू की चर्चा अधिक रही। कई राजनेताओं खासकर भाजपा और शिवसेना के नेताओं ने इस बयान को लेकर हामिद अंसारी की तीखी आलोचना की और इस तरह अंसारी ऐन अपनी दस साल की जिम्मेदारी से मुक्त होने के दिन विवादास्पद होकर विदा हुए।
सवाल उठता है कि आखिर अंसारी ने ऐसा क्यों कहा? क्या वे जिस संवैधानिक पद पर थे उसके चलते उन्हें ऐसा कहना चाहिए था? इन सवालों का जवाब ढूंढते समय हमें याद रखना होगा कि अंसारी उप राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने से पहले भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे और उसे बाद वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। यानी उनकी पहचान और पृष्ठभूमि या तो एक राजनयिक की है या फिर एक शिक्षाविद की। इस लिहाज से हो सकता है उन्होंने परिस्थितयों और घटनाओं का वैसा ही विश्लेषण करते हुए अपनी राय रखी हो।
लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस समय अंसारी करण थापर को वह इंटरव्यू दे रहे थे, उस समय वे देश के उप राष्ट्रपति भी थे और राज्यसभा के सभापति भी। उस संवैधानिक जिम्मेदारी को निभाते हुए उनका इस तरह का वक्तव्य देना जाहिर है विवादों का सबब बनना ही था। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि यदि अंसारी ऐसा ही महसूस कर रहे थे और उसे तार्किक रूप से स्वीकार भी कर रहे थे तो फिर उन्होंने इसी अंदाज में ये ही बातें पहले क्यों नहीं कीं? किसी ने यह सवाल भी पूछा है कि फिर उन्होंने पद से इस्तीफा देकर खुलकर अपनी राय जाहिर क्यों नहीं की?
मेरे विचार से अंसारी को इस समय यह बात कहने से बचना चाहिए था। क्योंकि इसके चलते, उनकी जो भी प्रतिभा या प्रतिष्ठा रही हो, उसमें इजाफा तो निश्चित ही नहीं हुआ है, उलटे वे विवाद का केंद्र बनकर जा रहे हैं। हो सकता है अंसारी ने अपने भविष्य की रूपरेखा को तय करते हुए ऐसा बयान दिया हो, लेकिन राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति जैसे पदों पर बैठे व्यक्तियों से देश यह अपेक्षा नहीं करता कि वे सांप्रदायिक सुरों में बात करें।
अंसारी का कथन इस बात को भी स्पष्ट नहीं करता कि मुस्लिम समाज के असुरक्षित होने की उनकी यह राय कब बनी? क्या जब उन्हें देश का उप राष्ट्रपति बनाया गया तब भी देश में ऐसे हालात थे या फिर नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद ऐसे हालात बने हैं? और यदि बाद वाली बात सही है तो फिर सरकार को नसीहत देने की हैसियत रखने वाली राज्यसभा में अंसारी पीठासीन अधिकारी बनकर क्या कर रहे थे? अंसारी ने संकेत दिए कि उन्होंने अपनी भावना से मोदी सरकार को अवगत कराया था, तो अब सरकार को भी बताना चाहिए कि उसने देश के उपराष्ट्रपति द्वारा भारतवर्ष के इतने बड़े समुदाय के मन में पनप रही असुरक्षा की भावना को लेकर जताई गई चिंता पर क्या कार्रवाई की?
अंसारी की विदाई के समय दिए भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कटाक्ष किया है वह आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति की दशा और दिशा के बारे में बहुत कुछ कह देता है। मोदी बोले- ’’ये 10 साल पूरी तरह एक अलग तरह का जिम्मा आपके पास आया…पूरी तरह एक-एक पल संविधान-संविधान-संविधान के दायरे में चलाना…और आपने उसे बखूबी निभाने का भरपूर प्रयास किया… हो सकता है कुछ छटपटाहट रही होगी आपके अंदर भी, लेकिन आज के बाद शायद आपको वैसा संकट नहीं रहेगा… मुक्ति का आनंद भी रहेगा… और अपनी मूलभूत जो सोच रही होगी उसके अनुसार कार्य करने, सोचने का और बात बताने का अवसर भी मिलेगा’’’
खुद अंसारी ने राज्यसभा से विदा लेते समय जिस शेर से अपनी बात खत्म की वह मोदी की बात और निवर्तमान उप राष्ट्रपति की अगली भूमिका को बहुत स्पष्ट कर देती है, उन्होंने कहा-
आओ कि आज खत्म करें दस्तान–ए–इश्क,
अब खत्म–ए–आशिकी के फसाने सुनाएं हम।
जयहिंद…